वाम-दक्षिण के बीच फंसा बीमार ग्रीस
सत्येन्द्र प्रताप सिंह
ग्रीस बीमार है। खुली बाजार व्यवस्था के समर्थक उसका इलाज करने को तैयार हैं। दक्षिणपंथी राजनीतिक दल न्यू डेमोक्रेसी के सत्ता के करीब पहुंचने मात्र से ऐसी खबरें आने लगीं कि दुनिया को राहत मिल गई। उम्मीद बनी कि अगर न्यू डेमोक्रेसी के नेता एंटोनिस समरास सरकार बनाते हैं तो वह बेलआउट पैकेज स्वीकार कर लेंगे और चल रही आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाएंगे।
आइए ग्रीस के हाल फिलहाल की राजनीतिक यात्रा पर नजर डाल लें। सेना का शासन धराशायी होने के बाद1975 में हुए जनमत संग्रह में ग्रीस के लोगों ने राजशाही को अस्वीकार कर दिया। एंड्रियास पापांद्राऊ की पानहेलेनिक सोसलिस्ट मूवमेंट (पासोक) और कारामानलिस की दक्षिणपंथी न्यू डेमोक्रेसी ने वहां की राजनीति पर कब्जा जमा लिया। ग्रीस पर करीब 4 दशक से इन्हीं दलों का शासन है। लेकिन आर्थिक संकट बढ़ने के साथ ही जन अधिकारों से सरोकार रखने वाले दलों गोल्डन डान और सिरिजा ने मतों पर अपना कब्जा बढ़ाना शुरू किया (इन दलों को क्रमशः माओवादी और ट्राटस्कियन भी कहा जाता है)।
पिछले 6 मई को हुए आम चुनाव में ग्रीस में खंडित जनादेश मिला। कोई सरकार न बनने की वजह से पिछले रविवार को फिर चुनाव कराए गए। चुनाव के पहले आशंका जताई गई कि अगर सिरिजा चुनाव जीत जाती है तो आर्थिक सुधारों को खतरा है। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चेताया कि ग्रीस संकट की वजह से डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है। अगर बेलआउट समर्थक दक्षिणपंथी दल न्यू डेमोक्रेसी की जीत नहीं हुई तो इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। इसी तरह प्रतिक्रिया जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलैंड ने भी दी थी।
बहरहाल न्यू डेमोक्रेसी की जीत से वैश्विक पूंजीवादी जगत उत्साह से लबरेज है। सभी मिलकर ग्रीस की अर्थव्यवस्था बचाने को तत्पर भी हैं। ग्रीस चाहता है कि उसे बेलआउट पैकेज के बदले लादी जा रही शर्तों में कुछ ढील मिल जाए। तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए आईएमएफ की एक प्रवक्ता कोनी लोत्ज ने कहा कि वित्तीय बेल आउट पाने वाले देशों के लिए थोड़े बहुत तालमेल अस्वाभाविक नहीं हैं। उन्होंने कहा, “यह आर्थिक कार्यक्रम स्थायी नहीं हैं।” हालांकि जर्मनी की चांसलर मार्केल ने कोई जोरदार उत्साह नहीं दिखाया है। उन्होंने कहा है, “यह बहुत ही स्पष्ट है कि पिछले समय में सुधार संबंधी किए गए समझौते सही कदम थे और उन्हें आगे भी लागू किया जाना चाहिए।”
इस राहत पैकेज के बदले लादी जा रही शर्तों पर भी गौर करना जरूरी है। इसमें सरकारी नौकरियों में तत्काल 15,000 की कटौती और 2015 तक डेढ़ लाख सरकारी नौकरियां घटाने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही हर कर्मचारी के वेतन में 22 प्रतिशत की कटौती के साथ 2012 तक पेंशन में 30 करोड़ यूरो की कटौती करना है। सरकारी खर्च में कटौती के साथ निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना भी शर्त में शामिल किया गया है।
ग्रीस की संसद में कुल 300 सीटें हैं। इस चुनाव में न्यू डेमोक्रेसी को 129 सीटें मिली हैं। पार्टी का दावा है कि वह इस बार सरकार बना लेगी। वहीं पसोक को 33 सीटें मिली हैं। वामपंथी दल सिरिजा को 71 सीटें, गोल्डन डान को 18, केकेई को 12, डेमोक्रेटिक लेफ्ट को 17 व इंडिपेंडेंट ग्रीक को 20 सीटें मिली हैं। ऐसे में पूंजीवाद की चपेट में आया डूबता ग्रीस अभी भी अनिश्चितता के भंवर में है। बेलआउट पैकेज ने अगर उल्टा असर दिखाया, ज्यादा पैसे आने से महंगाई दर बढ़ी और विकास दर नीचे गई तो फिर उसे कर्ज लौटाने के संकट से जूझना होगा। ऐसे में यह कहना बहुत मुश्किल है कि ग्रीस यूरो जोन में बना रह सकेगा या नहीं। साथ ही यह भी कहना मुश्किल है कि अल्पमत की सरकार कितने दिन तक खिंचेगी और दुर्दशाग्रस्त ग्रीक कब तक दक्षिणपंथी दलों पर भरोसा कायम रख सकेंगे।
3 comments:
shandar
shandar
भई ऐसा भी क्या शानदार है ram ram जी!!
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