Saturday, May 3, 2008

अब नेट को मिला वाईमैक्स का साथ



सत्यव्रत मिश्र


जब ब्रॉडबैंड आया था, तो उसे डायल अप कनेक्शन की मुश्किलों से मुक्तिदाता कहा गया था। कुछ हद तक यह बात सच भी थी।
ब्रॉडबैंड ने देश में कछुए की रफ्तार से चल रहे इंटरनेट को खरगोश की स्पीड दिला दी। अब इंटरनेट पर गाने सुनना और वीडियो देखना दूर की कौड़ी नहीं रह गई थी। लेकिन ऐसी बात नहीं थी कि ब्रॉडबैंड में कोई खामी नहीं थी। अक्सर ब्रॉडब्रैंड की तार टूट जाती है। दूरदराज के इलाके में तो यह पहुंच भी नहीं पाता।
साथ ही, यह काफी महंगा पड़ता था। इसलिए लोग-बाग अब इससे भी परेशान हो गए हैं। इन सभी प्रोबल्म्स से परेशान लोगों के लिए राहत का सबब बनकर आया है वाई-मैक्स। अपनी खूबियों की वजह से ही तो वाईमैक्स आज की तारीख में लोगों का फेवरिट बन चुका है।



क्या बला है यह?
वाई मैक्स यानी वर्ल्ड इंटरऑपरोबिलिटी फॉर माइक्रोवेब एक्सेस है नए जमाने की तकनीक। इसके जरिये आप बिना किसी तामझाम के फास्ट स्पीड इंटरनेट का लुत्फ उठा पाएंगे। वाई मैक्स नाम रखने का फैसला किया गया था 2001 में वाई मैक्स फोरम की बैठक में। इस संस्था का कहना है कि,'वाई मैक्स एक ऐसी उच्च गुणवत्ता वाली तकनीक है, जिसके जरिये वायरलेस ब्रॉडबैंड जमीन के आखिरी हिस्से तक पहुंच सकता है।'
विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए आपको तारों के जंजाल की जरूरत नहीं पड़ती। वैसे, काम करने के अंदाज से यह तकनीक वाई-फाई से काफी जुदा तकनीक है। वाई मैक्स कई किलोमीटर के दायरे में फैले एक बड़े क्षेत्रफल में काम करती है। इसके लिए जरूरत पड़ती है लाइसेंस्ड स्पेक्ट्रम की।
दूसरी तरफ, वाईफाई केवल छोटी दूरी में ही यानी केवल कुछ मीटर के दायरे में काम करती है। इसके लिए किसी प्रकार के लाइसेंस की जरूरत नहीं पड़ती।
साथ ही, वाईमैक्स का इस्तेमाल इंटरनेट को एक्सेस करने के लिए जाता है, जबकि वाईफाई का इस्तेमाल अपने नेटवर्क को एक्सेस करने के लिए होता है।



कैसे काम करता है यह?
आसान शब्दों में कहें तो यह बडे ऌलाके में फैले वाई-फाई नेटवर्क की तरह ही है। लेकिन वाईमैक्स की स्पीड काफी तेज होती है और साथ ही इसकी कवरेज भी ज्यादा बड़े इलाके तक फैली होती है। इस सिस्टम के लिए जरूरत होती है वाईमैक्स टॉवर और वाईमैक्स रिसीवर की। वाईमैक्स टॉवर दिखने में बिल्कुल मोबाइल फोन टॉवर की तरह लगता है। लेकिन वह टॉवर तीन हजार वर्ग मील के इलाके को कवर कर सकता है।
दूसरी तरफ, वाईमैक्स रिसीवर एक सेटटॉप बॉक्स की तरह होता है। अब ये रिसीवर छोटी से कार्ड की शक्ल में भी आ गए हैं, जिसे लैपटॉप के साथ जोड़कर काम किया जाता है। इसके लिए आपको देनी पड़ती है फीस। वैसे, यह फीस ब्रॉडबैंड के इंस्टॉलेशन कॉस्ट से काफी कम होता है।
सबसे पहले वाईमैक्स टॉवर को तारों के सहारे इंटरनेट के साथ जोड़ा जाता है। फिर ये टॉवर सिग्नल ट्रांसमिट करते हैं। जिन्हें पकड़ते हैं आपके घर में लगा हुआ वाईमैक्स रिसीवर। आप कंप्यूटर को उस रिसीवर से जोड़कर मजे में इंटरनेट एक्सेस कर सकते हैं।



क्या हैं इसके फायदे?
साइबर स्पेस के धुरंधरों की मानें तो वाई-मैक्स इंटरनेट की दुनिया में वह चमत्कार कर सकती है, जो सेलफोन ने टेलीफोन की दुनिया में कर दिखाया था। इसका सबसे बड़ा फायदा जो इंटरनेट के धंधे से जुड़े लोग बाग बताते हैं वह यह है कि आप वाईमैक्स के जरिये कहीं से भी अपने लैपटॉप या पॉमटॉप से बड़ी आसानी के साथ इंटरनेट पर काम कर सकते हैं।
इसके लिए आपको तारों के जंजाल की जरूरत नहीं पड़ती। यानी अब आप गांवों और दूर-दराज के इलाकों से भी बड़ी आसानी से एक्सेस कर सकते हैं अपनी ईमेल। यानी ब्रॉडबैंड से अलग यह हर जगह मौजूद रह सकता है। साथ ही, ब्रॉडबैंड से काफी हद तक सस्ता भी है। इसमें डेटा ट्रांसफर की स्पीड भी काफी तेज होती है।इसी वजह से तो विदेशों में कई मोबाइल फोन कंपनियां इसका इस्तेमाल सेल फोन ऑपरेशंस में भी करना चाहती हैं।
मोबाइल फोन कंपनियों की इस तकनीक के प्रति पनपी मोहब्बत एक वजह यह भी है कि वाई मैक्स उपभोक्ताओं और कंपनियों, दोनों के लिए काफी सस्ती पड़ती है। साथ ही, व्यापारिक प्रतिष्ठानों में इसका इस्तेमाल केबल और डीएसएल के साथ-साथ एक इमरजेंसी लाइन की तरह किया जा सकता है।
इंडोनेशिया में सुनामी के दौरान इसने तो लोगों की जान भी बचाने में लोगों की काफी मदद की थी। इसी के जरिये मुसीबत में फंसे कई लोगों ने राहतकर्मियों से संपर्क साधा था। अमेरिका में आए कैटरिना तूफान के दौरान भी इसने कई लोगों की जिंदगियां बचाई थी।



