ऋषभ कृष्ण सक्सेना / नई दिल्ली
हिंदी फिल्मों में गांव के साहूकार तो आपको याद होंगे, जो गरीब अनपढ़ लोगों को तगड़ी ब्याज दर पर कर्ज देकर लूटते हैं।
इनके ठीक उलट खांटी हिंदुस्तानी चिटफंड कंपनियां होती हैं, जिनमें से कुछ वित्तीय गुणा भाग से अनजान लोगों को कम से कम वक्त में ज्यादा से ज्यादा रिटर्न का झांसा देकर लूटती रही हैं। लेकिन आधुनिक वित्तीय प्रणाली की बुनियाद रखने का दावा करने वाले पढ़े-लिखे अमेरिकी भी इस झांसे में फंस सकते हैं, ऐसा किसने सोचा होगा। लेकिन नामी निवेशक बर्नार्ड मैडॉफ ने इन महारथियों को भी नहीं छोड़ा।पोंजी योजना के जरिये आम अमेरिकी निवेशकों की पूंजी लूटने का नायाब तरीका ढूंढने वाला मैडॉफ इसी वजह से आजकल सुर्खियों में है। मजे की बात है कि मैडॉफ ने लूटा भी उन देशों को, जहां के निवेशक सबसे ज्यादा तीसमारखां माने जाते हैं, मसलन अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, जापान और दक्षिण कोरिया। मंदी के दौर में इन निवेशकों को अकेले मैडॉफ ने ही 50 अरब डॉलर यानी करीब 2500 अरब रुपए का चूना लगाया है। मजे की बात है कि इनमें बड़े-बड़े नामी गिरामी बैंक भी शामिल हैं।
कौन है मैडॉफ
मैडॉफ को दुनिया ने तो तभी जाना, जब पिछले हफ्ते पोंजी घोटाले की वजह से उसे गिरफ्तार किया गया। लेकिन अमेरिका और यूरोप में मैडॉफ के मुरीदों की कमी नहीं थी, जो निवेश के तमाम बुनियादी नियमों को ताक पर रखकर 13 फीसदी के गारंटेड सालाना रिटर्न के फेर में उसके एक इशारे पर पैसा लगा देते थे।
बर्नार्ड एल मैडॉफ इनवेस्टमेंट सिक्योरिटीज नाम से निवेश कंपनी चलाने वाले मैडॉफ की वेबसाइट उसे फिनरा के नाम से मशहूर सिक्योरिटीज डीलरों के अमेरिकी संगठन का प्रमुख सदस्य बताती है। वह नैस्डैक के निदेशक मंडल का चेयरमैन भी रह चुका है और प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग की सलाहकार समिति में भी शामिल था। सिक्योरिटीज उद्योग के संघ की ट्रेडिंग समिति में मैडॉफ चेयरमैन था और 12 दिसंबर को गिरफ्तारी से पहले तक वह होफ्सत्रा विश्वविद्यालय और येशिवा विश्वविद्यालय का ट्रस्टी भी था।
क्या था पोंजी का चक्कर
पोंजी दरअसल अमेरिकी निवेशकों के लालच का ही नतीजा थी। भारत में भी कई कंपनियों ने वही किया है, जो मैडॉफ ने किया। उन कंपनियों का जो हश्र यहां हुआ, वही अमेरिका में आखिकार मैडॉफ का भी हो गया। उसने गिरफ्तार होने के बाद साफ लफ्जों में कबूल भी किया कि पोंजी योजना कुछ भी नहीं थी, यह तो 'सफेद झूठ' थी।
दरअसल मैडॉफ बेहतर रिटर्न देने के नाम पर निवेशकों से रकम लेता था। जब रिटर्न देने का मौका आता था, तो वह पुराने निवेशकों को वह रकम दे देता था, जो उसे नए निवेशकों से हासिल हुई थी। इसका मतलब है कि उसके पास तो कोई रकम थी ही नहीं और न ही वह कहीं निवेश कर रहा था यानी 'हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा।'
जांच एजेंसियों के मुताबिक कम से कम पिछले चार साल से वह यही काम कर रहा था। मजे की बात है कि पिछले 15 साल में मैडॉफ पर सवालिया निशान भी लगे, लेकिन वित्तीय जगत में अपनी पहुंच के चलते वह किसी भी कार्रवाई से हमेशा बचता रहा।
कौन हुए शिकार
सत्तर साल के इस शिकारी ने यूरोप के बड़े से बड़े दिग्गज को घुटनों पर ला दिया है। ब्रिटेन के एचएसबीसी बैंक ने कबूल किया है कि मैडॉफ ने उसे तकीबन 100 करोड़ डॉलर का चूना लगाया है। उसके सबसे बड़े शिकारों में यह बैंक शामिल है।
रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड, नोमुरा, नैटिक्सि चोट लगने की बात स्वीकार कर चुके हैं।
फ्रांस के नैटिक्सिस बैंक के 45 करोड़ यूरो इस घोटाले में डूबे हैं और ब्रिटेन की हेज फंड प्रबंधक कंपनी मैन ग्रुप को 36 करोड़ डॉलर की चोट लगी है। नामी हॉलीवुड निदेशक स्टीवन स्पीलबर्ग की वंडकाइंड फाउंडेशन भी मैडॉफ के जाल से बच नहीं पाई। उनके अलावा फ्रांस के बैंक बीएनपी पारिबा और बांको सैंटैंडर को भी मैडॉफ ने चूना लगाया है।
रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड के 60 करोड़ डॉलर मैडॉफ ने पचाए और जापान के नामी गिरामी नोमुरा बैंक के 30 करोड़ डॉलर उसकी जेब में गए हैं। यूरोप के कई दूसरे बैंकों के नाम भी अभी आ सकते हैं।
साभार- http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=11476
1 comment:
बहुत ज्ञान वर्धन हुआ. हम भी नहीं जानते थे कि यह मंड्रोफ कौन है. आभार. नव वर्षग मंगलमय हो.
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