Tuesday, May 31, 2011

जमीन लूटने की मुहिम


विश्व बैंक ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया कि भारत में भूमि की किरायेदारी शुरू होनी चाहिए। इसके अनुसार, भूमि बहुत ही महत्वपूर्ण संसाधन है, किंतु यह ऐसे लोगों (किसानों) के हाथों में केंद्रित है, जो इसका कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं करते। विश्व बैंक का कहना है कि इन लोगों को इन संसाधनों से बेदखल कर देना चाहिए और भूमि उन लोगों को सौंप देनी चाहिए जो इसका कुशलता से उपयोग कर सकें और वास्तव में ये लोग कॉरपोरेट क्षेत्र के ही हो सकते हैं।


देविंदर शर्मा
1996 में विश्व बैंक के तत्कालीन उपाध्यक्ष और अंतरराष्ट्रीय कृषि अनुसंधान सलाहकार समूह के अध्यक्ष डॉ. इस्माइल सेरेगेल्डिन ने एक बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि विश्व बैंक का आकलन है कि अगले बीस वर्षो में भारत में ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्रों में विस्थापन करने वालों की संख्या फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी की कुल आबादी के दोगुने से भी अधिक हो जाएगी। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की कुल आबादी करीब 20 करोड़ है। इस प्रकार विश्व बैंक का मानना था कि 2015 तक भारत में 40 करोड़ लोग गांवों से शहरों में चले जाएंगे।
मैंने समझा कि यह एक चेतावनी है, किंतु जब मैंने इसके बाद की विश्व बैंक की अन्य रपटों का अध्ययन किया तो मुझे उसके असल इरादों का भान हुआ। दरअसल, विश्व बैंक इस प्रक्रिया को रोकना नहीं, तेज करना चाहता था। 2008 में जारी विश्व विकास रिपोर्ट में विश्व बैंक ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया कि भारत में भूमि की किरायेदारी शुरू होनी चाहिए। इसके अनुसार, भूमि बहुत ही महत्वपूर्ण संसाधन है, किंतु यह ऐसे लोगों (किसानों) के हाथों में केंद्रित है, जो इसका कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं करते। विश्व बैंक का कहना है कि इन लोगों को इन संसाधनों से बेदखल कर देना चाहिए और भूमि उन लोगों को सौंप देनी चाहिए जो इसका कुशलता से उपयोग कर सकें और वास्तव में ये लोग कॉरपोरेट क्षेत्र के ही हो सकते हैं।
किसानों को उनकी जमीन से बेदखल करने की यह प्रक्रिया लंबे समय से चल रही है और अब अपने चरम पर पहुंच गई है। जिस तेज रफ्तार से सरकार भूमि अधिग्रहण के माध्यम से किसानों को जमीन से बेदखल कर रही है इससे विश्व के सामने खाद्य सुरक्षा का संकट गहराता जा रहा है। दुर्भाग्य से हमें यह समझाने की कोशिश की जाती है कि खाद्य उत्पादन के मोर्चे पर घबराने वाली कोई बात नहीं है, क्योंकि कॉरपोरेट जगत खाद्यान्न का कुशलतापूर्वक उत्पादन कर सकता है। मुख्यत: इसी मंशा से 1995 में विश्व व्यापार संगठन के अस्तित्व में आने के बाद से विकासशील देशों में धनी देशों की ओर से अनुदानित और सस्ती दरों पर खाद्यान्न के आयात की बाढ़ आ गई है।
इसी प्रकार मुक्त व्यापार समझौतों के नाम पर द्विपक्षीय समझौते और क्षेत्रीय व्यापार संधियों के माध्यम से विकासशील देशों में औद्योगिकीय उत्पादित खाद्यान्न और खाद्य उत्पादों के लिए बाजार विकसित किया जा रहा है।
इस प्रकार भूमि और जीविकोपार्जन केंद्रीय मुद्दों में तब्दील हो चुके हैं। ग्रामीण भारत से 40 करोड़ लोगों के संभावित विस्थापन से भारत अब तक विश्व में हुए सबसे बड़े पर्यावरणीय विस्थापन का साक्षी बन जाएगा। यह अवधारणा केवल भारत तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि एक बड़ा क्षेत्र इसकी चपेट में आ जाएगा। मेरा अनुमान है कि आने वाले वर्षो में भारत और चीन के 80 करोड़ लोग गांवों से शहरों की ओर कूच कर जाएंगे। जिन करोड़ों लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर किया जा रहा है उन्हें कृषि शरणार्थी कहा जा सकता है। क्या हम समझ सकते हैं कि विश्व किस दिशा में जा रहा है? क्या हम अनुमान लगा सकते हैं कि इस भयानक रफ्तार से विस्थापन के कारण कितने गंभीर सामाजिक-आर्थिक और साथ ही राजनीतिक संकट खड़े हो सकते हैं?
