सबकी अपनी अपनी सोच है, विचारों के इन्हीं प्रवाह में जीवन चलता रहता है ... अविरल धारा की तरह...
Sunday, June 29, 2008
'याद बहुत आएंगे जब छूट जाएगा साथ'
सत्येन्द्र प्रताप सिंह
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखक विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल ने अपनी पुस्तक 'एरिया आफ डार्कनेस' में बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में आम आदमी की दयनीय दशा का वर्णन किया है और साथ ही उन्होंने एक अवसर पर बिहार के बारे में कहा कि वहां 'सभ्यता खत्म हो गई है।'
अब बिहार की वह हालत नहीं है। रोजगार के अवसर इस कदर पैदा हुए हैं कि मजदूरों का पलायन रुका है। साथ ही बिहारी मजदूरों पर निर्भर पंजाब जैसे विकसित राज्य में कृषि पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। इसके पीछे खास वजह है कि बिहार के ग्रामीण इलाकों में सड़कों, स्कूलों और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाओं में चल रहे काम से मजदूरों को स्थानीय स्तर पर काम मिलने लगा है।
बिहार की 90 प्रतिशत आबादी गावों में रहती है। 2004-05 में एनएसएसओ के एक सर्वे के मुताबिक बिहार में 42.1 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है, जो करीब वर्तमान जनसंख्या के 80-90 लाख परिवारों के समतुल्य है। बिहार में प्रवासन दर भी सबसे अधिक है। आंकड़ों के मुताबिक प्रति 1000 जनसंख्या पर 39 पुरुष और 17 महिलाएं बिहार छोड़कर दूसरे राज्यों का रुख करते हैं। 2001 में यहां 42.2 लाख परिवार बेघर थे, लेकिन 2008 के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 16 लाख आवासों का निर्माण इंदिरा आवास योजना के तहत कराया जा चुका है। बिहार में सत्ता परिवर्तन के बाद बुनियादी सुविधाओं पर शुरू हुए काम से ऐसी स्थितियां पैदा हुईं हैं। केंद्र सरकार की राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (बिहार के लोगों के शब्दों में कहें तो नरेगा) का लाभ लोगों को मिलने लगा है।यह योजना केंद्र सरकार ने पहले 38 जिलों में से 23 जिलों में ही लागू किया था, लेकिन बिहार सरकार ने इसका विस्तार सभी जिलों में कर दिया। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो नई सड़कों और पुल, नाबार्ड, एमएमजीएसवाई, बीएडीपी, एससीपी और एएसएडी की परियोजनाओं में वित्त वर्ष 2007-08 में कुल 1155.26 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया, जिसमें 1034.89 करोड़ रुपये का कुल काम हुआ है।मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना, जिसमें 500 से 999 की जनसंख्या वाले गावों को सड़क से जोड़ा जाना है, में मार्च 2008 तक कुल 566.12 करोड़ रुपये खर्च करके 1744.11 किलोमीटर सब बेस कार्य, 1235.74 किलोमीटर बेस कार्य 473.38 किलोमीटर कालीकरण कार्य किया जा चुका है। इसके साथ ही वित्त वर्ष 2008-09 में 403.02 करोड़ रुपये का बजटीय लक्ष्य रखा गया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत पहले और दूसरे चरण में 31 मार्च 2008 तक कुल 362.52 करोड़ रुपये व्यय करते हुए 749 पथों, जिनकी कुल लंबाई 1723.59 किमी है, का काम पूरा कर लिया गया है। बिहार सरकार के स्थानिक आयुक्त चंद्र किशोर मिश्र कहते हैं, 'बुनियादी सुविधाओं पर चल रहे काम से न केवल रोजगार के नए अवसर सृजित हुए हैं, बल्कि गांवों और खेतों को बाजार से जोड़ा जा रहा है, जिससे किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिल सके। विकास कार्यों से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार के अवसर बढ़े हैं।'
कुल मिलाकर देखा जाए तो बिहार में काम करने के अवसर बढ़े हैं। इसके साथ ही सकारात्मक माहौल बना है। पंजाब के बड़े किसान भले ही मजदूरों की समस्या से जूझ रहे हैं, लेकिन बिहारी मजदूरों और स्थानीय लोगों को अपने गांव घर में काम मिलने से उनके भीतर उम्मीद जगी है, कि पेट के लिए उन्हें दूसरे राज्यों के अवसरवादी लोगों की गालियां नहीं सुननी पडेंग़ी।
courtsy: bshindi.com
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
यदि ऐसा होता है तो सच्मुश ये आशा की नई किरण होगी,दुआ यही है की बिहार के लोगों को कहीं बाहर जाने के बारे में सोचना भी न पड़े...
हमारी शुभकामनाऐं कि ऐसा जल्द से जल्द हो जाये.
Post a Comment