बिहार में विकास का पहिया चला तो देश भर में बदलने लगी आबोहवा
सत्येन्द्र प्रताप सिंह
बिहार के भभुआ जिले के संतोष कुमार ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त की। बीए और एमए की पढ़ाई पूरा करने के बाद उन्हें समझ में नहीं आया कि क्या काम करें। दिल्ली आकर सिविल सेवा की तैयारी भी की, लेकिन सफलता नहीं मिली। दिल्ली में भी मन माफिक काम नहीं मिला, तो वे घर वापस लौट गए।
शुक्र है कि अब वे शिक्षा मित्र के रूप में अपने गांव सातो अवंती के ही प्राथमिक विद्यालय में पढ़ा रहे हैं और उनकी रोजी-रोटी का संकट दूर हो गया। प्राथमिक स्कूलों के निर्माण के साथ ही करीब 1 लाख शिक्षकों की नियुक्तियां इस सरकार के कार्यकाल के दौरान हुई हैं। बेरोजगार नौजवान शिक्षा मित्र के रूप में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। किसानों को बाजार से जोड़ने की कोशिश के साथ ही वर्ष 2008 को कृषि वर्ष घोषित किया है।
मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार कार्यक्रम के तहत कुल 3491.471 लाख रुपये की लागत से योजना कार्यान्वित की जाएगी। बिहार के स्थानिक आयुक्त चंद्र किशोर मिश्र ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रदेश के प्रमुख ने किसानों को बुलाकर बातचीत की और उनकी समस्याओं और जरूरतों को सुनने के बाद कृषि क्षेत्र के विकास के लिए रोडमैप तैयार किया गया है। बिहार मूल के आलोक कुमार दिल्ली में विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण करते हैं।
पटना में डॉक्यूमेंट्री फिल्म के निर्माण के दौरान उन्होंने पाया कि वहां कुछ सकारात्मक बदलाव आए हैं। उन्होंने कहा, 'ऐसा नहीं है कि राज्य में विकास की आंधी आई है और हमें यह उम्मीद भी नहीं करना चाहिए कि रातों रात कोई क्रांतिकारी बदलाव आ जाएगा। लेकिन इतना जरूर है कि गांवों में सड़कें बन रही हैं। हाईवे की स्थिति में सुधार आया है। हां, इतना जरूर है कि नई सरकार के सत्ता में आने के बाद सकारात्मक माहौल बना है और लोगों की उम्मीदें जगी हैं।'
वैशाली जिले के लालगंज इलाके के निवासी शांतनु पटना उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करते हैं। उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था पटरी पर आ रही है। अधिकारी आम लोगों की बात सुनते हैं। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा बदलाव स्वास्थ्य के क्षेत्र में आया है। गांवों में कांट्रैक्ट पर चिकित्सकों की नियुक्तियां हुईं हैं और वे सही ढंग से इलाज कर रहे हैं। हालांकि उन्हें रोजगार को लेकर निराशा है। उन्होंने कहा, 'सड़कों, स्कूलों के निर्माण में लोगों को काम तो मिल रहा है, लेकिन यह रोजगार का स्थाई समाधान नहीं है।
सरकार को राज्य में छोटे उद्योगों के विकास पर भी ध्यान देने की जरूरत है।' शिक्षा के क्षेत्र के साथ ही स्वास्थ्य क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर नियुक्तियां हुईं हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नवंबर 2007 में अपनी सरकार के 2 साल के कार्यकाल पूरा होने के अवसर पर दिल्ली में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा था, 'रोजगार और बेहतरी के लिए राज्य से बाहर जाने वालों को रोका नहीं जा सकता।
हमारा लक्ष्य है कि उन लोगों को बिहार में ही काम मिल जाए, जो दो जून की रोटी के लिए अपना घर छोड़कर दूसरे राज्यों में मजदूरी करने जाते हैं।' अब इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में हो रहे विकास ने मुख्यमंत्री का साथ दिया है और लोग मजबूरी के चलते बिहार नहीं छोड़ रहे हैं। जनता दरबार के माध्यम से नीतीश रोजगार और गृह और कुटीर उद्योग विकसित करने में आम लोगों को आ रही दिक्कतें भी सुनी जाती हैं।
साभार : bshindi.com
8 comments:
लालू प्रसाद सुन रहे हैं?
और क्या वे लोग सुन रहें हैं जो बिहार को 'बिमारू' की चरम स्थिति मानता था.
बदलाव तो आंधी तभी बनता है जब क्रांति हो, वरन तो उसे धीरे-धीरे ही आना है. बस यही आशा है कि आगे भी बिहार बढ़ता रहे.
यदि यह सच ह तो बहुत खुशी की बात है।
घुघूती बासूती
शुरुआत होनी जरूरी थी. और हुई भी है. ये अच्छी बात है.
खुशी की खबर। अच्छी जानकारी परोसा है आपने। साधुवाद।
उत्साहजनक पोस्ट,
वह सुबह कभी तो आयेगी....
और लो..पौ फटने का उजियाला दिखने लग पड़ा !
यह तो बहुत अच्छी बात है.शुभकामनाऐं.
दरअसल बिहार में निराशा का वातावरण था, हालत यहां तक पहुंच गई थी कि लोगों ने उम्मीदें छोड़ दी थीं। अब आस जगी है और सभी मिल-जुलकर काम कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि वहां रातोंरात बदलाव हो जाएगा, लेकिन उम्मीद तो है ही। Cyril Gupta जी, लालू सुनें या न सुनें सकारात्मक माहौल तो बना ही है। घूसखोरी अब भी हो रही है। राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के पैसे खाए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी काम तो हो ही रहा है, इसमें संदेह नहीं है।
सत्येन्द्र प्रताप सिंह
२०-२५ साल टूटे को तोड़ने का रिकॉर्ड रहा है पिछले सारी सरकार का ! बिहार जरूर बदला है और बदलने को आतुर है . बिल्कुल सही रिपोर्ट लाने का साधुवाद .इस रिपोर्ट से तमाम प्रकार को सिख लेनी चाहिए . सकारात्मक लेख रिपोर्ट ऐसे लिखा, दिखाया जाता है.
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