इसके बजाय हमें बताया जा रहा है कि बढ़ता शहरीकरण वैश्वीकरण और आर्थिक संवृद्धि का अपरिहार्य परिणाम है। हमें बार-बार बताया जा रहा है कि वैश्वीकरण ने राष्ट्रीय सीमाओं का अंत कर दिया है। यह सुनने में अच्छा लग सकता है, किंतु मुझे लगता है कि आने वाले कुछ बरसों में राष्ट्रों की सीमाएं धुंधली होने के बजाए और गहरी व लंबी हो जाएंगी। विकासशील देशों में जिस रफ्तार से और जिस हद तक भूमि हड़पने का सिलसिला चल रहा है वह चिंता का विषय है। उदाहरण के लिए एक भारतीय कंपनी ने अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में तीन हजार वर्ग किलोमीटर भूमि हासिल कर ली है। यह क्षेत्र बहुत से छोटे देशों के क्षेत्रफल से भी अधिक है। एक दिन इस भूमि के मालिक झंडा फहराकर यह घोषणा कर सकते हैं कि यह एक स्वतंत्र राष्ट्र है। आप इस संभावना को खारिज कर सकते हैं, किंतु हमें अधिक सावधानी से काम लेना होगा। देर-सबेर समाज कृषि, खाद्य सुरक्षा और भूमि संसाधन की सच्चाई से रूबरू होगा। जितना जल्द यह होगा, उतना ही बेहतर होगा।
समस्या यह है कि हम इस तरह के गंभीर मुद्दों पर किसी खास नजरिये और परिप्रेक्ष्य में ही विचार करते हैं, जबकि जमीनी सच्चाई यह है कि ये मुद्दे बहुआयामी और बहुकोणीय होते हैं। जब तक हम ऐसा करने में सफल नहीं होंगे तब तक हम सही संदर्भ में विशिष्ट विचार प्रस्तुत करने में सफल नहीं होंगे। मैं जिन मंचों पर जाता हूं उनमें यह व्यापक सोच नदारद नजर आती है। शायद यही कारण है कि हम अंतरदृष्टि और सार्थकता के साथ असल मुद्दों से भटक जाते हैं। कृषि-व्यापार से यह प्रतीत होता है कि भारत और चीन जैसे देशों को अन्य देशों में अधिक खाद्य उत्पादन करना चाहिए।
घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भारत और चीन द्वारा विदेशों में भूमि की खरीदारी को न्यायोचित ठहराया जा रहा है। अधिक खाद्यान्न उत्पादन की जरूरत के मद्देनजर भारी-भरकम कृषि भूमि की खरीदारी की वकालत की जा रही है। आज लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में शायद ही कोई देश हो जिसकी भूमि न हड़पी जा रही हो। भुखमरी और कुपोषण के शिकार इथियोपिया में आठ हजार से अधिक कंपनियां जमीन हथियाने के प्रयास में हैं। यह देश पहले ही 2000 कंपनियों को 27 लाख हेक्टेयर भूमि आवंटित कर चुका है, जिसमें भारत की कंपनियां भी शामिल हैं। ये कंपनियां इथियोपिया के लिए खाद्यान्न का उत्पादन नहीं करेंगी, बल्कि इसका निर्यात करेंगी। यहां से उत्पादित खाद्यान्न की पहली खेप सऊदी अरब भेजी भी जा चुकी है, जबकि इस देश की जनता दाने-दाने की मोहताज है।
यह मुझे इतिहास के काले अध्याय की याद दिलाता है। कुछ दशक पहले आयरलैंड के अकाल की 150वीं वर्षगांठ के आयोजन में मैंने भाग लिया। यह अकाल 19वीं सदी के मध्य में पड़ा था। सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए शहर के मेयर ने कहा था कि मैं हैरान हूं कि उस समय कितने बर्बर लोग थे। लोग भूख से मर रहे थे और फिर भी खाद्यान्न के बोरे के बोरे इंग्लैंड भेजे जा रहे थे। मुझे नहीं लगता कि समाज की इस बर्बर प्रकृति में कोई अंतर आया है। आने वाले समय में हम और भी बर्बर समाज में रहेंगे। इथियोपिया में जिस तरह भूमि हड़पी जा रही है, यह बर्बरता से कम नहीं है। देश में लोग भूख से मर रहे हैं और कंपनियों के पास खाद्यान्न के निर्यात की कानूनी अनुमति है। भविष्य में ऐसे और भी उदाहरण देखने को मिलेंगे।
(लेखक कृषि एवं खाद्य नीतियों के विश्लेषक हैं)

