सामान्यतया कई लोग बहुत ज्यादा काम करने का दिखावा या दावा करते हैं। जैसे कि उन्हीं पर पूरा आफिस टिका है। अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो यह भी सोचना शुरू कर दीजिए कि कहीं आप बीमार तो नहीं हैं?
श्यामल मजूमदार
अपराह्न के तीन बजे हैं। ईमेल देखने, न्यूज चैनल पर नजर डालने के दौरान आप लंबी दूरी की कॉल भी स्वीकार कर रहे हैं, साथ ही अनिच्छा के साथ सैंडविच का कौर भी ग्रहण कर रहे हैं जो कि ठंडा हो चुका है।
ऐसा इसलिए क्योंकि रोजाना की बैठकों की वजह से आपको पर्याप्त समय नहीं मिल रहा। आपको लग रहा होगा कि आपके साथ भी ऐसा हो रहा है? आपकी तरह ऐसे असंख्य एग्जिक्यूटिव हैं जो 60 मील प्रति घंटा (इसे 80 कर देते हैं) के हिसाब से जिंदगी चलाने के बारे में सोच रहे हैं और उन्हें लगता है कि ऐसे रास्ते पर चलकर ही आगे बढ़ा जाता है।
लेकिन मनोवैज्ञानिकों के पास 24X7 वाले ऐसे अस्तित्व के लिए एक शब्द है और वह है हरी सिकनेस, जिससे ग्रसित कोई व्यक्ति समय की कमी महसूस करता है और इस वजह से हर काम तेजी से करने की चेष्टा करता है। जब इसमें किसी तरह की देरी होती है तो वह घबरा जाता है।
ऐसे लोग पूरे कार्यसमय के दौरान छोड़ी गई मिसाइल की तरह चलते रहते हैं (वे दूसरों के मुकाबले काफी पहले दफ्तर पहुंचते हैं और बाकी लोगों के जाने केबाद दफ्तर छोड़ते हैं), वे इस उम्मीद में ऐसा करते हैं कि स्थायी रूप से व्यस्तता देखकर बॉस प्रभावित होंगे।
इसका दूसरा पहलू हालांकि यह है कि ऐसे लोग काम का व्यस्तता के साथ घालमेल कर रहे होते हैं और स्मार्ट बनकर काम किए जाने को लंबे समय तक व तेजी से काम करने से भ्रामक बना देते हैं। एचआर सलाहकार कहते हैं कि ऐसे व्यस्त लोगों को यह समझने की दरकार है कि करियर के लिए जहां ऐसी भावभंगिमा जरूरी हो सकती है, वहीं जिंदगी में इस भावभंगिमा की वजह से बहुत कुछ देखा जाना बाकी रह सकता है।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि हरी सिकनेस कॉरपोरेट रैट रेस की चिंता में वहां पहुंचना और उसमें मगन होने के मुकाबले बहुत कुछ और है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को कभी-कभी यह अहसास नहीं होता कि तेज गति और अतिरिक्त घंटे तक काम करना लंबी अवधि के लिए टिकाऊ नहीं हो सकता है। अगर वे ऐसा कर सकते हैं तो उनके काम की गुणवत्ता वैसी नहीं रह पाती है क्योंकि वे गौरवान्वित रोबोट के अलावा कुछ और नहीं होते।
मॉडर्न टाइम्स मूवी को याद कीजिए जहां चार्ली चैपलिन फैक्टरी की असेंबली लाइन में रोजाना आठ घंटे तक खड़े रहते हैं और वहां से गुजर रहे नट को औजार से कसते रहते हैं। समय-समय पर बॉस कन्वेयर बेल्ट की गति बढ़ा देता है और चैपलिन को तेज गति से काम करना पड़ता है। पूरे दिन वह अपनी बांह को एकसमान तरह से ही चलाते हैं।
आठ घंटे बाद वे जब वहां से बाहर निकलते हैं तो उनका काम नहीं रुकता। घर जाने के दौरान हालांकि उनके पास औजार नहीं होता, पर लोगों के मनोरंजन के लिए वे पूरे रास्ते उसी तरह का हाव-भाव दिखाते रहते हैं। अपने कार्यस्थल पर जल्दबाजी में रहने में रहने वाले लोगों के साथ भी ऐसा ही होता है।
एक समय के बाद वे सोचना बंद कर देते हैं और सही मायने में चैपलिन की ही तरह प्रतिक्रिया जताते हैं, जैसा कि वे घर जाने के दौरान जताते थे। और ज्यादा सक्षम बनने के लिए ऐसे लोग लगातार जल्दबाजी में रहते हैं। उन्हें लगता है कि हर समय आपातकालीन स्थिति है, लेकिन जब सही मायने में आपातकालीन स्थिति आती है तो वे इसका प्रत्युत्तर देने में अपने आपको अक्षम पाते हैं।
'द 80 मिनट एमबीए' के लेखक रिचर्ड रीव्स व जॉन नेल कहते हैं कि नियुक्ति करने और उन्हें बाहर का दरवाजा दिखाने की खातिर कामयाब नेतृत्व अपने आपको व सहयोगियों को समझने या जानने में समय लेते हैं। लेकिन जो लोग जल्दी में होते हैं उन्हें लगता है कि सभी लोगों के लिए संसाधनों का अभाव है। इस किताब ने क्विक हरी सिकनेस टेस्ट के बारे में बताया है, उसका सार इस तरह से है :
1। जब आप सुबह ब्रश कर रहे होते हैं तो क्या आप उस समय कुछ और काम कर रहे होते हैं मसलन अंडरवियर खोजना, बच्चों पर चिल्लाना आदि?
