लंबे समय से कर्नाटक में संघर्ष कर रही भारतीय जनता पार्टी आखिर मुसीबत में आ ही गई। कितना विरोधाभास है कि एक तरफ येदियुरप्पा जैसे साफ छवि के और पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले मुख्यमंत्री हैं तो उसी पार्टी में अगड़ी जाति के रेड्डी बंधु भी।
भाजपा के इस विरोधाभास का फायदा को कांग्रेस और विपक्षी दलों को उठाना ही था। खबरों के मुताबिक ३०० करोड़ रुपये खर्च करके १२ विधायक खरीद लिए गए और येदियुरप्पा सरकार अल्पमत में आ गई।
कर्नाटक जैसे राज्य में येदियुरप्पा सरकार को गिराने के लिए तीन सौ करोड़ रुपये की राशि बहुत छोटी है। राज्य सरकार ने लौह अयस्क की लूट पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। कोर्ट के फैसले के बाद भी लौह अयस्क माफियाओं की दाल नहीं गल रही है। जिस राज्य में लौह अयस्क के खनन व निर्यात पर प्रतिबंध के चलते लौह अयस्क माफिया कंपनियों और ठेकेदारों को प्रतिदिन तीन सौ करोड़ रुपये का घाटा हो रहा हो, वहां सरकार गिराने के लिए इतना पैसा खर्च करना तो बहुत छोटी राशि है।
रही बात भारतीय जनता पार्टी की। वह कर्नाटक में सरकार बचाना भी चाहती है और रेड्डी बंधुओं के साथ भी रहना चाहती है। भाजपा अपने चाल-चरित्र के मुताबिक पिछड़े वर्ग को एक शानदार नेता के रूप में नहीं देख सकती, लेकिन वह उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के नेतृत्व को हाशिए पर लगाने का परिणाम देख चुकी है और केंद्र में सत्ता के लिए लार टपकाने के सिवा उसके हाथ में आज कुछ भी नहीं है। ऐसे में वह येदियुरप्पा को ठिकाने लगाने का जोखिम भी नहीं उठाना चाहती, क्योंकि ऐसा करने पर वह राज्य भी भाजपा के हाथ से निकलना तय है।
कर्नाटक में लोकतंत्र बहाली में असल समस्या लौह अयस्क के अवैध लूट पर रोक है। अगर येदियुरप्पा हटते हैं तो कांग्रेस, भाजपा सहित सभी पार्टियां खुश ही होंगी, क्योंकि लूट में सबका मुंह काला है। लेकिन येदियुरप्पा को हटाने का मतलब होगा की भाजपा अपनी कब्र तैयार कर लेगी। ऐसे में संकट गहराना स्वाभाविक है।
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