साभार: http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2011-06-01&pageno=8#id=111712860472008824_49_2011-06-01

आइए देखें न्यायालय का सर्कस

अब तक सामान्यतया सुनते थे कि किसी विभाग के अधिकारी को उसके अच्छे काम की सजा के तौर पर स्थानांतरण किया जाता था, लेकिन न्यायालय में भी ऐसा होता है। दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक लंबे समय से दंगों की सुनवाई कर रहीं जज का जब फैसला देने का वक्त आया तो उनका स्थानांतरण कर दिया गया। अब पता नहीं क्या फैसला होने वाला था, ये तो उच्च न्यायालय या वह जज ही जानती होंगी, लेकिन दाल में कुछ काला जरूर है। पूरी खबर कुछ यूं है........


दंगों के एक अहम मामले की सुनवाई कर रही विशेष जिला न्यायाधीश एसवाई त्रिवेदी ने फैसले से ठीक पहले तबादला किए जाने के विरोध में अपना इस्तीफा सौंप दिया है। न्यायाधीश त्रिवेदी ओड दंगा मामले की सुनवाई कर चुकी थी। इस मामले में वह 28 अप्रैल को निर्णय सुनाने वाली थी, लेकिन इससे पहले ही उन्हें भोपाल प्रशिक्षण के लिए भेज दिया गया तथा बाद में उनका स्थानांतरण जामनगर कर दिया गया।
न्यायाधीश एसवाई त्रिवेदी के इस्तीफे के बाद दंगा मामले के फैसले में अनावश्यक देरी होने की संभावना है। जिला न्यायाधीश त्रिवेदी गत 28 अप्रैल को ओड नरसंहार मामले में फैसला सुनाने वाली थी, लेकिन अचानक गुजरात हाईकोर्ट के आदेश पर उन्हें भोपाल में 6 दिन के प्रशिक्षण पर भेज दिया गया। न्यायाधीश ने अपने फैसले का हवाला देते हुए इसके विरोध में छुट्टी की अर्जी दे दी। इस बीच न्यायाधीश त्रिवेदी का अचानक जामनगर में अतिरिक्त सेशन जज के रूप में तबादला कर दिया गया। उन्होंने जामनगर जाने के बजाए अपना इस्तीफा सौंप दिया।
गौरतलब है कि त्रिवेदी ओड दंगा मामले की सुनवाई पूरी कर चुकी थी। इसके अलावा दंगे से जुड़े दस्तावेजों व सबूतों का भी परीक्षण भी कर चुकी थी। अब इस मामले में नए न्यायाधीश की नियुक्ति होगी।

Tuesday, May 17, 2011

कर्ज से परेशान बुजुर्ग किसान ने आत्महत्या की

कानपुर, 17 मई 2011
उत्तरप्रदेश में कानपुर के घाटमपुर में बुजुर्ग किसान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। परिजनों का दावा है कि बैंक से लिए कर्ज को नहीं चुका पाने में उसने यह कदम उठाया, लेकिन पुलिस ने ऐसी किसी सूचना से इंकार किया है। पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि घाटमपुर के भैरमपुर इलाके में रहने वाले राम चेला (80) ने कल शाम अपने खेत के पेड़ में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। घर वालों ने पुलिस को सूचना देकर शव दी और शव को पेड़ से नीचे उतरा गया। राम चेला के चार पुत्र थे और उनके खेती के कामों में हाथ बंटाते थे।
परिजनों का दावा है कि राम चेला ने पिछले साल खेती के लिए बैंक से एक लाख रूपए कर्ज लिया था लेकिन अभी तक वह एक भी किस्त नहीं चुका पाए थे, जिसके कारण वह मानसिक रूप से परेशान थे और इसी परेशानी से तंग आकर उन्होंने आत्महत्या कर ली।
इस संबंध में जब पुलिस से बात की गई तो उन्होंने कहा कि रामचेला के किसी कर्ज के बारे में कोई जानकारी नहीं है। वह मानसिक रूप से परेशान थे, जिसके चलते उसने आत्महत्या कर ली। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

Monday, May 16, 2011

आखिर खबर आ ही गई कि जलाकर मारे गए किसान!

सत्येन्द्र प्रताप सिंह
कल अचानक एक खबर फ्लैश हुई... ३ हिस्से में...
१- राहुल गाँधी प्रधानमंत्री से मिले (मुझे इसमें कोई खबर नहीं दिखी, लगा कि घर का मामला है, चाहे प्रधानमंत्री से वो मिलें या उन्हें घर पर बुला लें.)
२- संसद के अगले सत्र में आयेगा भूमि अधिग्रहण विधेयक (इसमें भी कुछ नया नहीं लगा, क्योंकि ये भी बयान कई स्रोतों से कई बार आ चुका है)
३- भट्टा परसौल गाँव के ८ किसानों को राहुल ने प्रधानमंत्री से मिलवाया (इसमें भी कोई खबर नहीं नजर आई, राहुल जिससे चाहें प्रधानमंत्री से मिलवा दे)
(घर पंहुचा तो रात को जी न्यूज़ देखने लगा. खबर आ रही थी कि राहुल ने प्रधानमंत्री को भट्टा परसौल की फोटो भी प्रधानमंत्री को दिखाई है, जिसमे १७ फीट ऊँचे राख की ढेर में ग्रामीणों की लाशों के जले अंश पड़े थे. वाकई ये बड़ा मामला है, जिसे उन्होंने उठाया. इस तरह की ख़बरें आ रही थीं, लेकिन दबे तौर पर और डर-डर कर. राहुल ने कहा, "हर ग्रामीण जनता है कि उनके परिजन १७ फीट की ऊँची राख की ढेर वाली चिता में जलाये गए हैं. महिलाओं के साथ बलात्कार हुए हैं.उनके घर जला दिए गए है."
पुण्य प्रसून वाजपेयी भी कहाँ छोड़ने वाले थे. उन्होंने भी सवाल उठा डाला कि क्या केंद्र सरकार किसान उन्मुखी नीतियां बनाएगी? क्या ऐसी कोई नीति मनमोहन लायेगे, जिसमे आम आदमी के लिए जगह हो?
एक सवाल मेरी ओर से भी. क्या वे फोटो २०१२ के उत्तर प्रदेश चुनाव में पोस्टर बनवाने के लिए ही राहुल ने खिचवाए थे? क्या किसानों और आम लोगो की जिंदगी का मोल सिर्फ इतना ही है?)

"सोमड़ू मर गया"

थोड़ी देर में चारों बेहोश हो गए! बाल्टी भर पानी मंगाया गया और उन चारों पर डाला गया ! उन्हें थोडा होश आया ! उन चारों में सोमड़ू भी एक था ! अँधेरा हो गया था ! सोमड़ू मौके का फयदा उठाकर सरकते हुए एक झाड़ी में चला गया और हाथों में बंधी लूंगी खोल कर गिरता पड़ता कुछ दूर पहुंचा ! वहाँ गाँव वालों ने उसे पानी पिलाया ! किसी ने उसे अपने घर में बकरियों के साथ छिपा दिया ! इधर इन तीनो की पिटाई शाम से रात के आठ बजे तक चलती रही ! अंत में लगभग सब शांत हो गए थे ! फिर उनकी सज़ा पूरी करने का वक़्त आया ! चाकू से तीनो की आँखे निकाली गयीं ! और फिर माथे पर चाकू खड़ा कर के पत्थर से उसे सर में ठोक दिया गया ! इसके बाद तीनो की लाशों को पास में नदी के किनारे रेत में दबा दिया गया !

