परदे के पीछे की बात यह है कि एक महीने के आईपीएल का अनुमानित कारोबार २००० करोड़ रुपये का है। इस कारोबार में सभी चैनल, अखबार साथ देने में लगे हैं। स्वाभाविक है कि इसका विग्यापन बजट कम से कम कुल पूंजी का २० प्रतिशत तो होगा ही। यानी ४०० करोड़ रुपये। अगर इस विग्यापन राशि को ४० मीडिया हाउस में बांट दें तो एक एक का हिस्सा आता है, १० करोड़ रुपये। मंदी के इस दौर में अगर एक महीने में १० करोड़ की आमदनी किसी मीडिया हाउस को हो जाए, तो अच्छा मुनाफा हुआ न... खासकर ऐसे में जब एक मीडिया हाउस की कुल पूंजी (अगर ५ बड़े मीडिया हाउस को निकाल दें) तो ५०० करोड़ रुपये के आसपास आएगी। ऐसे में अखबारों में क्यों न छा जाए आईपीएल। इस हद तक कि लोगों को आईपीएल का बुखार चढ़ जाए।
आखिर अखबारों- चैनलों को भी तो कारोबार करना है। चुनावी विग्यापन तो आ ही रहे हैं। इसका कुल विग्यापन भी ४००-५०० करोड़ के आसपास ही होगा। इसमें नेताओं को गरियाने का भी मौका मिलता है। सभी विग्यापन देते हैं इसलिए। लेकिन आईपीएल के मामले में तो ऐसा नहीं है, उसका बुखार जनता पर चढ़ाने का ठेका मिला है, उसका समर्थन करने के लिए विग्यापन मिला है।अब आपको लग रहा है न कि कितनी सस्ती है हमारी मीडिया....
4 comments:
ऐसे में अखबारों में क्यों न छा जाए आईपीएल। इस हद तक कि लोगों को आईपीएल का बुखार चढ़ जाए।----------
यह तो डाक्टर की मनौती सा हो गया। जितना बढ़े बुखार उतनी हो आमदनी। :)
आज का युग ही सामर्थ्यवानों का है ... जिसके पास पैसे हैं वो सबकुछ खरीद सकता है ।
यंहा तो सबसे तेज़ी से बढने का दावा करने वाले अख़बार ने तो फ़ंट पेज पर कोई दूसरी खबर न छाप कर पूरा पेज आई पी एल का विज्ञापन छाप दिया है।
10-20 हजार में मिल जाए और आप साथ दें त सोचा जा सकता है. मीडिया बिकता है त ओके ख़रीदना कौनो घाटे क सौदा त नहिए होगा.
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