Thursday, August 6, 2009

फिर खिलेगा उजड़ा चमन


.... सब कुछ गंवा चुके गांव वाले नए सिरे से रख रहे हैं बुनियाद

सत्येंद्र प्रताप सिंह / बीरपुर/सुपौल

साल भर पहले चारों ओर कयामत थी। जीवन देने वाला पानी बस्तियों-गांवों को श्मशान में तब्दील भी कर सकता है, इसके सबूत कोसी के आसपास बिखरे पड़े थे, चिल्ला चिल्लाकर अपनी कहानी कह रहे थे।
उस वक्त जो बचा, उसने आसमान की तरफ रुख कर ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया। एक साल बीत गया है, लेकिन उस खौफनाक मंजर की यादें ताजा हैं। यह बात अलग है कि नए सिरे से जिंदगी का सफर शुरू करने की जद्दोजहद चालू हो गई है।
कुसहा में टूटे तटबंध की मरम्मत के बाद इलाके के ग्रामीणों में खुशी है। खुशी है कि इस बार बाढ़ उनके सपने नहीं लीलेगी। लेकिन अभी रहने और खाने का ठिकाना नहीं है। अब तक तो सरकार की दी गई आर्थिक मदद और अनाज से गुजर बसर हुई। बाढ़ से निकलने के बाद 3 महीने बाद घर लौटे तो बालू और पानी के सिवा कुछ नहीं मिला।
पुरैनी गांव के वार्ड नंबर 14 के मंतलाल मंडल ने कहा, 'सब कुछ तो खत्म हो गया था, घार-बार, पशु सब कुछ खत्म हो गया। सरकार से रोटी मिली और ओडीआर की मदद से घर बन रहा है।'
दरअसल बीरपुर से सटे सभी गांवों से जहां से पानी की धार गुजरी सब कुछ लीलती गई। गांव के लोगों को अपनी जिंदगी फिर शून्य से शुरू करनी पड़ रही है। पुरैनी गांव में ज्यादातर लोग मजदूरी करते हैं, कुछ श्रमिक हैं तो कुछ मकान बनाने वाले राज मिस्त्री हैं।
ओडीआर नाम का स्वयंसेवी संगठन गांव को दोबारा बसाने में जुटा है। कारीगर और श्रमिक गांव के ही हैं लेकिन कंक्रीट, सीमेंट जैसी जरूरी चीजों के लिए संस्था ने कुल 55,000 रुपये प्रत्येक मकान के लिए मदद दी है।
गांव में कुल ऐसे 89 परिवार हैं जिनके लिए मकान बनाए जा रहे हैं। सरकार की मदद की आस में इस इलाके में लोग बने हुए हैं नहीं तो इन लोगों के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जो इन्हें यहां रुकने को मजबूर कर सके।

http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=22004

1 comment:

Vinay said...

सराहनीय
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'विज्ञान' पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!