हिमांशु कुमार


आज दंतेवाडा से एक फ़ोन आया की सर सोमड़ू म़र गया ! मैंने पूछा कैसे ? तो मुझे बताया गया की तेंदू पत्ता तोड़ते समय कल उसे सांप ने काट लिया और कुछ ही देर में वो म़र गया ! न्याय का इंतज़ार करते करते सोमड़ू म़र गया ! कौन था ये सोमड़ू ?

तीन साल पहले की ये घटना है ! भैरमगढ़ से बीजापुर जाने के रास्ते में माटवाडा नाम का एक सलवा जुडूम कैंप है ! 18 मार्च 2008 को स्थनीय अखबार में खबर छपी कि माटवाडा सलवा जुडूम कैंप में रहने वाले तीन आदिवासियों की नक्सलियों ने कैंप में घुस कर हत्या कर दी है! खबर पर विश्वास नहीं हुआ ! क्योंकी ये एक छोटा सा कैंप है ! सड़क के किनारे सारे आदिवासी अपनी झोपडी में रहते हैं ! बीच में एक पतली सी सड़क औए सड़क के इस तरफ पुलिस चौकी ! आदिवासीयों की झोपड़ियों के पीछे की तरफ सी आर पी ऍफ़ का कैंप ! लेकिन सच्चाई कैसे पता चले ? अचानक कोपा गायब हो गया ! में कोपा के बिना बताये गायब होने पर आश्रम में बडबडा रहा था कि दो दिन के बाद मुकुराते हुए कोपा सामने आ गया ! उसके साथ एक नौजवान और भी था ! मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से पूछा की ये कौन है? कोपा ने कहा आप ही पूछ लीजिये ! उस लड़के ने दिल दहला देने वाली कहानी सुनायी ! उसने बताया की जो तीन आदिवासियों के नक्सलीयों के हाथों मारे जाने का समाचार छपा है उन तीन मारे गए लोगों में से एक मेरा भाई है और इन तीनों को नक्सलियों ने नहीं पुलिस ने मारा है !

लेकिन हम लोग कभी भी बिना पूरी तहकीकात के किसी मामले में कार्यवाही नहीं करते थे ! इसलिए मैंने उस नौजवान से कहा की मारे गए तीनो लोगो की पत्नियाँ कहाँ हैं ? उसने कहा की सलवा जुडूम कैंप में ! मैंने कहा उन्हें लाना होगा ! कोपा बोला ये ज़िम्मेदारी में लेता हूँ ! और अगले दिन सुबह मारे गए उन तीनों आदिवासियों की पत्नियां हमारे आश्रम में आ गयी साथ में कोपा उनके गाँव के सरपंच और पटेल को भी लेता आया था ! उन लोगों को मैंने अलग- अलग बैठा कर पूरी घटना का विवरण देने को कहा ! अन्य गवाहों से भी पूछा ! अब संदेह की कोई भी गुंजाइश नहीं बची थी ! सब का विवरण एक ही जैसा था ! अब सिद्ध हो गया था की ये सलवा जुडूम रहत शिविर नहीं यातना शिविर हैं !

घटना इस प्रकार की थी ! इस गाँव के लोगों को जबरन तीन साल पहले गाँव के आठ लोगों की हत्या करने के बाद घरों को जला कर इस कैंप में लाया गया था ! ये लोग तब से इन कैम्पों में रह रहे थे ! सरकार ने शुरू में तो कैंप बसते समय ये कहा था की कैंप में खाना पीना सब मिलेगा लेकिन वो सब तो जुडूम के नेता बीच में ही गटक जाते थे ! इस पर गांव वालों ने पेट भरने के लिए आस पास सरकारी सड़क बनाने के नरेगा के काम में जाना शुरू किया पर उसमे भी आधी मजदूरी नेता और पुलिस वाले मार देते थे ! तब लोगों ने गावों में जा कर महुआ बीनना और धान उगाना शुरू कर दिया ! लेकिन सब को रात होने से पहले कैंप में वापिस आ कर पुलिस के सामने हाजिरी लगानी पड़ती थी! ज्यादा रात हो जाने वाले की पिटाई की जाती थी कि तुम लोग गाँव जाने के बहाने ज़रूर नक्सलियों की बैठक में गए होगे ! एक रात ये चार आदिवासी ज्यादा रात हो जाने पर पिटाई के डर से गांव में ही रुक गए ! इन्होने सोचा की कल दिन में चुपचाप अपने घर में घुस जायेंगे और बोल देंगे की हम तो कल शाम को ही आ गए थे ! और इन्होने ऐसा ही किया ! लेकिन इसकी जानकारी वहां के एस पी ओ लोगों को चल गयी ! उन्होंने वहां पुलिस चौकी के इंचार्ज ऐ एस आई पटेल के साथ मिल कर इन चारों को अनुशासन तोड़ने की सजा देने का निर्णय किया ! सजा देने के लिए पुलिस वालों और एस पी ओ ने पहले जम कर शराब पी और उस के बाद इन चारों को घरों में घुस कर खींच कर बाहर लाया गया ! इनकी पत्नियों ने जब इन्हें बचाने की कोशिश की तो उन्हें भी बन्दूक के बट से मार मार कर लहूलुहान कर दिया गया दिया गया ! फिर इन चारों आदिवासियों के हाथ उन्ही की लुंगियां खोल कर पीछे बांध दिए गए ! और इन्हें सड़क पर लाया गया और मोटे मोटे डंडों से चारों की पिटाई शुरू की गयी ! थोड़ी देर में चारों बेहोश हो गए! बाल्टी भर पानी मंगाया गया और उन चारों पर डाला गया ! उन्हें थोडा होश आया ! उन चारों में सोमड़ू भी एक था ! अँधेरा हो गया था ! सोमड़ू मौके का फयदा उठाकर सरकते हुए एक झाड़ी में चला गया और हाथों में बंधी लूंगी खोल कर गिरता पड़ता कुछ दूर पहुंचा ! वहाँ गाँव वालों ने उसे पानी पिलाया ! किसी ने उसे अपने घर में बकरियों के साथ छिपा दिया ! इधर इन तीनो की पिटाई शाम से रात के आठ बजे तक चलती रही ! अंत में लगभग सब शांत हो गए थे ! फिर उनकी सज़ा पूरी करने का वक़्त आया ! चाकू से तीनो की आँखे निकाली गयीं ! और फिर माथे पर चाकू खड़ा कर के पत्थर से उसे सर में ठोक दिया गया ! इसके बाद तीनो की लाशों को पास में नदी के किनारे रेत में दबा दिया गया !

