आज किसानों की दुर्दशा सब्जी मंडी में दिखी। फूलगोभी 5 रुपये किलो, आलू 6 रुपये किलो, टमाटर 7 रुपये किलो, मेथी और बथुए का साग 12 रुपये किलो, मूली 3 रुपये किलो, पत्तागोभी 5 रुपये किलो, मटर 7 रुपये किलो मिल गए।
मामला समझ में आ गया। किसानों के खेतों में सब्जियां उगने लगी हैं। क्या सब्जी खरीदने के पहले सोचा जाता है कि अगर बेहतरीन क्वालिटी की फूलगोभी खुदरा बाजार में 5 रुपये किलो बिक रही है तो थोक बाजार में 3 रुपये किलो से ज्यादा के भाव नहीं आई होगी औऱ थोक बाजार में ट्रक पर लादकर लाने वाले कारोबारियों को भी ऐसा तो नहीं है कि डीजल सस्ता मिलने लगा है। उन्होंने अधिक से अधिक किसानों को 2 रुपये किलो दिया होगा, नहीं तो मुनाफा ही नहीं निकलेगा।
क्या यह सरकार, इस देश के वैग्यानिक, जानकार, समझदार, पढ़े लिखे जानकार कोई भी यह सोच रहा है कि गोभी की उत्पादन लागत कितने रुपये किलो होती है? इस महंगाई में 2 रुपये किलो तो नहीं ही होगी, क्योंकि डीजल, खाद, कीटनाशक, बीज, खेती करने के लिए काम आने वाले उपरकरण- कुछ भी तो सस्ते नहीं हुए हैं। आखिर इसका समाधान क्या है? अगर उत्पादन लागत नहीं निकलेगी तो किसान जिंदा कैसे रहेंगे?
1 comment:
कभी यह मँहगाई, कभी मन्दी। किसान दोनों ओर से पिस रहा है।
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