Friday, January 9, 2009

सवालों के घेरे में स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका


"अगर आप रामलिंग राजू से मिलें तो आपके दिमाग में
दो बातें जरूर कौंधेंगी। पहला, भारतीय सीईओ में आपको इतना मृदुभाषी व्यक्ति शायद ही मिले, कभी कभी तो वे इतने धीमे से बोलते हैं कि आपके लिए उसे समझना मुश्किल हो जाएगा।
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अगर आप रामलिंग राजू से मिलें तो आपके दिमाग में दो बातें जरूर कौंधेंगी। पहला, भारतीय सीईओ में आपको इतना मृदुभाषी व्यक्ति शायद ही मिले, कभी कभी तो वे इतने धीमे से बोलते हैं कि आपके लिए उसे समझना मुश्किल हो जाएगा।
और दूसरे, वह तभी खुलकर बोलते हैं जब आप उनसे कार्पोरेट गवनर्स के बारे में बात करें। अगर आप बातचीत को दूसरी ओर मोड़ते हैं, जो सत्यम से जुड़ा हो तो उनके जवाब रटे-रटाए होते

राजू के साथ हुई एक ऐसी ही बैठक याद आ रही है। उस समय राजू ने विस्तार से बातचीत करते हुए बताया था कि सत्यम का मानना है कि बेहतरीन कार्पोरेट गवनर्स कारोबार के बेहतर परिणाम देता है और इससे कंपनी का प्रदर्शन बेहतरीन होता है और हिस्सेदारों को बहुत लाभ मिलता है। उन्होंने बोर होने तक मुझे यह सब कुछ सुनाया था। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि बेहतरीन कार्पोरेट गवनर्स के लिए सत्यम को दो गोल्डन पीकॉक पुरस्कार मिले, इस तरह के पुरस्कार मिलने से कंपनी को भविष्य में लगातार अपने कार्पोरेट गवनर्स में सुधार करने के लिए प्रोत्साहन मिलता

गुरुवार को दिए गए उनके चौंका देने वाले वक्तव्य से पता चलता है कि राजू कार्पोरेट गवनर्स के नियमों का पालन करने की बजाय इस कोशिश में लगे हुए थे कि किस तरह से सत्यम के बही खातों में गड़बड़ी की जाए। कंपनी के वित्तीय ब्यौरों में हेराफेरी और धोखाधड़ी इतनी ज्यादा हुई है कि यह किसी के भी दिमाग को उलझन में डाल सकती है। और अगर कोई राजू से पहले मिल चुका है और उनसे कुछ देर तक भी बातचीत की है तो वह उनके झूठ बोलने के स्तर के बारे में सोचकर हैरत में होगा, जैसा मेरे साथ हुआ।किसी पत्रकार को गुमराह करना कोई बड़ी बात नहीं है, अगर आप तुलना करें कि राजू ने किस तरह से 50,000 से अधिक कर्मचारियों का मात्र एक सप्ताह पहले तक नेतृत्व किया। मायटास की दो फर्म को खरीदने की योजना के निवेशकों द्वारा कड़े विरोध और उसके बाद उस योजना के खत्म हो जाने पर राजू ने अपने कर्मचारियों को लिखे गए एक पत्र में कहा था,''आप कंपनी के साथ बने रहिए,कंपनी ने हमेशा कार्पोरेट गवनर्स के उच्चतम मानकों का पालन किया है। आपसे अनुरोध किया जाता है कि आप अफवाहों पर ध्यान न दें।'' उन्होंने कर्मचारियों को यह भी याद दिलाई कि कंपनी ने गोल्डन पीकॉक अवार्ड पाया था।