हमने इन तीनों आदिवासियों की पत्नियों को मीडिया के सामने बैठा दिया और कहा की आप भी सच्चाई निकालने की कोशिश करिए ! इसके बाद ये मामला छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में दायर किया गया ! इन तीनों महिलाओं को मैं अपने प्रदेश के सह्रदय साहित्यकार दी जी पी श्री विश्वरंजन जी के पास ले गया ! वो बोले ठीक है मुझे अब कुछ नहीं पूछना है लेकिन बाद में उन्होंने पत्रकारों से कहा की इन महिलाओं के पतियों को नक्सलियों ने ही मारा है पर ये नक्सलियों के कहने से पुलिस पर झूठा इल्ज़ाम लगा रही हैं ! इस विषय में मेधा पाटकर ने भी डी जी पी साहब को एक पत्र लिखा जिसके जवाब में उन्होंने कहा की हिमांशु तो झूठ बोलता है! बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच में भी इस मामले में पुलिस की भूमिका पर संदेह व्यक्त किया गया ! अभी इस मामले में आरोपी पुलिस का ए एस आई पटेल और दो एस पी ओ जेल में हैं ! तीनो महिलाओं को अंतरिम रहत के रूप में एक एक लाख रुपया अदालत के आदेश से मिला है ! सोमड़ू का एक हाथ और तीन पसलियाँ मार से टूट गयीं थीं ! और वह उसके और उसके साथियों के साथ हुए ज़ुल्म के खिलाफ फैसले के इंतज़ार में था ! लेकिन आज खबर आयी की सोमड़ू मर गया! और उसी के साथ उसका इंतज़ार भी म़र गया !

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महिला की भूख से मौत

सीतापुर, 16 मई 2011

उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के पिसावन क्षेत्र में एक महिला की कथित तौर पर भूख से मौत हो गई। पुलिस सूत्रों ने आज यहां बताया कि मिश्रिख तहसील के बाबुर्दीपुर गांव की निवासी 56 वर्षीय रामगुनी की कल कथित तौर पर भूख से मौत हो गई।
उन्होंने बताया कि रामगुनी पिछले तीन दिन से स्थानीय कोटेदार लाल बहादुर से राशन मांग रही थी लेकिन उसकी बात नहीं सुनी गई। इस बीच, मिश्रिख के उप जिलाधिकारी धनंजय मिश्र ने महिला की मौत भूख से होने से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि वह महिला बीमार थी।
मिश्र का कहना है कि उस महिला को अंत्योदय योजना के तहत लगातार राशन मिल रहा था और उसके कार्ड पर की गई प्रविष्टि से पता लगता है कि उसकी मृत्यु से कुछ दिन पहले उसे राशन मिला था।

Saturday, May 14, 2011

हरियाणा में जमीन की लूट का कौन विरोध करे?

कांग्रेस पार्टी ने भट्टा परसौल में अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा खोला है. राजस्थान, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश तो दूर की बात है. ग्रेटर नॉएडा से सटे हरियाणा के किसानों को भी बाजार भाव के मुताबिक मुआवजा नहीं मिला है और उन्होंने आंदोलन छेड़ रखा है. वहाँ तो अलग ही लूट है. किसानों का कहना है कि हम अपनी जमीन निजी हाथों बेचने को मजबूर होते हैं, क्योंकि अगर न बेच दे तो सरकार औने-पौने भाव खरीदकर उसे निजी हाथों सौंप देती है!

Tuesday, May 10, 2011

Mining the farmer for all his land

Sreelatha Menon

When it comes to acquiring land from farmers, it is a race to the bottom as far as political parties and industries are concerned.

The farmer is never the winner when his land is acquired, whether in a state ruled by the Congress or the BJP, both of which have rushed to the support of the farmers who are resisting land acquisition in Greater Noida, close to this metropolis, in Bahujan Samaj Party-ruled UP.

