आप नज़ीर देख सकते हैं। भारत में मीडिया एक हवा चलाती है और यह किस तरह से आंधी में बदलती है। एक प्रिंस कुएं में गिरता है, फिर तमाम प्रिंस गिरते जाते हैं। चलिए उसमें तो कोई दो राय नहीं, बच्चा पाइप में फंसा होता है। लेकिन इस ऑनर किलिंग जैसी घटना का क्या करें, जिसमें परिवार तबाह हो रहे हैं और जांच का नतीजा भी उल्टा-पुल्टा आ रहा है।
पहला उदाहरण लेते हैं सबसे सनसनीखेज मामले का। मुजफ्फरपुर से खबर आती है कि ऑनर किलिंग में प्रेमी-प्रेमिका को मार दिया गया। लड़की के भाई ने कैमरे पर स्वीकार कर लिया कि उसने अपनी बहन और उसके प्रेमी को मार डाला। लाश भी बरामद हो गई। लड़की का बाप इतने सदमें में था कि उसने जहर खा लिया। बाद में प्रेमी जोड़ा प्रकट हो गया- यानी लाश को धत्ता बताते हुए फिर जी उठा। फिर पुलिस ने गिरफ्तार बच्चे को धमकाया कि लाश किसकी थी तो उसने शायद कह दिया कि अपने दोस्त को मार डाला। बहरहाल- लड़की का पूरा परिवार तबाह हो गया। मीडिया और पुलिस ने इस तबाही में अहम भूमिका निभाई। सचमुच परिस्थितजन्य साक्ष्य यही कह रहे थे कि लड़की के भाई ने प्रेमी-प्रेमिका को काट डाला था?- ८ मई
दूसरी घटना- मेरठ में एक लड़की छत से गिर गई। लड़की के पिता का यह कसूर था कि वह पुलिस वाला है। इससे उसका रसूख भी जुड़ गया कि उसके डर से कोई सामने नहीं आ रहा है। जुड़ गई प्यार की कहानी। कहा गया कि लड़की प्यार करती थी, जिसके चलते इंस्पेक्टर बाप ने उसे छत से धकेल दिया। कहानी कुछ ऐसी चली कि पूरा परिवार तबाह है। लड़की होश में आने के बाद कह रही है कि उसके पिता ने उसे छत से नहीं धकेला था। हां- इतना जरूर हुआ कि लड़की और उसके परिवार के साथ बदनामी लंबे समय के लिए जुड़ गई।- ९ मई 2०१०
तीसरी घटना- कौशांबी के खलीलाबाद गांव में एक बाप ने अपनी बेटी को काट डाला। इस मामले में भी लड़की के पिता ने स्वीकार कर लिया कि उसने ही अपनी बेटी को मार डाला है। उसने मारने का तरीका भी बताया। उस मामले के आगे बढ़ने की उम्मीद कम ही है, क्योंकि टीवी चैनलों से बातचीत करने वाले पिता को देखने से लग रहा था कि वह गरीब है। उसकी शक्ल देखकर तो निश्चित रूप से लगता है कि उसे सजा मिल जाएगी। ९ मई, २०१०
चौथी घटना- मामला है निरुपमा पाठक का। इसमें ऑनर किलिंग के साथ परंपरावादी हिंदू परिवार, हिंदू धर्म, सेक्स, गर्भ और लिव इन रिलेशन जैसे आधुनिक और पुरातनपंथी मसाले लगे हैं, जिससे मीडिया और तमाम अधिकारवादी झंडावरदारों के पास ढेरों मसाले हैं। शुरू में जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई उससे और परिस्थितजन्य साक्ष्यों से लगा कि लड़की के परिवार वालों ने ऑनर किलिंग कर डाली। लड़की की मां गिरफ्तार हो गई। बाद में पता चलता है कि पोस्टमार्टम में झोल है। एम्स के डॉक्टरों ने कह दिया कि जांच परिणामों से इसे आत्महत्या होने से इनकार नहीं किया जा सकता। -३० अप्रैल, २०१०