राजू ने बताया था कि किस तरह उन्होंने उन सभी प्रक्रियाओं का पालन किया जो निदेशक मंडल के सर्वसम्मत फैसले के लिए जरूरी था और यह फैसला सत्यम को नई ऊंचाइयों पर ले जाता। इस तरह के उदाहरण मिलने कठिन हैं कि किसी सीईओ ने अपने कर्मचारियों के साथ इस तरह का विश्वासघात किया हो।राजू और उनके बेटों को निश्चित रूप से उनके द्वारा उठाए गए कदमों के परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
हकीकत यह है कि वे खुद भी इसे स्वीकार करते हैं और उन्होंने बोर्ड को लिए गए पत्र में इसका जिक्र भी किया है। राजू ने पत्र में कहा, 'मंत अपनी गलतियां स्वीकार करते हुए हर कानूनी कार्रवाई का सामना करने को तैयार हूं।'दरअसल, राजू ने यह आभास दिलाने की कोशिश की कि कंपनी बोर्ड के पुराने और मौजूदा सदस्यों को कंपनी की वास्तविक स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। यह एक उल्लेखनीय बयान है और इससे इस आम धारणा को बल मिलता है कि भारत में परिवारों द्वारा चलाए जाने वाले कारोबार में मालिक की ही अहमियत होती हैलेकिन ऐसा नहीं है कि राजू का बयान सत्यम के निदेशकों और वरिष्ठ प्रबंधकों के लिए एक चरित्र प्रमाण पत्र है। राम मयनामपति का ही उदाहरण लीजिए, जो अब कंपनी के अंतरिम सीईओ हैं, जिन्हें पद छोड़ने के बाद राजू ने ही यह काम सौंपा। मयनामपति कुछ ही दिन पहले तक कंपनी के तिमाही नतीजों के दौरान अपने चेयरमैन द्वारा बताए गए आंकड़ों को उचित ठहराने में व्यस्त थे।इस पर विश्वास करना कठिन है कि उन्हें सही आंकड़ों के बारे में जानकारी नहीं थी। या फिर इससे सत्यम के उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों की घोर अज्ञानता का पता चलता है।आप सत्यम के स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका को ही ले लीजिए, जो इस समय पूरे घटनाक्रम से दूरी बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।

इससे भी ज्यादा निराशाजनक यह है कि स्वतंत्र निदेशकों की टीम में हार्वर्ड के प्रोफेसर कृष्णा पालेपू, इंडियन स्कूल आफ बिजनेस के डीन एम राममोहन राव, उद्यमी विनोद धाम और पूर्व कैबिनेट सचिव टीआर प्रसाद शामिल हैं। अगर इस तरह के प्रभावशाली और प्रतिभाशाली लोग कार्पोरेट गवनर्स के मानकों की निगरानी नहीं कर सके तो निश्चित रूप से कहीं न कहीं से व्यवस्था में ही खामी है। हकीकत यह है कि राजू का वक्तव्य इस तरफ इशारा करता है कि ज्यादातर निदेशक मूकदर्शक रहने में ही विश्वास करते हैं और वे केवल उसी बात में विश्वास करते हैं, जो कंपनी के चेयरमैन उनसे विश्वास करवाना चाहते हैं। इस तरह से कार्पोरेट गवनर्स का पूरी तरह से मखौल ही बनता है कि कंपनी के प्रमोटर की कंपनी में मामूली हिस्सेदारी हो और वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ सभी कार्यों का संचालन करे।

इससे भारत के कार्पोरेट गवनर्स की एक बड़ी कमजोरी उजागर होती है कि ऐसे स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति की जाती है, जो या तो पुराने साथी हों या प्रबंधन में सहयोगी रहे हों या शेयरधारक हों।यह भी स्पष्ट होता है कि ज्यादातर स्वतंत्र निदेशकों के सामने परंपरागत रूप से यह उदाहरण होता है कि वे किसी तरह का दबाव न डालें और उन्हें यह भी डर बना रहे कि उनकी आलोचना को किस रूप में लिया जाएगा।हाल ही में हुए एक अध्ययन से भी यह पता चलता है कि 90 प्रतिशत कंपनियों ने स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्तियां सीईओ या चेयरमैन से राय लेने के बाद ही की हैं। स्वतंत्र सर्वेक्षणों से पता चलता है कि भारत में 5 में से 1 कंपनी ही बोर्ड के प्रदर्शन का आकलन करती हैं। बोर्ड द्वारा मामले को देखने की प्रक्रिया धीमी होती है और कुछ पुराने या बहुत ही वरिष्ठ निदेशक ही कुछ प्रतिरोध दर्ज कराते हैं। इन सबको देखते हुए यह जरूरी है कि बाजार नियामक अनुच्छेद 49 पर फिर से विचार करे, जो सूचीबध्दता समझौते से संबध्द है और स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका के बारे में बताता है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो सत्यम के नए अंतरिम सीईओ का बयान खोखला ही साबित होगा कि कंपनी के वरिष्ठ लोग उपभोक्ताओं, सहयोगियों, आपूतिकर्ताओं और सभी शेयरधारकों को किए गए वादों को निभाने के लिए एकजुट हैं और वे इसे जारी रखेंगे। और, यह न केवल सत्यम के लिए ही, बल्कि पूरे इंडिया इंक के लिए भी एक बुरी खबर होगी।



saabhar: http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=12677

1 comment:

Gyan Dutt Pandey said...

अच्छी खबर प्रस्तुति। लेकिन ब्लॉग पर हम आपको पढ़ने आये हैं, श्यामल मजुमदार को नहीं।
मुझे विश्वास है कि आप मौलिक और बेहतर पोस्ट लिख सकते हैं।