अगर कहीं और कारोबार शुरू करने का अवसर मिले तो इलाके को छोड़ना पसंद करेंगे- उनका चेहरा खिल जाता है और कहते हैं, 'तत्काल छोड़ देंगे'।
अपनी उम्र के 90 पड़ाव पार कर चुके मुरलीगंज बाजार के कारोबारी फूलचंद अग्रवाल के दर्द का अंत नहीं। स्थानीय लोगों के बताने पर कि दिल्ली से कुछ पत्रकार आए हैं, उनका चेहरा सूख जाता है।
उन्होंने कहा, 'गंजी पहनकर आए थे, गंजी पर आ गए। पाकिस्तान (बांग्लादेश) में तूफान देखे थे। कभी ऐसी हालत नहीं देखी। यह विनाश था, बाढ़ नहीं।' दरअसल भारत के विभाजन के वक्त फूलचंद अग्रवाल पाकिस्तान छोड़कर मुरलीगंज आ गए थे और यहां पर फिर से जिंदगी शुरू की थी, लेकिन कुसहा में तटबंध टूटने से आई बाढ़ ने उन्हें फिर उसी मुकाम पर खड़ा कर दिया है, जैसे वे आए थे।
बाढ़ ने अग्रवाल परिवार का पूरा कारोबार लील लिया। करीब 30 लाख का नुकसान हुआ। 24 लाख के करीब का तो खाद और बीज नष्ट हो गया। फूलचंद अग्रवाल के पुत्र रामगोपाल अग्रवाल बताते हैं कि बीमा कंपनी के सर्वेयर कहते हैं कि आप लोग माल निकालकर कहीं और लेकर चले गए हैं।
इस इलाके का एक भी आदमी ऐसा नहीं कह सकता कि नुकसान नहीं हुआ, लेकिन बीमा कंपनियों को लगता है कि कुछ हुआ ही नहीं। हालांकि उनके यहां नैशनल फर्टिलाइजर, कृभको श्याम फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (केएसएफएल) नागार्जुन फर्टिलाइजर्स ऐंड केमिकल्स लिमिटेड (एनएफसीएल) इंडियन पोटाश लिमिटेड (आईपीएल) जैसी सरकारी कंपनियों से माल आता है और माल आने और बिकने सहित गोदाम में बचे माल का लेखा जोखा दर्ज होता है।
सारे काजगात दिए जाने के बाद भी सिर्फ फोन आते हैं कि फलां कागज को फिर से भेज दीजिए- इसके अलावा कुछ नहीं हुआ। राम गोपाल अग्रवाल बताते हैं कि 22 अगस्त को बाजार में पानी आया। 23 अगस्त को सब कुछ छोड़कर चल पड़े। पहली बार तो करीब 8 किलोमीटर पैदल चलकर गोशाला पहुंचे, जहां नाव मिलती थी, लेकिन नाव ही नहीं मिली।
दूसरी बार जाने पर नाव मिली तो भागकर कटिहार में अपने रिश्तेदार के यहां पहुंचे। अपना दर्द बयान करते हुए वे कहते हैं कि पिछले साल दशहरा की पूजा भी विस्थापित के रूप में ही हुई थी। उस समय तो ऐसा लगा था कि सब कुछ छोड़कर जाना पड़ेगा। वापस लौटे तो सब कुछ बर्बाद हो चुका था।
अब रिश्तेदारों से पैसा लेकर कारोबार फिर से शुरू किया है, 10 लाख रुपये का माल भी है- लेकिन अब नहीं लगता कि कारोबार को अपनी जिंदगी में उस मुकाम पर पहुंचा पाएंगे, जहां बाढ़ के पहले था। दरअसल खेती पर निर्भर कारोबार ही इस इलाके का बड़ा कारोबार है। खेतों में बालू भर जाने और कोसी से निकली नहर के क्षत-विक्षत हो जाने से कृषि कार्य पूरी तरह से ठप है। कारोबार चले भी तो कैसे।
कारोबार घटकर 15-20 प्रतिशत रह गया है। इलाके के पेड़ पौधे नष्ट हो गए हैं। जो आम 10 रुपये किलो मिलता था, इस साल 30 रुपये किलो बिका। यह पूछे जाने पर कि अगर कहीं और कारोबार शुरू करने का अवसर मिले तो इलाके को छोड़ना पसंद करेंगे- उनका चेहरा खिल जाता है और कहते हैं, 'तत्काल छोड़ देंगे'।