अब पुलिस आत्महत्या मानकर भी घटना की छानबीन में आगे बढ़ रही है। लड़की के प्रेमी से भी पूछताछ हुई। दिल्ली के आंदोलनकारियों ने मान लिया कि अब अन्याय हो रहा है। जब तक लड़की के परिवारवाले फंस रहे थे, तब तक तो दिल्ली में न्याय की दिशा ठीक मानी जा रही थी, लेकिन जैसे ही शक की सुई प्रेमी की ओर घूमी, सीबीआई की मांग उठ गई। ढेर सारे सवाल उठे कि सब कुछ मैनेज कर जांच को गलत दिशा में ले जाया जा रहा है। पुलिस भी शायद ठोस नतीजे पर न पहुंच पाए कि आखिर हुआ क्या? बहरहाल, उम्मीद यही लगती है कि अंत में मामले को आत्महत्या मान लिया जाए। हां- यह अलग है कि लड़की के घर पर मरने की वजह और परिस्थितजन्य साक्ष्यों से माता-पिता और कुछ अन्य कथित साक्ष्यों से प्रेमी दोषी लगता है। लड़की ने अगर आत्महत्या की है तो दोनों इसके लिए जिम्मेदार हैं।
पंद्रह दिन के भीतर हुई इन घटनाओं ने पंद्रह हजार सवाल उठा दिए हैं। पहले, दूसरे और तीसरे मामले में लड़की के परिवार वाले तबाह हुए हैं। पहली घटना को देखते हुए पुलिस की भूमिका स्पष्ट होती है कि वे मामले को किस तरह निपटाते हैं और अपने सिर से बवाल हटा देते हैं। आखिरी घटना में अब तक तो लड़की के परिवार वाले तबाह हुए हैं और अब लड़के की दुर्दशा हो रही है जो सुनने में आ रहा है कि अपने परिवार का एकमात्र कमाऊ पूत है। अगर इस तरह के मामलों में तथ्यों का पता नहीं लगाया जाता है और बेवजह लोगों का परिवार तबाह होता है तो निश्चित रूप से मीडिया ट्रायल करने वालों और जांच करने वालों की जबाबदेही बनती है।
7 comments:
ज्यादा तो नहीं पढ़े इस मुद्दे पर। लेकिन मीडिया डिस-ऑनर होता नजर आ रहा है!
मिडिया कुछ ज्यादा ही गैरजिम्मेदारी दिखा रहा है |
एकदम सही जगह पर ठोका है आपने ....देखिएगा कितना चुभता है
यही कमी है मीडिया के साथ कि वह एक पक्षीय हो जाती है...
पश्चिम के देशों में भी बिन ब्याही माँ बनना कोई बहुत अच्छी बात नहीं मानी जाती है, पर वहां उस लड़की को मरना नहीं पड़ता है ... बहुत ज्यादा खुलापन शायद ठीक नहीं, पर बहुत ज्यादा ररूढिवाद भी कोई सराहनीय बात नहीं है ... इसमें पुरे मामले में समाज की गलती है ... और मीडिया उस आग में घी डालती रहती है ...
इंद्रनील भाई, यहां मारने मरने का सवाल नहीं है। मैं तो उस आंधी की बात कर रहा हूं, जहां हर घटना को आनर किलिंग के रूप में प्रचारित कर जांच एजेंसियां अपना काम निपटाने में लगी हुई हैं। आखिर पहली घटना में कौन सी ऑनर किलिंग हुई, जहां प्रेमी-प्रेमिका दोनों वापस लौट आए और प्रेमिका के भाई से स्वीकार करवा लिया गया कि उसने ऑनर किलिंग की है।
सवाल यह है कि ऐसी घटनाओं के प्रचार में कथित बुद्धिजीवियों को आम लोगों का दिमाग खाने का मौका मिल जाता है। बुद्धिजीवी भी बेचारे क्या करें, वे बुद्धि खाकर ही जिंदा रहते हैं।
Sahi kaha breaking news ke chakkar me Media ki vishvaniyata khtm ho rahi hai
Post a Comment