Sunday, December 2, 2007

देर से आंख खुलने का सियापा है क्या...



अखिलेश
इतनी हाय तौबा काहे मचाये हो बबुआ, माकपा को नहीं जानते थे का, ई त बहुते पहिले एक्सपोज़ हो चुकी है.....याद नहीं आ रहा है का... अच्छा त याद दिला देते हैं....कानू सान्याल और चारु मजूमदार को याद करो बाबू....नक्स आन्दोलन याद करो. ....बबुआ याद करो, इन्हीं तथाकथित वामपंथियों ने किस तरह नयी व्यवस्था का सपना देखने वालो से उनकी आँखे छीनने कि कोशिश कि थी.....अब काहे का सियापा ....लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हाथ में दारु और लिंग के पास कट्टा खोंस कर हिदू धर्म की रक्षा करने निकले लोंगो को वामपंथियो को गरियाने दिया जाये.......

3 comments:

bhupendra said...

aacha likha hai. jaari rakhe.

Satyendra PS said...

याद करो अिखलेश के वो शुरुआती िदन, जब वो महामना पं. मदन मोहन मालवीय के पवॊ पऱांगण में आया था। िकतना शरीफ और नेकिदल लगता था, ठीक उसी तरह िजस तरह नक्सल आंदोलन के समय नक्सली नेता और वतॆमान में उनकी जुगाली करने वाले सबसे िशिॐत और सभ्य होने का दंभ भरने वाले वाम नेता। सारी हकीकत आपके सामने है। इसिलए फैसला भी आपको ही करना है। आस्तीन में सांप है।

Satyendra PS said...

स्वामी जी, अब मैं क्या लिखूं। मेरे नाम से गुरु ने लिखकर धो दिया है। मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि सांप कहां है? मार्कस् वाद में, या कहीं और....