Friday, October 10, 2008

एक खांटी अमेरिकी सीईओ की चिट्ठी

श्यामल मजूमदार / October 08, 2008
मेरे प्यारे पाठकों, अमेरिकी कॉर्पोरेट दुनिया के एक पोस्टर ब्वॉय के तौर पर मुझे हफ्ते के सातों दिन और दिन के चौबीसों घंटे खबरों में रहना काफी पसंद है।
लेकिन अगर आपको भी मेरी आंखों के नीचे काले धब्बे दिखाई देते हों, तो यह मेरी गलती नहीं है। दरअसल यह गलती है उन अखबारों की, जिनमें बड़ी-बड़ी कंपनियों के ऊंचे-ऊंचे ओहदेदारों की तस्वीर उनके मोटे-मोटे वेतन के साथ छपी होती है। हालांकि, मैंने अब इन बातों की तरफ ध्यान छोड़ दिया है।

मुझे पूरा भरोसा है कि कुछ अखबारों में हाल ही में छपा वह सर्वे पूरी तरह से झूठा और निराधार था। भाई साहब, वही सर्वेक्षण जिसमें 80 फीसदी अमेरिकियों ने यह कहा था कि कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को जरूरत से ज्यादा मोटा वेतन मिलता है। आखिरकार मैंने अपने वेतन को सबसे छुपाकर रखने की इतनी जबरदस्त कोशिश जो की है। लेकिन कुछ लोगों में दबी-छुपी बातों को खोद निकालने का कीड़ा होता है। इसलिए तो मुझे इस बात पर कोई हैरत नहीं हुई, जब उन लोगों ने जैक वेल्स के जीई से जुदा होने से जुड़े कई बड़े राजों को दुनिया के सामने खोल कर रख दिया था। वह भी ऐसे राज जिनके बारे में खुद कंपनी ने शुरुआत में कुछ कहने से इनकार कर दिया था।

अब तो आपको भी मालूम हो चला होगा कि अमेरिकी कॉर्पोरेट जगत में मगरमच्छ समझी जाने वाली उस कंपनी ने अपने पूर्व सीईओ को रुखसत करने के लिए उन्हें एक मोटा-ताजा रिटायरमेंट पैकेज दिया था। उस विदाई के तोहफे में कंपनी ने उन्हें न्यूयॉर्क के पॉश मैनहट्टन इलाके में एक फ्लैट, कई महंगे क्लबों की मेंबरशिप और यहां तक कि कॉर्पोरेट जेट में मुफ्त में सैर-सपाटा करने की इजाजत भी दी थी। हालांकि, सभी ऐसे नहीं होते। कुछ तो खुले तौर पर यह मान लेते हैं कि वे कंपनियों की सुविधाओं का जमकर इस्तेमाल करते हैं।

जॉन केनेथ गैल्ब्रेथ ने बिल्कुल सही कहा था कि एक बड़ी कंपनी के सीईओ का वेतन अक्सर उसका खुद को दिया गया सबसे बेहतरीन तोहफा होता है। इस बात की सबसे अच्छी मिसाल हैं लीमन ब्रदर्स के मुखिया रिचर्ड फ्लूड। उन्होंने खुद की खुशी को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया। उन्होंने अपनी कंपनी को आसमान की ऊंचाई से पाताल की गहराई तक पहुंचाने के लिए कंपनी से अपने काम के हर घंटे के लिए 17 हजार डॉलर लिए थे। साथ ही, उन्होंने अपने मातहतों का भी पूरा ध्यान रखा और उनके बीच जमकर महंगे शेयर बांटे। लेकिन सारा दोष अकेले उनके और उनकी टीम के सिर ही क्यों मढ़ा जाए? आपने टायको के पूर्व सीईओ की वह मशहूर कहानी तो सुनी ही होगी कि उन्होंने पूरे छह हजार डॉलर में अपने बाथरूम के पर्दे खरीदे और बिल कंपनी के नाम भिजवा दिया। अभी हाल ही में बैंक ऑफ अमेरिका ने मेरिल लिंच का अधिग्रहण कर लिया।लेकिन इसके करीब एक साल पहले इस कंपनी ने अपने तत्कालीन सीईओ स्टैनली ओ'नील को रुखसत करने के लिए जो पैकेज दिया था, उसकी कीमत आज 6।6 करोड़ डॉलर है। इसके अलावा भी कई मिसालें हैं।

