बिहार में नीतीश कुमार फिर ५ साल के लिए मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं- २ चरण के चुनाव में ही स्पष्ट हो गया।
दरअसल दुनिया की किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में करीब सात प्रतिशत मतदाता बेवकूफ होते हैं। वे विकास और नेता के कामों को मतदान का आधार बनाते हैं। उनकी कोई राजनीतिक विचारधारा या निष्ठा, पूर्वाग्रह या ग्रंथि नहीं होती। वे अंत तक भ्रमित रहते हैं। बिहार में ऐसे मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में नीतीश ने कहा कि हमने काम किया, लालू ने कहा कि सब स्टंट है और कांग्रेस ने कहा कि सब हमारे पैसे से हुआ। लेकिन ये मतदाता नीतीश कुमार के पक्ष में शत प्रतिशत जाते नजर आ रहे हैं।
दूसरे, जातीय समीकरण नीतीश के खिलाफ था। ऐसे में कांग्रेस बेहतरीन भूमिका निभा रही है। पहले चरण में जहां उसने लालू प्रसाद के भूराबाल (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला) का वोट कांग्रेस ने नीतीश से छीना है, दूसरे चरण में राम विलास पासवान का बेड़ा... गर्क करती कांग्रेस साफ नजर आ रही है।
नीतीश को असल खतरा भूराबाल से ही था, जिस वर्ग ने पिछले चुनाव में यह सोचकर नीतीश को वोट दिया था कि जिस तरह की लूट का अवसर उन्हें श्रीकृष्ण सिंह और जगन्नाथ मिश्र के समय मिला था, वैसा ही अवसर नीतीश के कार्यकाल में मिलेगा। लेकिन इन्हें निराशा ही हाथ लगी है। इनके फ्रस्टेटेड वोट (करीब ३० प्रतिशत) कांग्रेस को जा रहे हैं, वहीं तमाम क्षेत्रीय आदि समीकरण बैठाने में सफल रहे नीतीश के पक्ष में अभी भी ६० प्रतिशत भूराबाल हैं। इस तरह से कांग्रेस, नीतीश कुमार के पक्ष में वोटकटवा की भूमिका में ज्यादा नजर आ रही है।
2 comments:
vishwas nahin hota ki yah aap ne likha hai...
har panktee Judgement kee tarah hai.
भाई रंजीत जी, ये मैने विशुद्ध रूप से ब्लॉग के लिए लिखा है तो इसमें मेरा जजमेंट ही है। कोई खबर थोड़े न लिख रहे थे कि पत्रकारिता के कथित मानकों पर लिखते!
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