सत्येन्द्र प्रताप सिंह
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति मंगलवार को आने वाली है। इसका सीधा असर बैंकों, आम आदमी और उद्योग जगत पर पड़ता है।
मौद्रिक नीति के तहत रिजर्व बैंक- मुद्रा की आपूर्ति, उसकी उपलब्धता, मुद्रा की कीमत या ब्याज दरें तय करता है। इसका सीधा प्रभाव महंगाई और आर्थिक विकास पर पड़ता है।
विशेषज्ञों की राय है कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंक रेपो रेट में बढ़ोतरी कर सकता है, हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि आर्थिक विकास की गति को बनाए रखने के लिए रिजर्व बैंक इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं करेगा। मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य कीमतों को स्थिर रखना और देश के उत्पादक क्षेत्र को उचित मात्रा में धन मुहैया कराना है।
सीआरआर
कैश रिजर्व रेश्यो या नकद आरक्षित अनुपात बैंकों की जमा पूंजी का वह हिस्सा होता है, जिसे वह भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा करता है। अगर रिजर्व बैंक इसमें बढ़ोतरी करता है तो वाणिज्यिक बैंकों की उपलब्ध पूंजी कम होती है। रिजर्व बैंक उस स्थिति में सीआरआर में बढ़ोतरी करता है, जब बैकों में धन का प्रवाह ज्यादा हो जाता है।
इससे रिजर्व बैंक, बैंकों पर नियंत्रण करता है साथ ही इसके माध्यम से मौद्रिक तरलता पर भी नियंत्रण किया जाता है। मुद्रास्फीति पर इसका सीधा प्रभाव होता है। रिजर्व बैंक के पास सीआरआर के रूप में राशि जमा करना वाणिज्यिक बैंकों के लिए कानूनी रूप से अनिवार्य है।
ब्याज दर और मुद्रास्फीति
इस समय बैंकों के ब्याज दर और मुद्रास्फीति की चर्चा जोरों पर है। जब भी मुद्रास्फीति या महंगाई की दर बढ़ती है, तो रिजर्व बैंक सीआरआर, रेपो रेट में बढ़ोतरी करता है। इसे पूरा करने के लिए वाणिज्यिक बैंकों को ब्याज दरें बढ़ानी पड़ती हैं।
रेपो रेट
रिजर्व बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को छोटी अवधि के लिए दिया जाने वाला कर्ज रेपो रेट कहलाता है। यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट में बढ़ोतरी करता है तो इससे वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकाल के लिए मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाता है। इसकी भरपाई के लिए अमूमन वाणिज्यिक बैंक अपने विभिन्न कर्जों की दरों में बढ़ोतरी करते हैं। वर्तमान में रिजर्व बैंक ने रेपो रेट 7।75 प्रतिशत रखा है।
रिवर्स रेपो रेट
वाणिज्यिक बैंक जिस दर पर रिजर्व बैंक के पास कम अवधि के लिए अपना पैसा जमा करते हैं, उस दर को रिवर्स रेपो रेट कहा जाता है। वर्तमान में रिजर्व बैंक ने रिवर्स रेपो रेट 6।00 प्रतिशत रखा है।
बीपीएलआर
इसे बैंचमार्क प्राइम लेंडिग रेट कहा जाता है। हर वाणिज्यिक बैंक अपना बीपीएलआर तय करता है। उसी के आधार पर बैंकों के होम लोन, पर्सनल लोन समेत बैंकों द्वारा दिए जाने वाले दूसरे तरह के खुदरा कर्जों की दरों का निर्धारण होता है।
एसएलआर
बैंक अपने पास की सरकारी प्रतिभूतियों और कुछ दूसरी तरह की प्रतिभूतियों का एक खास हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखते हैं। इस हिस्से को ही वैधानिक तरलता अनुपात यानी स्टैटयूटरी लिक्विडिटी रेश्यो कहा जाता है। रिजर्व बैंक के पास एसएलआर के रूप में राशि जमा करना बैंकों के लिए कानूनी रूप से अनिवार्य है। वर्तमान में रिजर्व बैंक ने एसएलआर 25 प्रतिशत रखा है।
बैंक रेट
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को जिस न्यूनतम दर पर कर्ज मुहैया कराया जाता है उसे बैंक रेट कहते हैं। इसे डिस्काउंट रेट भी कहा जाता है। यदि बैंक रेट में इजाफा होता है तो सामान्यतया वाणिज्यिक बैंक अपने कोषों की लागत को दुरुस्त रखने के लिए लेंडिग रेट में इजाफा करते हैं। इससे ब्याज दर बढ़ जाती है, जो ग्राहकों को देना होता है। वर्तमान में रिजर्व बैंक ने बैंक दर 6 प्रतिशत निर्धारित किया है।
साभारः बिज़नेस स्टैंडर्ड
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