उन्होंने कहा, 'गंजी पहनकर आए थे, गंजी पर आ गए। पाकिस्तान (बांग्लादेश) में तूफान देखे थे। कभी ऐसी हालत नहीं देखी। यह विनाश था, बाढ़ नहीं।' दरअसल भारत के विभाजन के वक्त फूलचंद अग्रवाल पाकिस्तान छोड़कर मुरलीगंज आ गए थे और यहां पर फिर से जिंदगी शुरू की थी, लेकिन कुसहा में तटबंध टूटने से आई बाढ़ ने उन्हें फिर उसी मुकाम पर खड़ा कर दिया है, जैसे वे आए थे।
बाढ़ ने अग्रवाल परिवार का पूरा कारोबार लील लिया। करीब 30 लाख का नुकसान हुआ। 24 लाख के करीब का तो खाद और बीज नष्ट हो गया। फूलचंद अग्रवाल के पुत्र रामगोपाल अग्रवाल बताते हैं कि बीमा कंपनी के सर्वेयर कहते हैं कि आप लोग माल निकालकर कहीं और लेकर चले गए हैं।
इस इलाके का एक भी आदमी ऐसा नहीं कह सकता कि नुकसान नहीं हुआ, लेकिन बीमा कंपनियों को लगता है कि कुछ हुआ ही नहीं। हालांकि उनके यहां नैशनल फर्टिलाइजर, कृभको श्याम फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (केएसएफएल) नागार्जुन फर्टिलाइजर्स ऐंड केमिकल्स लिमिटेड (एनएफसीएल) इंडियन पोटाश लिमिटेड (आईपीएल) जैसी सरकारी कंपनियों से माल आता है और माल आने और बिकने सहित गोदाम में बचे माल का लेखा जोखा दर्ज होता है।
सारे काजगात दिए जाने के बाद भी सिर्फ फोन आते हैं कि फलां कागज को फिर से भेज दीजिए- इसके अलावा कुछ नहीं हुआ। राम गोपाल अग्रवाल बताते हैं कि 22 अगस्त को बाजार में पानी आया। 23 अगस्त को सब कुछ छोड़कर चल पड़े। पहली बार तो करीब 8 किलोमीटर पैदल चलकर गोशाला पहुंचे, जहां नाव मिलती थी, लेकिन नाव ही नहीं मिली।
दूसरी बार जाने पर नाव मिली तो भागकर कटिहार में अपने रिश्तेदार के यहां पहुंचे। अपना दर्द बयान करते हुए वे कहते हैं कि पिछले साल दशहरा की पूजा भी विस्थापित के रूप में ही हुई थी। उस समय तो ऐसा लगा था कि सब कुछ छोड़कर जाना पड़ेगा। वापस लौटे तो सब कुछ बर्बाद हो चुका था।
अब रिश्तेदारों से पैसा लेकर कारोबार फिर से शुरू किया है, 10 लाख रुपये का माल भी है- लेकिन अब नहीं लगता कि कारोबार को अपनी जिंदगी में उस मुकाम पर पहुंचा पाएंगे, जहां बाढ़ के पहले था। दरअसल खेती पर निर्भर कारोबार ही इस इलाके का बड़ा कारोबार है। खेतों में बालू भर जाने और कोसी से निकली नहर के क्षत-विक्षत हो जाने से कृषि कार्य पूरी तरह से ठप है। कारोबार चले भी तो कैसे।
कारोबार घटकर 15-20 प्रतिशत रह गया है। इलाके के पेड़ पौधे नष्ट हो गए हैं। जो आम 10 रुपये किलो मिलता था, इस साल 30 रुपये किलो बिका। यह पूछे जाने पर कि अगर कहीं और कारोबार शुरू करने का अवसर मिले तो इलाके को छोड़ना पसंद करेंगे- उनका चेहरा खिल जाता है और कहते हैं, 'तत्काल छोड़ देंगे'।
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