Thursday, July 16, 2009

नाबालिगों की रक्षा के लिए भी होता था धारा 377 का इस्तेमाल

"क्या यह मामला समलैंगिक संबंध रखने वालों की नैतिक विजय है, ऐसा मुश्किल से कहा जा सकता है। ऐसा एक भी मामला नहीं है जहां इस धारा का इस्तेमाल समलैंगिकों या सहमति से समलैंगिक संबंध बनाने वालों के खिलाफ किया गया हो।"

श्रीलता मेनन

समलैंगिक संबंधों पर पाबंदी लगाने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल में असंवैधानिक घोषित किया है।
यह फैसला ऐसे लोगों को जीत का झूठा अहसास दिला रहा है जिन्हें लगता है कि यह मामला समलैंगिक अधिकारों की रक्षा करने वाले लोगों और इसका विरोध करने वालों के बीच संघर्ष का था।
लेकिन यह मामला समलैंगिकों के अधिकारों से कतई संबंधित नहीं है। हकीकत तो यह है कि इस धारा का इस्तेमाल नाबालिगों की यौन उत्पीड़न से रक्षा करने में भी किया जाता रहा है।
अवकाश प्राप्त न्यायाधीश जे. एन. सल्डान्हा ने भी एक बार इस धारा का इस्तेमाल यौन उत्पीड़न के शिकार हुए 10 साल के बच्चे को इंसाफ देने में किया था और इस मामले में दोषी पाए गए एक तांत्रिक को 10 साल की कैद व 25 लाख रुपये के जुर्माने की सजा मिली थी।
न्यायमूर्ति सल्डान्हा का कहना है कि किशोर न्याय अधिनियम और बाल अधिनियम बच्चों की रक्षा के लिए मौजूद हैं, लेकिन इन अधिनियमों में यौन उत्पीड़न से बच्चों की रक्षा के लिए कठोर प्रावधान नहीं हैं। उन्होंने कहा - हालांकि यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय तक ही सीमित है, लेकिन अब बेहतर यही होगा कि इस धारा के बारे में बातचीत भूतकाल में ही की जानी चाहिए।
स्वतंत्रता एवं समानता के मौलिक अधिकार के आलोक में इस धारा को उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित किया है। न्यायाधीश ने कहा कि ऐसे में कानूनी रूप से यह सभी अदालतों और भविष्य के मामलों को संदेह के घेरे में लाता है। अब नाबालिगों केलिए क्या बचा है?
क्या यह मामला समलैंगिक संबंध रखने वालों की नैतिक विजय मानी जाएगी, ऐसा मुश्किल से कहा जा सकता है। ऐसा एक भी मामला नहीं है जहां इस धारा का इस्तेमाल समलैंगिकों या सहमति से समलैंगिक संबंध बनाने वालों के खिलाफ किया गया हो।
लेकिन याचिका दाखिल करने वाले संगठन नाज फाउंडेशन का दावा है कि इस कानून की वजह से भारत में समलैंगिक संबंध रखने वाली महिलाओं और पुरुषों, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर लोगों को ब्लैकमेलिंग, उत्पीड़न और मौत का शिकार होना पड़ा है।


http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=21031

2 comments:

डॉ .अनुराग said...

सौ फीसदी सहमत हूँ.... आपसे इसके आलावा इसके दूरगामी परिणाम ओर भी जैसे ऐसे दमप्तियो द्वारा बच्चो के गोद लेने की प्रक्रिया में भागीदारी करना ..

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

लेकिन याचिका दाखिल करने वाले संगठन नाज फाउंडेशन का दावा है कि इस कानून की वजह से भारत में समलैंगिक संबंध रखने वाली महिलाओं और पुरुषों, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर लोगों को ब्लैकमेलिंग, उत्पीड़न और मौत का शिकार होना पड़ा है।

बहुत्राष्ट्रीय कम्पनियों की ओर से प्रायोजित इस सफ़ेद झूठ को भारत के हर तंत्र का पूरा समर्थन हासिल है. इसके मूल में एक ही वजह है और है भारत में एड्स के प्रसार का पुण्य प्रयास. क्योंकि बहुत प्रयासों और हो-हल्ले के बाव्जूद यह रोग भारत में फैल नहीं सका.