Thursday, June 12, 2008

आखिर पेट्रोलियम पदार्थो की बढ़ी कीमतों पर हंगामा है क्यों बरपा




सत्येन्द्र प्रताप सिंह
तेल की ऊंची कीमतों की उपभोक्ता पर दोहरी मार पड़ती है। इनका अन्य जिंसों की कीमतों पर भी असर पड़ता है। हाल ही में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ने से राजनीतिक दलों में हलचल मच गई।
मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ही नहीं बल्कि कांग्रेस के सहयोगी दल भी इन कीमतों को बढ़ाए जाने से काफी खफा हैं। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ने से जिंसों के दाम बढ़ने तय हैं। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों का राजनीतिक अर्थशास्त्र पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। महंगाई का असर हाल के कर्नाटक चुनावों पर भी पड़ा और दक्षिण भारत में पहली बार अपने दम पर कमल खिल गया। केंद्र सरकार को आगामी लोकसभा और विधान सभा चुनावों की चिंता सता रही है, वहीं विपक्ष इस मसले पर कोई भी मौका गंवाना नहीं चाहता है।

रुला चुकी है महंगाई
अगर हम इतिहास में जाएं तो स्वतंत्रता के बाद से ही इसका साफ प्रभाव नजर आने लगा था। हार्वर्ड और मैरीलैंड विश्वविद्यालय के विद्वानों द्वारा हाल में किए गए एक शोध के मुताबिक भारत में सर्वाधिक महंगाई दर 1943 में रही, जो 53।8 प्रतिशत थी। ध्यान रहे कि अंग्रेजों के शासनकाल में उस साल बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा था। 10 जनवरी 1942 से थोक मूल्य सूचकांक के आंकड़े दिए जा रहे हैं। उन दिनों 23 जिंसों को इसमें शामिल किया गया था और इनके दामों का केवल एक नमूना लिया जाता था। वर्तमान में सूचकांक में जिंसों की संख्या बढ़कर 435 हो गई है और दामों के 1918 नमूने लिए जाते हैं जो विभिन्न जगहों से आते हैं। वैसे अगर देखें तो कीमतों में वृध्दि स्वाभाविक नजर आती है और इसका राजनीति, राजनीतिक दलों या प्रधानमंत्री से कोई लेना देना नहीं होता है। भारत के स्वतंत्र होने के बाद से हर दस या पांच साल बाद कीमतों में जोरदार उछाल आता है। उस समय चाहे कांग्रेस सत्ता में रहे, भाजपा रही हो या कम समय के लिए कोई भी सरकार रही हो, इस पर किसी का नियंत्रण नहीं होता। 1956-57 जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में महंगाई दर 13.6 प्रतिशत रही। लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में 1964-65 में यह 11.5 प्रतिशत थी। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 1974-75 में यह दर सबसे ऊपर 24.9 प्रतिशत पर पहुंच गई। जनता पार्टी सत्ता में आई तो महंगाई ने चौधरी चरण सिंह को भी त्रस्त किया और यह 17.3 प्रतिशत रही। चंद्रशेखर का कार्यकाल तो बहुत कम, महज 7 माह रहा, लेकिन महंगाई दर 10.2 प्रतिशत बनी रही। नरसिंह राव के कार्यकाल 1991-96 के बीच महंगाई दल 8.0 से 13.8 प्रतिशत के बीच बनी रही।

बड़ा चुनावी मुद्दा
भाजपा ने इस समय बढ़ती महंगाई को लेकर मुहिम छेड़ दी है। पेट्रोल की कीमतें बढ़ने के बाद वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार की मौत का फरमान है। यह कदम केंद्र में अवसरवादी गठबंधन और संप्रग सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन का नतीजा है। याद रहे कि यह वही भाजपा है जिसके शासनकाल में महंगाई दर 7.2 प्रतिशत थी और इसका इस कदर राजनीतिकरण हुआ कि केवल प्याज की कीमतों ने दिल्ली में भाजपा को खून के आंसू रुला दिया था। इस बार कांग्रेस की बारी है।