The rate offered by the Congress government in Rajasthan in Jalore is a mere Rs 6.8 per sq metre, says Rajesh Tikait of the Bharatiya Kisan Union.

The offer ate is no better in BJP-ruled Madhya Pradesh, where it is Rs 50,000 per acre or Rs 10.4 per sq metre.

In Greater Noida, the price offered is Rs 900 per sq metre, while it is Rs 570 per sq metre for land taken to make the Yamuna Expressway. Tikait says this uniformity among all parties in their attitude to farmers has led them to stay away from forming any alliances with them.

What is also common to all political parties which have protested against the Uttar Pradesh government is that they have all offered the new Land Acqusition Act as the solution for the problem. The Land Acquisition Act Amendment Bill has been pending in Parliament for three years. The first draft was made by activist Medha Patkar and presented in the National Advisory Council in 2006 during the first UPA Government. However, though this draft was recommended by the NAC led by Congress president Sonia Gandhi, it was replaced by a fresh draft in 2009. This was merely an amendment Bill, rather than a new law as proposed by the NAC.

Core issue
Says Patkar: “Political parties, including Congress and UPA, are projecting this British law as the solution for all ills on land acquisition. But how can it solve the problem of undemocratically planned development?”

She said the earlier draft she had made for the NAC had looked at planned development, rather than making farmers and land owners the pawns for someone else’s development.

Resistance to land acquisition has been manifesting itself either in court battles as in Kanjhawla in Delhi or in the form of prolonged agitations as is going on in Tamil Nadu, where 2000 farmers and villagers went on a hunger strike for 10 days this month against acquisition for private companies.

Farmers from Kanjhawla, who addressed the media today in Delhi, said that they did not want any price in lieu of land. “We won’t sell the land, for it is the only capital we have. It feeds us through the year and through generations. But a few crores won’t feed us indefinitely,” they said.

“They don’t want to sell land at any price,” says Patkar, who is supporting the farmers. Farmers, she said, are now asking not for better rates but for a part of the developed land, for nothing can be a substitute for land.

She said the violence in Greater Noida was nothing but an echo of the violence of the state in aggressively taking away the land belonging to villagers without consulting them.

“We are not justifying the violence of the people. But the state has to be more responsible,” she said.

Krishan Bir Chaudhury, president of the Bharatiya Krishak Samaj, a pro-Congress group, says despite an assurance by Congress president Sonia Gandhi at the chief ministers’ conclave last year that agricultural land would not be acquired, all the land being acquired in Haryana was agricultural. “The land acquisition that is going on is nothing but an assault on the food security of the country and all will pay for it one day,” he adds.

courtesy: http://business-standard.com/india/news/miningfarmer-for-all-his-land/435042/

पुलिस का कब्जा बरकरार, नहीं लौटे ग्रामीण

शशि भूषण कुमार / ग्रेटर नोएडा

भट्टा परसौल गांव में घटना के तीन दिन बाद भी पूरे गांव पर पीएसी और यूपी पुलिस के जवानों का कब्जा है और किसी को गांव के अंदर जाने नहीं दिया जा रहा है। किसी प्रकार गांव के अंदर जाकर बहुत खोजबीन करने पर महज दो-चार घरों में कुछ उम्रदराज महिलाएं एवं बुजुर्ग पुरुष मिले। गांव के सारे लोग पुलिस के डर से अपनी रिश्तेदारी में जा छिपे हैं।


गांववालों में पुलिस के प्रति जबरदस्त आक्रोश था। उन्होंने बताया कि पुलिस ने गांव के 20 से ज्यादा युवकों को उठा लिया है और उनका पता अभी तक नहीं चल पाया है। इस उपद्रव के बाद पूरे गांव में पुलिस वाले ही दिख रहे हैं। लोगों के घरों के दरवाजे खुले थे। कई जानवर गांव में बेसहारा भटक रहे थे और जहां तहां अपने मालिक के बिना भूखे-प्यासे गाय-भैंस नजर आ रही थीं।

चालीस का उम्र पार कर चुकी चंद्रवती कहती हैं कि अनाज के बिटोरों में पुलिस आग लगाकर उसे बरबाद कर रही है। उसका कहना है कि पुलिसवालों ने उसके पूरे घर को तहस-नहस कर दिया है। पेट भर खाने के लिए चूल्हा जलाना मुश्किल हो रहा है। इसके अलावा कई जगह अनाज के ढेर आग मेंं धू-धू जलते दिखाई दे रहे थे।

इस गांव के अधिकतर किसान छोटे रकबे की जमीन के मालिक है। लोगों के पास 2 से 5 बीघा तक की जमीनें है। कुछ किसान जरूर 10 या 15 बीघा जमीन वाले भी हैं। कुछ गांववाले जो मुआवजे की रकम ले चुके हैं वे इसे गाड़ी-टैक्टर या पशुधन खरीदने में खर्च भी कर चुके हैं। गांव में अधिकतर पक्के मकान हैं और कई गांववालों के पास ट्रैक्टर, सूमो और मारुति जैसी कारें भी हैं। इन सभी गाडिय़ों के शीशे टूटे हुए थे। एक वाहन आग में पूरी तरह जला हुआ मिला।

