Sunday, October 17, 2010

न्यायालय पहुंचा ब्राह्मणवाद, वहां भी न्याय नहीं

गुजरात उच्च न्यायालय में अजीत मकवाना ने एक मामला दायर किया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि ब्राह्मणवाद के चलते जूनागढ़ जिला न्यायालय के न्यायधीश ने त्रितीय औऱ चतुर्थ श्रेणी के ६० प्रतिशत नियुक्ति ब्राह्मणों का किया है।

इसमें पेंच यह फंसा कि उच्च न्यायालय के न्यायधीश आरआर त्रिपाठी भी ब्राह्मण थे। अब अजीत ने अपने वकील एएम चौहान के माध्यम से कहा कि उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से भी न्याय की उम्मीद नहीं है, क्योंकि वे भी ब्राह्मण जाति के हैं।

जैसे ही वकील ने यह आधार बनाकर मामले का स्थानांतरण किसी अन्य न्यायालय में करने को कहा, न्यायाधीश त्रिपाठी ने फैसला दिया कि या तो यह आरोप न्यायालय पर दबाव बनाने के लिए लगाया गया है .या फिर मामले का स्थानांतरण दूसरे न्यायालय में कराने के लिए। यह आधार बनाकर न्यायाधीश ने मामले को खारिज कर दिया, जिससे यह प्रवृत्ति रोकी जा सके।

अब क्या कहा जाए? न्याय तो अजीत को मिला नहीं। और शायद इस देश के अजीतों को कभी न्याय नहीं मिलेगा। दलित, पिछड़ा उत्थान के नारे लाख लगें- हकीकत यही है कि जातिवादी भ्रष्टाचार आज भी चरम पर है। उसकी सुनवाई कहीं नहीं है।

स्कूल, कार्यालय, या जहां भी भ्रष्टाचार की संभावना वाली जगहें हैं, कहीं भी अगर सही सर्वे किया जाए तो नियोक्ता की जाति के कार्यकाल में नियुक्त लोगों के आंकड़े यही बयान करते हैं। सरकारी नौकरियां तो अब कम ही हैं... निजी क्षेत्र में यह खेल खुलेआम और धड़ल्ले से चल रहा है। वहां पर तो इस बीमारी को खत्म करने के लिए कोई राजनीतिक दबाव भी नहीं है।

2 comments:

honesty project democracy said...

न्याय चाहने वालों को हतोत्साहित करना और न्याय में पारदर्शिता का ख़त्म होना किसी भी वर्ग के लिए शुभ संकेत नहीं है ..सर्वोच्च न्यायलय तथा राष्ट्रपति को इस मामले में गंभीरता से विचार करना चाहिए...न्याय इंसानियत के जिन्दा रहने का मूल तत्व है इसलिए इसे हर हाल में दूषित होने से बचाया जाना चाहिए ...

satyendra said...

@ honesty project democracy

सही कहा आपने। हालांकि न्यायालय में पारदर्शिता कहीं भी नहीं है। इसका कारण है कि वहां नियुक्ति प्रक्रिया ही पारदर्शी नहीं है। इस समय पैसे कमाने की प्रवृत्ति कुछ ज्यादा बढ़ी है- इसीलिए अगर पिछले १ दशक के उच्च स्तरीय फैसलों को देखें तो वे आम लोगों के हित में नहीं आए हैं। इसका एक उदाहरण दिल्ली में निजी स्कूलों द्वारा वसूली जा रही फीस का मामला है, जिसमें न्यायालय ने निजी स्कूलों के मालिकान के हित में फैसला दिया। और भी तमाम उल्लेखनीय मामले हैं जहां पूरी व्यवस्था धन के सामने ध्वस्त नजर आती है।