2. जब आप ट्रेन या विमान पकड़ते हैं- उन क्षणों में प्रवेश करना जब दरवाजा बंद होने वाला हो ?
3. जब आप लिफ्ट में प्रवेश करते हैं तो क्या आप तत्काल डोर क्लोज का बटन खोजते हैं? आप इस सच्चाई को नजरअंदाज कर रहे हो सकते हैं कि चार सेकंड में अपने आप दरवाजा बंद हो जाएगा। इस अवधि तक आपको इंतजार करना निश्चित रूप से अकल्पनीय लगता है, क्या ऐसा नहीं है?
4। आप लिफ्ट के बटन को कितनी बार दबाते हैं क्योंकि वह 16वीं मंजिल से नीचे आने में समय ले रहा है? आपमें से कुछ वास्तव में ऐसा करते हैं मानो ऐसा करने से लिफ्ट के आने की गति तेज हो जाएगी।
अब इसकी गिनती कीजिए कि कितने सवालों का जवाब आपने हां में दिया है। अगर स्कोर दो है तो फिर आप समय के साथ हैं। अगर स्कोर तीन है तो यह हरी सिकनेस का शुरुआती लक्षण है। और अगर स्कोर चार है तो दिन में ज्यादातर समय अपनी ही पूंछ का पीछा कर रहे होते हैं, इसका मतलब यह हुआ कि बीमारी उन्नत चरणों में पहुंच चुकी है।
चिकित्सा विज्ञान में इसके लिए शब्द है फिबरिलेशन। जब आपके दिल की धड़कन ऐसी स्थिति में होती है तो खून अवरूध्द हो जाता है बजाय इसके कि इसके जरिए खून का प्रवाह होता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि इन सब बातों का यह मतलब नहीं है कि आप अपने काम की गति इतनी धीमी कर लें कि जब जरूरत पड़े तो तेजी से काम न कर पाएं।
आप इस हद तक न जाएं जिसे ग्लाइक, मल्टी टास्किंग, चैनल फ्लिपिंग, फास्ट फॉरवर्डिंग आदि का नाम देते हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि लिफ्ट के बटन को न ठोकें, यह काम को रोक देगा।
http://www.business-standard.com/india/news/shyamal-majumdar-hurry-sickness/397777/
8 comments:
बहुत उपयोगी चेतावनी ! मुझे भी अपने उपर शंका हो रही है। आपने सही समय पर चेताया है।
यदि हमको ज्ञात हो कि जीवन को कब गति देना है और कब स्थिरता, तभी यह कहा जा सकता है कि हमारा जीवन पर अधिकार है ।
और जिसके एक भी पाइण्ट ना हो तो? बहुत ही मनोवैज्ञानिक पूर्ण दृष्टिकोण। जल्दीबाजी करने वाले लोग वास्तव में काम कम और दिखावा अधिक करते हैं। बढिया पोस्ट।
बहुत उपयोगी जानकारी है धन्यवाद्
आंख खोलती पोस्ट। भई मेरा दो नंबर है। पर तीन होने की स्थिती थी। अच्छा हुआ पढ़ लिया। जल्दी ही एक पर आ जाउंगा। अगर जीरो हो जाए स्कोर तो क्या आलसी तो नहीं कहलाउंगा। जरा इस पर रोशनी डालें।
लगता तो नहीं है कि कोई भी व्यक्ति ० अंक पर आ जाए। स्वाभाविक रूप से नौकरी को लेकर भय के साथ तमाम तनाव होते हैं। थोड़ा बहुत तो यह लक्षण होता ही है, जो स्वाभाविक है और उसे लेकर कोई चिंता भी नहीं करता। लेकिन यह बीमारी का रूप तब लेता है, जब आदमी खुद को एक कर्मचारी न समझकर सुपरमैन समझने का भ्रम पालने लगता है और सोचता है कि उसके अलावा सभी बेवकूफ हैं और संस्थान वही चला रहा है। ऐसी सोच वाले ज्यादातर लोग अंदर से डरे होते हैं कि उनका कोई सबऑर्डिनेट कहीं उसे सुपरसीड न कर जाए।
I am suffering from hurry sickness,
thank you for eye opening.
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