आंदोलन की अगुआई कर रहे मनवीर तेवतिया को लेकर गांववालों में एक राय नहीं है। कुछ लोग जहां उसके समर्थक है वहीं कुछ लोगों का कहना है कि वह गांववालों को भड़का रहा है। कई गांववाले यह भी मानते हैं कि अब मसला जमीन के मुआवजे से कहीं अधिक दोनों पक्षों के बीच अहम का बन चुका है। दोनों तरफ के ही लोग मामले को सुलझाने की बजाए अपनी चलाने की कोशिश कर रहे हैं। गांव मुख्यत: जाट बहुलहै और आंदोलन में ज्यादातर इसी जाति के लोग हिस्सा ले रहे हैं। इसके अलावा 5 मकान दलितों के तथा अन्य पिछड़ी जातियों के हैं। कुछ घर अल्पसंख्यकों के भी हैं।

बगल के गांव मुतैना में भी खौफ का मंजर है। इस गांव के अधितकर लोग मुआवजा ले चुके हैं और इस विवाद को बेवजह खड़ा किया गया मसला मानते हैं। लेकिन उनके मन में पुलिस-प्रशासन के प्रति ज्यादा रोष है। उनका मानना था कि पहले के जिलाधिकारी किसानों की बातों को तवज्जो देते थे। नए आए अधिकारियों के कारण मसला ज्यादा उलझा है।

Monday, May 9, 2011

CRYING FOUL PLAY

“Governments are treating farmers’ land as an agriculture produce for which they fix the price and then the same land is sold at market prices. Earlier farmers did not understand this, but now with their children being educated they can read how they have been cheated all these years,”


Dipak Kumar Dash | TNN


New Delhi: State governments behaving as ‘profiteers’ seem to be reason behind farmers’ agitation in the NCR that even led to the recent bloodbath in Greater Noida. While the governments have claimed that farmers are overlooking what pushed their land prices, land owners alleged the states are selling their land at exorbitant price to private players after buying at a very low price.
The complaints are same, whether it is in Greater Noida in UP or Kharkhoda or Faridabad in Haryana. It’s not much different in Delhi. Farmers’ bodies in the capital have been blaming the DDA of raking in huge profits by auctioning the land that the agency had acquired from them at throwaway prices.

Despite Haryana revising its resettlement and rehabilitation (R&R) policy to push the land acquisition in the state by offering the highest financial compensation (maximum of Rs 70 lakh per acre), farmers have been protesting against farm land being taken for industrial development.
“Governments are treating farmers’ land as an agriculture produce for which they fix the price and then the same land is sold at market prices. Earlier farmers did not understand this, but now with their children being educated they can read how they have been cheated all these years,” said an activist Bhupender Singh Rawat of Jan Sanghrash Vahini, who was involved in the Ghodi Bachhera protest in Greater Noida.

Those who have been attending farmers’ protest in this region also pointed out how the official allotment rate in Greater Noida is in the range of Rs 15,840 and Rs 42,560 per sq m and how rates for commercial land allotment have been revised and now range between Rs 60,500 and Rs 1.37 lakh per sq m.
“The government notified
land in 124 villages in Greater Noida nine years ago to connect Noida and Greater Noida with an expressway. It paid farmers Rs 50-300 per sq m. Today, in the same location, a private developer building Yamuna expressway and a 2,500-acre Sports City is selling plots at Rs 15,000 per sq m,” said Col Devinder Sehrawat, secretary of Delhi Gramin Samaj.
He added that when farmers see in front of their eyes how they have been ‘looted’ and private players are making huge

profit, they feel cheated. The land is being sold at 13-14 times more than that of the price the government paid to farmers.
Though the disparity is much more in case of Delhi where DDA is selling an acre of prime land at Rs 200-300 crore, it’s sparking no Noida-like protest. This is because most of this ‘land bank’ was created after acquisition of mass land decades ago.
The present compensation rate of Rs 53 lakh per acre in Delhi is also nowhere close to the rate at which DDA has been auctioning properties.
After Haryana brought progressive change in its R&R Policy, which included annual annuity payment to the farmers for 33 years, UP came out with even more popular policy. Though it announced to give a portion of the completely developed land to the affected farmers, things seem to be on the slow track.

Sunday, May 8, 2011

‘I owe my life to 3 caring villagers’

Aniruddha Ghosal & Purusharth Aradhak


Greater Noida: Devender Singh, a police constable from Meerut who was grievously injured in the clash between the police and farmers in Bhatta Parsaul village, owes his life to the three villagers who saved his life and helped him escape.
Constable Devender Sigh had been called on duty at the last minute to Bhatta Parsaul and got caught in exchange of fire between the police and the farmers. He was then overpowered by the villagers in the confusion that followed after the district magistrate, Deepak Aggarwal, was shot. Singh recalled, “I was surrounded by the villagers who snatched my rifle and my wallet from me. Then they beat me on the head repeatedly with a bamboo stick. After the third blow, my helmet broke but they didn’t stop and kept hitting me on the head and then I collapsed.”
“I was on the ground and I could see some villagers with a revolver near me. Others were coming towards me with a bamboo stick that had a knife attached at the end. It was at this moment that I thought I was going to die. But three villagers stopped them and convinced them to spare me life,” said Singh, who is currently admitted in Kailash Hospital in Noida. He has 18 stitches on his head and numerous other injuries. Doctors added that he is currently out of danger.

