Monday, June 9, 2008

संभव है पूंजी की सुरक्षा और निश्चित रिटर्न

मनीश कुमार मिश्र


म्युचुअल फंड उद्योग में एक योजना है कैपिटल प्रोटेक्शन ओरियेंटेड स्कीम। जैसा कि नाम से जाहिर है, इसका मकसद पूंजी को सुरक्षित रखना है।
संरचना के लिहाज से देखें तो यह म्युचुअल फंडों की दूसरी फिक्स्ड मैच्योरिटी योजना की जैसी ही है। निवेशकों के लिए संरचना की दृष्टि से समान लेकिनअलग-अलग नाम वाले ये दोनों फंड उलझन भरे हो सकते हैं। यह जानना आवश्यक है कि इन दो फंडों में किस प्रकार की समानताएं और असमानताएं हैं। आइए हम दोनों फंडों की पेशकश का अलग-अलग विश्लेषण करके देखें।

फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान
फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी) एक नियत कालिक ऋण फंड है जिसके परिपक्वता की एक निश्चित अवधि होती है। इनमें निवेश केवल नए फंड ऑफर के दौरान ही किया जा सकता है। एफएमपी कोष का एक छोटा हिस्सा इक्विटी में भी निवेश कर सकते हैं। इनका लक्ष्य होता है कि वे एक निश्चित रिटर्न दें। निवेश के समय से लेकर परिपक्वता तक इनकी लॉक-इन अवधि होती है। यह बात तो स्पष्ट है कि बाजार से जुडे निवेश की वजह से प्रतिफल की न तो गारंटी दी जा सकती है और न ही निश्चित प्रतिफल की आशा की जा सकती है। इसलिए तय प्रतिफल में कमी या बढ़ोतरी, जो बाजार के उतार-चढ़ावों से होती है, की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

कैपिटल प्रोटेक्शन ओरियेंटेड स्कीम (सीपीओएस)
कैपिटल प्रोटेक्शन ओरियेंटेड स्कीम (सीपीओएस) नियत कालिक ऋण फंड (डेट फंड)है। इसका मुख्य उद्देश्य निवेश की गई पूंजी को सुरक्षित रखने का है। सबसे बड़ी बात तो यह कि इसमें पूंजी की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती है। इसकी पोर्टफोलियो रचना कुछ इस तरह की होती है कि निवेशकों को परिपक्वता के समय कम से कम निवेश की गई राशि वापस जरूर मिल जाए।

सीपीओएस एवं एफएमपी में समानताएं
एफएमपी और सीपीओएस संरचना की दृष्टि से एक-दूसरे के बराबर होते हैं। दोनों ही योजनाएं में यह कोशिश की जाती है कि ऋण (डेट) में निवेश कर स्थिरता बरकरार रखी जाए और इसमें इक्विटी की भी भूमिका हो। आम तौर पर ये फंड कोष का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 80 प्रतिशत) डेट योजनाओं (ऋण उपकरणों) में एवं शेष (लगभग 20 प्रतिशत) इक्विटी में निवेश करते हैं।पोर्टफोलियो इस प्रकार बनाया जाता है कि ऋण उपकरणों में निवेश की गई राशि, परिपक्वता के समय शुरूआती निवेश की राशि के लगभग बराबर होती है। उदाहरण के लिए 100 रुपये की राशि में से 80 रुपए कंपनी ऋण योजनाओं में निवेश करती है जो परिपक्वता के समय 100 रुपये के बराबर हो जाती है। इस प्रकार ऋण पोर्टफोलियो में किसी निवेशक द्वारा शुरू-शुरू में लगाए गए पैसे को सुरक्षित रखा जाता है वहीं इक्विटी पोर्टफोलियो (इस मामले में 20 रुपए ) का उपयोग मुनाफा देने के लिए किया जाता है।

एफएमपी और सीपीओएस में भिन्नताएं
एफएमपी एवं सीपीओएस में कुछ भिन्नताएं भी हैं। सीपीओएस पूंजी संरक्षण की तरफ ज्यादा ध्यान देते हैं। इसलिए इस योजना को परिभाषित करने वाली विशेषताएं भी पूंजी संरक्षण के लिए होती हैं।जबकि एफएमपी रिटर्न देने वाले निवेश का विकल्प है और यह पूंजी सुरक्षित रखने की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देता है। ऐसे फंड का प्राथमिक लक्ष्य होता है ज्यादा रिटर्न देने का प्रयास करना।सेबी के दिशानिर्देशों के मुताबिक सभी परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों के लिए यह अनिवार्य है कि वे सीपीओएस के प्रस्तावित पोर्टफोलियो की रेटिंग सेबी द्वारा पंजीकृत के्रडिट रेटिंग एजेंसी से करवाएं। इसके अलावा इस रेटिंग की तिमाही समीक्षा की जाती है और परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी यह सुनिश्चित करती है कि पोर्टफोलियो में शामिल ऋण योजनाओं की निवेश रेटिंग सबसे ऊंची यानी एएए या पी 1 + जैसी जरूर हो। एफएमपी शुरूआत में ही सबसे ऊंची रेटिंग वाली ऋण योजनाओं में निवेश करते हैं, हालांकि किन डेट योजनाओं में निवेश किया जाए, इसकी उन्हें इसका चुनाव करने की खुली छूट होती है। सीपीओएस की तरह ही एफएमपी के लिए भी यह आवश्यक है कि वे अपने पोर्टफोलियो की किसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी से रेटिंग कराएं। सीपीओएस तय अवधि के होते हैं। इसमें से निवेशक बीच में ही अपना पैसा नहीं निकाल सकते। इसलिए निवेशकों को सलाह दी जाती है कि सीपीओएस में तभी निवेश करें जब उनके पास फालतू पैसा हो और जिसे वे लंबे समय के लिए लगा सकते हों। दूसरी तरफ एफएमपी के निवेशकों को यह विकल्प होता है कि वे चाहें तो परिपक्वता से पहले ही वे अपना निवेश वापस ले सकते हैं। हालांकि परिपक्वता से पहले योजना से बाहर होने पर निकासी प्रभार लगाया जा सकता है। यह प्रभार फंड हाउस लगाते हैं। निवेशक यह समझकर ज्यादा बेहतर निर्णय कर सकते हैं कि सीपीओएस एवं एफएमपी दोनों अलग-अलग प्रकार के निवेशकों के लिए है। वैसे निवेशक जो पूंजी की सुरक्षा को पूंजी वृद्धि की अपेक्षा ज्यादा तरजीह देते हैं सीपीओएस का चयन कर सकते हैं। दूसरी तरफ वैसे निवेशक जो एक निश्चित आय चाहते हैं, एफएमपी का चुनाव कर सकते हैं। निवेशकों के लिए यह जरूरी है कि वे दोनों ही निवेश विकल्पों को ठीक से जान लें और उसके बाद अपनी जरूरत के अनुसार निवेश करें।

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