विभिन्न क्षेत्रों पर असर
पेट्रोलिम पदार्थों की कीमतों के बढ़ने पर आम उपभोग की वस्तुओं और खाद्य पदार्थों पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ेगा। ट्रकों के मालभाड़े में बढ़ोतरी से आवक पर असर होगा। इसके साथ ही मंदी की मार झेल रहे आटोमोबाइल सेक्टर पर भी इसका असर नजर आने लगा है। हालांकि चार पहिया वाहनों की बिक्री पिछले माह की तुलना में घटी है। इसके साथ साथ कंपनियों को चार पहिया वाहनों की कीमतों को घटाने पर भी मजबूर होना पड़ा है। किसानों पर इसकी जोरदार मार पड़ेगी। देश के ज्यादातर हिस्सों में किसान फसलों की सिंचाई के लिए डीजल का इस्तेमाल करते हैं। इससे उनकी खेती का खर्च बढ़ जाएगा। साथ ही मंडियों के निकट के किसानों को भी तैयार फसलों को मंडियों में पहुंचाने के लिए अधिक खर्च वहन करना पड़ेगा। अधिक पैदावार की हालत में भी वे कच्चे माल के खराब होने के डर से औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर होंगे।

प्रधानमंत्री की सफाई
ऐसा पहली बार हुआ है कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए प्रधानमंत्री को सफाई देनी पड़ी। चार जून को प्रधानमंत्री टेलीविजन स्क्रीन पर नजर आए और उन्होंने अपनी मजबूरियां गिनाईं। उन्होंने स्वीकार किया कि सरकार द्वारा डीजल, पेट्रोल और एलपीजी के दाम बढ़ाना अलोकप्रिय कदम है, लेकिन ईंधन की निर्बाध आपूर्ति के लिए यह जरूरी था। साथ ही अमेरिका के साथ परमाणु करार का विरोध कर रहे लोगों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ परमाणु करार अटका हुआ है। ऐसे में परमाणु ऊर्जा का विकल्प अपनाने के लिए उन्होंने समर्थन मांगा। इसके दूसरे दिन ही प्रधानमंत्री ने विदेशी दौरों और सरकारी खर्चों में कटौती करने के लिए विभागों को पत्र लिखा।

विरोध का दौर
भाजपा ने पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी को संप्रग सरकार का आर्थिक आतंकवाद क हा है। साथ ही इसके खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन भी किया गया। कांग्रेस के सहयोगी वाम शासित प्रदेशों पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में मूल्य वृध्दि के खिलाफ प्रदर्शन हुए। हर जगह विरोध का मोर्चा बड़े कम्युनिस्ट नेताओं ने संभाल रखा था। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र सरकार से समर्थन वापसी की चेतावनी तक दे डाली।महंगाई उफान पर है। 24 मई को समाप्त सप्ताह में अनाज, कागजों और खाद्य तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से महंगाई दर पिछले साढ़े तीन साल के उच्चतम स्तर 8.24 प्रतिशत पर पहुंच गई है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि यह अभी 9 प्रतिशत के आंकड़े को पार करेगी।

भले ही महंगाई हर सरकार के कार्यकाल में बढ़ती है, राजनीति का तकाजा है कि सत्तापक्ष बढ़ोतरी के कारणों को गिनाता है और विपक्ष उसका राजनीतिक फायदा उठाने को सोचता है। इसके बीच में खड़ी रहती है मूकदर्शक जनता। किसी शायर ने ठीक ही कहा है:

फुगां कि मुझ गरीब को, ये हुक्म है हयात का। समझ हर एक राज को, मगर फरेब खाए जा।

साभारः बिजनेस स्टैंडर्ड

2 comments:

bhupendra said...

हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मगर कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए।
सूरत बदलने की ही कवायद में सभी लगे हैं। आम आदमी की जेब पर डाका पड़ा है और आप चाहते हैं कि हंगामा भी न हो।

Satyendra PS said...

फुगां कि मुझ गरीब को, ये हुक्म है हयात का। समझ हर एक राज को, मगर फरेब खाए जा।

इन अंतिम पंक्तियों में ही आम आदमी की व्यथा है। बाकी तो व्याख्या है कि क्या परिस्थितियां हैं और उस पर किस तरह की राजनीति हो रही है, या होती रही है।
आपका फीडबैक हमें संबल प्रदान करता है।
सत्येन्द्र प्रताप सिंह
वरिष्ठ उप संपादक
बिजनेस स्टैंडर्ड, नई दिल्ली