इसमें भी हैं खामियां
वाईमैक्स के साथ एक आम गलतफहमी यह जुड़ी हुई है कि ये 50 किमी के दायरे में 70 मेगाबिट के स्पीड से काम कर सकता है। लेकिन हकीकत तो यही है कि यह दोनों में से कोई एक ही काम कर सकता है। या तो आप इसके 50 किमी के दायरे में इंटरनेट एक्सेस कर सकते हैं या फिर 70 मेगाबिट प्रति सेकंड की रफ्तार से नेट एक्सेस कर सकते हैं।
आप जितना ज्यादा इसके दायरे को बढ़ाते हैं, उतनी ही इसकी स्पीड कम हो जाती है। वैसे, मोबाइल वाईमैक्स के साथ सबसे बड़ी खामी यही है कि सिग्नल कम या ज्यादा होने के साथ-साथ इसमें इंटरनेट की स्पीड भी स्लो या फास्ट होती रहती है। सिग्नल कम जोर होने की सबसे बड़ी वजह कंक्रीट के जंगल। अक्सर जैसे मोबाइल फोन के साथ होता है कि घनी आबादी वाली जगहों पर सिग्नल कमजोर हो जाता है।
उसी तरह वाई मैक्स में भी घनी आबादी वाली जगहों पर सिग्नल कमजोर हो जाता है। दुनिया में वाईमैक्स सेवा मुहैया करवाने वाली कंपनियां अक्सर दावा तो करती है 10मेगाबिट्स प्रति सेकंड के स्पीड की, लेकिन हकीकत में वह दो से तीन मेगाबिट्स से ज्यादा की स्पीड लोगों को मुहैया ही नहीं करवा पाते। भारत जैसे देश में एक और बड़ी दिक्कत है स्पेक्ट्रम की।
देश में अभी हाल ही स्पेक्ट्रम बंटवारो को लेकर काफी हंगामा मचा था। अभी तक उस विवाद का हल नहीं हो पाया है, ऐसी हालत में वाईमैक्स के लिए स्पेक्ट्रम मिलने की उम्मीद काफी कम है।



दुनिया दीवानी
पूरे विश्व में इस वक्त वाईमैक्स की धूम मची हुई है। पूरे अमेरिका में इस लागू करने की तैयारी जोर शोर से चल रही है। वैसे, अभी तक वाईमैक्स का सबसे ज्यादा इस्तेमाल दो एशियाई देश ही कर रहे हैं। वो देश हैं, जापान और दक्षिण कोरिया। जापान में यह सेवा मुहैया करवा रही है केडीडीआई और दक्षिण कोरिया में कोरिया टेलीकॉम। वैसे, ये दोनों नेटवर्क भी पूरे देश में नहीं, बस कुछेक खास-खास इलाकों में ही मौजूद हैं। जापान में केडीडीआई उसे अगले साल से पूरे देश में लागू करेगी।



भारत में भी मची है धूम
अपने वतन में तो वाईमैक्स की खासी धूम मची हुई है। कई कंपनियां या तो वाईमैक्स सेवाएं लॉन्च कर चुकी हैं या फिर करने की जुगत में है। पिछले साल इसे चेन्नई में लॉन्च किया था सिफी ने। अब तो टाटा टेलीसर्विसेज ने अगले साल से इसे देश के 115 शहरों में लॉन्च करने की योजना बनाई है। यह अब तक किसी देश में वाईमैक्स का सबसे बड़ा नेटवर्क होगा।
हाल ही, अनिल अंबानी की रिलांयस कम्यु्निकेशन ने ब्रिटेन की एक वाईमैक्स कंपनी में 90 फीसदी हिस्सेदारी खरीदकर इस क्षेत्र में उतरने की मंशा के बारे में खुले तौर पर इजहार कर दिया है। वैसे, रिलायंस कम्युनिकेशन इस वक्त पुणे और बेंगलुरु में वाईमैक्स की सेवा दे रही है। वहीं, बीएसएनएल ने भी कुछ दिनों पहले इस इलाके में कूदने का इरादा जताया था। सूत्रों की मानें तो एमटीएनएल और भारती ने इस बारे में देखो और इंतजार करो की नीति अपना रखी है।


साभारः बिज़नेस स्टैंडर्ड

2 comments:

डॉ. अजीत कुमार said...

बिलकुल काम की जानकारी दी है आपने. आशा है कि हम भारतवासी भी जल्दी ही इस सुविधा का आनंद आसानी से उठा सकेंगे.

Udan Tashtari said...

अच्छी जानकारी बांटने का आभार.