अगर भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता अनुराग ठाकुर श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराते हैं तो उससे भारत को क्या फायदा मिलने जा रहा है? आखिर वहां तिरंगा फहराने के पीछे ठाकुर की मंशा क्या है?
तिरंगा फहराना देश के लिए गर्व की बात होती है। प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर ध्वजारोहण करते हैं। इसे स्वतंत्रता मिलने की याद के रूप में मनाते हैं और हम गर्व महसूस करते हैं कि इसी दिन हम स्वतंत्र हुए थे और स्वतंत्रता को खुशी, समृद्धि और गुलामी से मुक्ति के प्रतीक के रूप में एक दूसरे से बांटते हैं। लेकिन लाल चौक पर तिरंगा फहराकर खुशी मनाने का उद्देश्य क्या हो सकता है? तिरंगा फहराना ही है तो आखिर उसे देश भर में प्रचारित कर विवाद क्यों खड़ा किया जा रहा है और इसके पीछे भारतीय जनता पार्टी की मंशा क्या है?
ऐसा भी तो नहीं है कि जो लोग लाल चौक जाकर झंडा नहीं फहरा रहे हैं वे देशभक्त नहीं हैं। रही बात वहां तिरंगा फहराने से रोकने की.. तो मैं दिल्ली में बैठा हूं लेकिन मुझे तो लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराना क्या, वहां लगे पुलिस कर्मी प्राचीर के निकट फटकने भी नहीं देते। इसकी भी मांग होनी चाहिए कि मेरे जैसे आम आदमी को भी लाल किले की प्राचीर पर झंडा फहराने का मौका मिले, नहीं तो मुझे लगता है कि मेरी देशभक्ति खतरे में पड़ जाएगी।
8 comments:
जिन लोगों का कलेजा लाल चौका पर तिरंगा फहराने के लिए हुड़क रहा है। उनकी परेशानी क्या है? लाल चौक माउंट एवरेस्ट पर तो है नहीं। जहां है वहां भी चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात है जाहिर है थोड़ी राजनीतिक नूराकुश्ती के बाद वे झंडा फहरा लेंगे और इस तरह आपसे हमसे बड़े देशभक्त साबित हो जाएंगे। मेरी इल्तिजा है कि वे जाकर दंतेवाड़ा और अबूझमाड़ में तिरंगा फहराकर लौट आएं। आखिर वह भी हमारे देश का ही हिस्सा है और इन दिनों सुर्खियों में भी कश्मीर से ज्यादा है। कश्मीर अब काठ की हांड़ी हो चुका है...
संदीप जी, ऐसी जगह पर तिरंगा फहराने का क्या मतलब, जहां विवाद हो? दूसरी बात यह है कि तिरंगा फहराने के पहले विवाद खड़ा करने के पीछे भी कुछ नीयत या स्वार्थ तो होगा ही। अन्यथा लाल चौक हो या लासालगांव, श्रद्धा तो कहीं भी तिरंगा फहराकर दिखाई जा सकती है। भाजपा को शायद यह गलतफहमी है कि लाल चौक पर तिरंगा फहराने से लोग उसे वोट देने लगेंगे, जबकि उनका चेहरा बेनकाब हो चुका है, उसकी सर्जरी वे करना ही नहीं चाहते।
राजनीति का झण्डा या झण्डे की राजनीति।
जब कुत्ते लालचौक पर पाकिस्तानी झंडा फहराते है तो इन्हें भी तिरंगा फहराने दिजीये, क्या तकलिफ है? इतने परेशान क्यों हो रहे हैं? नौटंकी है तो वही सही. एक बेकार काम पर क्या लिखना? !
फहराने देने से नुकसान क्या है? क्या लाल चौक देश का हिस्सा नहीं है? किसी भी सार्वजनिक स्थल पर कोई भी व्यक्ति फहरा सकता है, फिर वहां क्यों नहीं? यासीन मलिक अपना झण्डा फहराने की बात कर सकता है, उसकी आलोचना करने में आपकी हिम्मत नहीं होती. विवाद तो कहीं भी किया जा सकता है, कल को कहा जा सकता है कि लाल किला मुगलिया शासकों की बनाई हुई जगह है, तो क्या वहां झण्डा फहराना बन्द हो जायेगा. राजनीतिक रस्साकशी को समाप्त करने के लिये न फहराना विकल्प नहीं. विकल्प यह है देश के किसी भी सार्वजनिक स्थल पर झण्डा फहराने की आजादी और सुरक्षा. फिर दंतेवाड़ा, अबूझमाड़ और लाल चौक ही क्यों न हो.
@ संजय बेंगाणी... कुत्ते कैसे झंडा फहराते हैं?
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen... १-आपकी जानकारी की दाद देनी पड़ेगी कि मैं यासीन मलिक का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर सकता।
२- झंडा फहराने जा रहे लोगों को अगर विवाद नहीं करना था, तो देशव्यापी नौटंकी करने की क्या जरूरत थी?
३-अगर झंडा फहराने जा रहे लोगों के आकाओं की मंशा साफ है तो उन्होंने ६ साल सत्ता में रहते हुए क्या ऐसा कर दिया, जिससे मान लिया जाए कि वे कश्मीर समस्या के समाधान के लिए उन्होंने कुछ किया है?
४- अगर कुछ कर दिखाने की मंशा थी तो सत्ता में रहते हुए क्यों नहीं किया, जब हमने उन्हें सत्ता सौंपी थी?
५- कश्मीर जाकर झंडा फहराने वाले उस समय क्यों मुंह में दही जमाए रहते हैं, जब मुंबई में उनके सहयोगी गुंडे पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को भी भारतीय नहीं मानते और उनकी सरेराह पिटाई करते हैं?
प्रवीण जी फिर आपने वन लाइनर बेहतरीन टिप्पणी की है। झंडे की राजनीति भी है और राजनीति का झंडा भी। देखिए इस कवायद से भाजपा कुछ सफल होती है या नहीं...
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