कश्मीर में पुलिस, सेना और अर्धसैनिक बलों पर पथराव करने वाले लोगों को नौकरी और राज्य को भारी-भरकम पैकेज देने की तैयारी शुरू हो गई। फेसबुक पर मैने कुछ दिन पहले यह संदेह जाहिर किया था। http://www.facebook.com/photo.php?pid=30901240&id=1321980557#!/profile.php?id=1127530064&v=wall&story_fbid=141019089263474&ref=mf
मेरे कुछ मित्रों ने यह भी लिखा कि ऐसा ही पैकेज पंजाब को भी दिया गया। पंजाब में तो ऐसा एक बार या दो बार किया गया। कश्मीर में तो लगातार यह हरकत जारी है। पंजाब ने भी तो आखिर कश्मीर से ही सीख ली थी। पंजाब का उदाहरण देकर कश्मीर के पैकेज को तो कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता है।
आखिर इस पैकेज और रोजगार से क्या फायदा मिलने वाला है? यह तो सीधे-सीधे ब्लैकमेलिंग है। कश्मीर की हालत आज ऐसी है कि वहां हर घर में सरकारी नौकरी है। खाद्यान्न से लेकर फल और मेवा सब कुछ सस्ते में सब्सिडी रेट पर मिलता है। कुल मिलाकर कहें तो आर्थिक राम राज्य जैसा माहौल पिछले ५० साल में केंद्र सरकार ने बना दिया है।
तर्क दिया जाता है कि हाथों को रोजगार नहीं है, इसलिए वहां के युवक पथराव करने को मिल जाते हैं। आखिर देश को कब तक बेवकूफ बनाया जाता रहेगा? वहां रोजगार और सरकारी नौकरियां करने वाले लोग और उनके बच्चे भी पथराव करते हैं। हाल ही में मैने एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में पढ़ा कि बेरोजगारी बहुत बड़ा संकट है कश्मीर में। हालांकि लेखक महोदय शायद यह नहीं जानते कि वहां के लोग न तो रोजगार की मांग कर रहे हैं, न बिजली, सड़क, पानी और अन्य बुनियादी सुविधाओं की। आखिर मांगें भी क्यों? देश के किसी भी पहाड़ी या मैदानी हिस्से से तुलना की जाए तो वहां बहुत ज्यादा विकास हुआ है। अगर पड़ोस के ही पाक अधिकृत कश्मीर से तुलना की जाए तो नरक और स्वर्ग का अंतर नजर आता है।
मीडिया में लिखने और कश्मीर की जनता की आवाज दिल्ली में उठाने वाले लोग आखिर इस बात पर सवाल क्यों नहीं उठाते कि एक ही चैनल में दिल्ली में बैठा एंकर कहता है कि आतंकवादियों ने ३ सुरक्षा बलों की हत्या कर दी और कश्मीर में तैनात उसी चैनल का संवाददाता जब लाइव देता है तो कहता है कि मिलिटेंट्स ने सुरक्षा बलों पर हमला किया। क्या उसी चैनल का कश्मीरी रिपोर्टर यह बताने की कोशिश करता है कि हमलावर टेररिस्ट या आतंकवादी नहीं, बल्कि मिलिटेंट या धर्मयोद्धा हैं, जो धर्म के लिए युद्ध कर रहे हैं? आज ही हुए एक हमले के मामले में देश के सबसे बड़े अंग्रेजी न्यूज चैनल में यह घटना हुई।
अगर कश्मीर के लोग नहीं चाहते कि कश्मीर में रोजगार बढ़े, सड़कें बने, पुल बने, विकास हो तो सरकार ऐसा क्यों चाहती है?? क्या कश्मीर में सुविधाएं नहीं दी जाती तो देश के मुसलमान भारत के खिलाफ हो जाएंगे? ऐसा नहीं है। लेकिन फिर भी दिल्ली में बैठे नीति नियंताओं को समझ में नहीं आता कि कश्मीर में यथास्थिति बनाए रखने के अलावा कुछ भी किए जाने की जरूरत नहीं है।
कश्मीर में ऐसा माहौल है कि जो नेता भारत को जितनी ज्यादा गालियां देगा, उसे उतना ही वोट (या कहें जनता का समर्थन) मिलेगा। कश्मीर के लोगों को शायद ही यह एहसास हो कि वहां उत्पादकता नगण्य होने के बावजूद उस तरह के अन्य इलाकों या देश के किसी समृद्ध इलाके के आम लोगों की तुलना में वहां ज्यादा स्वतंत्रता और आर्थिक समृद्धि है। वहां के लोगों को तो यही एहसास है कि भारत को जितनी गालियां दी जाएं, जितना ही सुरक्षा बलों को पीटा जाए, उतनी ही सुविधाएं और आर्थिक मदद मिलती जाएगी। ऐसे में भारत को गालियां देने वाले ही वहां के स्थानीय लोगों के आदर्श हैं।
अगर पैकेज दिया ही जाना है तो कश्मीर के उन लोगों के पुनर्वास का पैकेज जाना चाहिए, जिन्हें कश्मीर से भगाया जा चुका है। देश के अन्य इलाकों के हिंदू- मुसलमानों (या कहें देशवासियों) को भी कश्मीर में रहने व बसने की आजादी मिलनी चाहिए, न कि कश्मीर के नेताओं को पैकेज देकर उन्हें सेना के खिलाफ हथियार खरीदने की आजादी।
3 comments:
बिलकुल सही कहा आपने....सौ प्रतिशत सहमत हूँ आपसे...
muze nahi lagta koi bhi apni jaan ko kharte me aise hi dalega...baahar se comment karna or sandeh jahir karna aap jaise kursi patrkaro ke lie bahut aasan hai...koi to kaaran hoga ki aurate bhi apne bacho ke saath bahar nikal rahi hai ye malum hote hue bhi ke baki logon ki tarah wo bhi mari ja sakti hain...
mai bhi sayad aisa hi karu jab koi bhi mere gahr me kabhi bhi ghus aaye ya phir muze lage hum me se koi bhi kabhi bhi mara ja sakta hai...
or mai ek kashmiri nahi hun...lekin indian jaroor hun..
सुशील भाई, आप पूरी तरह से इंडियन हैं, इसीलिए पहले मेरे ऊपर आपने कुर्सी पत्रकार होने का आरोप लगा दिया। आपके विचार से यही लगता है कि देश के बलात्कारी औऱ अत्याचारी सैनिकों को कश्मीर में लगा दिया गया है और उन्हें अत्याचार का ही काम सौंपा गया है। इससे फिलहाल मैं सहमत नहीं हो सकता।
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