मुझे तो सबसे ज्यादा जलन अभी हाल ही में ह्यूलिट पैकर्ड से निकाली गईं उनकी सीईओ कार्ली फियोरिना से होती है। इसलिए नहीं कि उन्हें कंपनी छोड़ने के लिए 4.2 करोड़ डॉलर मिले, बल्कि इसलिए क्योंकि उनका जिक्र आज कल अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव अभियानों में खूब हो रहा है। हालांकि, इस चर्चा की वजह बहुत अच्छी नहीं है। राष्ट्रपति के पद के लिए डेमोक्रेट उम्मीदवार बराक ओबामा ने अभी हाल ही में अपने एक नए विज्ञापन में अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी जॉन मैकेन और कंपनियों के बड़े अफसरों के लिए सोने के पैरासूटों को जोड़ा है। इस 30 सेकंड के विज्ञापन में फियोरिना पर खासा जोर दिया गया है। उन्हें इसमें हद से ज्यादा मोटा वेतन लेने के प्रतीक के रूप में दिखलाया है।

अगर ओबामा राष्ट्रपति बन गए तो उनका यह गुस्सा हम लोगों को काफी भारी पड़ सकता है। वह दुनिया को यह बताने में जुटे हुए हैं कि सभी अमेरिकी कंपनियों के सीईओ आज की तारीख में 1.05 करोड़ डॉलर का वेतन पा रहे हैं।साथ ही, वे यह भी बता रहे हैं कि हम एक औसत अमेरिकी कर्मचारी की तुलना में 344 गुना ज्यादा कमा रहे हैं। यह देखकर बहुत दुख होता है। इस तरह के खुलासे हमारी जिंदगियों को और मुश्किल ही बना देंगे। वैसे, हकीकत में इसकी उम्मीद कम ही है। सुना था कि बुश बेल-ऑउट प्लान में एक नया नियम जोड़ने के बारे में सोच रहे हैं। इस नए नियम के मुताबिक सरकारी मदद से बचाई गईं कंपनियों के लिए अपने बड़े अधिकारियों को विदाई का तोहफा देना नामुमकिन हो जाएगा।

चर्चा तो हमारे वेतन पर भी लगाम कसने की है। लेकिन इससे नाउम्मीद नहीं हूं। आखिरकार, सरकार का अपनी बातों पर खरा उतरने के मामले में ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है। मिसाल के लिए 1990 के दशक के शुरुआती सालों में कांग्रेस 10 लाख डॉलर से ज्यादा कमाने वाले कार्यकारी अधिकारियों के लिए टैक्स का फंदा और कड़ा कर दिया था। नतीजे उम्मीद के मुताबिक ही थे। हमने प्रोत्साहन और कामकाज पर आधारित वेतन लेना शुरू कर दिया, जो टैक्स के फंदे से बाहर था। इसी वजह से तो मेरे असल वेतन में पिछले कुछ सालों में थोड़ा-बहुत ही इजाफा हुआ है। लेकिन मेरी दूसरे तरीकों से होने वाली कमाई में जबरदस्त इजाफा हुआ है। इसलिए मुझे पूरा भरोसा है कि इस संकट से भी मैं निकल जाऊंगा। अगर कोई दूसरी तरकीब काम न आई तो वह अपना पूरा फॉर्मूला तो काम आएगा ही।

आखिरकार, किस कर्मचारी को कितना वेतन मिलना चाहिए, यह फैसला कांग्रेस को नहीं, बल्कि कंपनी के निदेशक मंडल को करना चाहिए। साथ ही, बड़े अफसरों के वेतन पर लगाम कसना मुसीबतों को बुलावा दे सकता है। हमें खुद इतना यकीन इसलिए है कि खुद अमेरिकी वित्त मंत्री हेनरी पॉलसन अभी हाल तक गोल्डमैन सैक्स के सीईओ रहे थे।साथ ही, उन्हें भी कंपनी से स्टॉक ऑप्शंस मिले हैं, जिनकी कुल कीमत आज की तारीख में 50 करोड़ डॉलर है। वह अपने भाइयों को इतनी जल्दी नहीं भूल सकते। वैसे मैं एआईजी के पूर्व सीईओ रॉबर्ट विलियम्सटैड की पेश की गई मिसाल से जरूर परेशान हूं। उन्होंने पिछले हफ्ते अपने रास्ते जुदा करने के लिए कंपनी द्वारा पेशकश की गई 2.2 करोड़ डॉलर की रकम पर यह कहते हुए लात मार दी कि उन्हें कंपनी को खुद अपने पैरों पर खड़ा करने का मौका नहीं दिया गया। उन जैसे लोगों को खत्म होने दीजिए। मेरा तो बड़ी शिद्दत से यह मानना है कि लोगों की याददाश्त बड़ी छोटी होती है।

आपका अजीज
सीईओ,ए 2जेड इंक
www.bshindi.com

1 comment:

रवि रतलामी said...

श्यामल के इस व्यंग्य लेख ने तो वाकई मजा ला दिया.