Bhatta Parsaul On Edge After Brutal Crackdown By Cops, Police Round Up Men, Others Flee

Greater Noida:A day after the clash between the administration and farmers, where two policemen and two farmers lost their lives, Bhatta Parsaul village remained tense, engulfed in the aftermath of Saturday’s violence.
Incidentally, of the 7,000 inhabitants of the village, only women, children and the elderly remain — all its men have either been allegedly rounded up by the PAC or have fled the village.
According to the womenfolk in the village, soon after the district magistrate was taken to the hospital and senior officials followed him, the several hundred Provincial Armed Constabulary (PAC) personnel and local policemen manning the village went berserk. They ransacked their homes, allegedly looted some shops, set fire to whatever village property they could lay their hands upon and dragged all men out of their homes, beat them up mercilessly and took them to some unknown destination. Those men, who could manage, fled from the village.
“Last evening around 6 pm some policemen entered my
house and began beating up my husband and son. They then dragged them outside and asked the rest of us women to remain inside. My husband and son have not returned since,” said Gulchaman, a resident. “I do not know whether they are injured and have been taken to hospital or if they are dead,” she added.
Most of the women in the village echo Gulchaman’s tale, unsure whether the male mem
bers of their family have been taken away by the PAC, have been injured in the agitation, or have simply fled to some safer spot.
Not only were the policemen brutal on the men they could lay their hands on, they even did not let the injured elderly go out of their houses for treatment. It was only after media persons reached the village on Sunday morning and complained to senior cops that
the injured elderly men were taken to the hospital in Noida in the afternoon.
Fifty-year-old Parveen Bano’s three sons, Yakub, Aleem and Shameem, fled along with several other men as soon as the PAC personnel began rounding up the villagers. On Sunday evening, she received a call from her eldest son Yakub, informing her that he was injured and recuperating at Kailash Hospital in Greater Noida.
She has no information on the whereabouts of her other two sons.
“The policemen spared no one, they beat up all our men folk, misbehaved with the younger women, beat up the elderly and left them to die inside their homes while they took our men away. Those men who could manage, fled the village and all that we can do now is to pray that they are still alive,” she said.

आगरा तक पहुंचा किसान आंदोलन

जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ शनिवार को नोएडा से भड़का किसानों का उग्र आंदोलन निर्माणाधीन यमुना एक्सप्रेसवे के आखिरी छोर आगरा तक पहुँच गया है.

अधिकारियों के अनुसार रविवार को आगरा में किसानों के साथ संघर्ष में प्रांतीय सशस्त्र बल पीएसी के कम से कम चार जवान घायल हो गए हैं, जबकि नोएडा में मरने वालों की संख्या पांच हो गई है.

नोएडा में मरने वालों में दो पुलिस जवान और दो किसान हैं , जबकि पांचवें व्यक्ति की शिनाख्त नही हो पाई है.

आगरा के पुलिस उप महानिरीक्षक असीम अरुण ने बीबीसी को बताया कि शनिवार को नोएडा की घटना की प्रतिक्रिया में छलेसर के पास चौगान गढ़ी गाँव के करीब दो दर्ज़न किसानों ने जेपी उद्योग समूह के कैम्प आफिस और जेनरेटर में आग लगा दी.

मौके पर तैनात पीएसी के जवान पहुंचे और बल प्रयोग कर किसानों को खदेड़ा तो किसानों ने सरिया से जवाबी हमला कर दिया. संघर्ष में पीएसी के चार जवान घायल हो गए.

खबर पाकर आगरा से वरिष्ठ अधिकारी फ़ोर्स लेकर मौके पर पहुंचे. फ़ोर्स के डर से किसान गाँव के अंदर चले गए.

पुलिस का कहना है कि संघर्ष में ग्रामीणों के घायल होने की सूचना नहीं है.

ख़बरें हैं कि जेपी ग्रुप के लोग सड़क के पास के एक मंदिर को हटाना चाहते थे और एक निर्माणाधीन धर्मशाला की दीवार तोड़ दी थी जिससे किसान भड़क गए.

लेकिन अधिकारियों का कहना है कि मंदिर या धर्मशाला को हटा कर दूसरे जगह ले जाना ही मुद्दा नहीं है.

मायावती सरकार ने नोएडा से लेकर आगरा के बीच हजारों एकड जमीन अधिगृहित कर भुगतान आधारित एक्सप्रेसवे सड़क ,औद्योगिक क्षेत्र और रिहायशी कालोनियां आदि बनाने का ठेका जेपी ग्रुप को दिया है.

जेपी ग्रुप पहले चरण का काम अक्टूबर तक पूरा करना चाहता है. दूसरी ओर किसान अपनी पुश्तैनी जमीन लिए जाने और मुआवजे में दी गई धनराशि से नाराज हैं.

जेपी ग्रुप की ओर से कोई बयान नही आया है, जबकि सरकारी अधिकारियों का कहना है कि अधिकाँश किसानों ने मुआवजा ले लिया है और केवल कुछ लोग राजनीतिक स्वार्थवश किसानों को भड़का रहे हैं.

विपक्ष का आरोप है कि मुख्यमंत्री मायावती और उनकी सरकार के अधिकारियों ने जेपी उद्योग समूह को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए इतने बड़े पैमाने पर जमीन अधिग्रहित की है और उसमें उनका निजी स्वार्थ शामिल है.

नोएडा में मृतक संख्या बढ़ी

इस बीच उत्तर प्रदेश में विशेष पुलिस महानिदेशक बृजलाल दल बल के साथ नोएडा के भट्टा गाँव में डेरा डाले हैं.

बृजलाल ने पत्रकारों को बताया कि कालू नामा के एक और किसान के मरने की पुष्टि हुई है. इस तरह कम से कम दो किसान और दो पुलिस वाले शनिवार के संघर्ष में मारे गए हैं.

मालूम हुआ है कि पुलिस ने एक और ग्रामीण की लाश बरामद की है , लेकिन अभी उसकी शिनाख्त नही हो पाई है.

भट्टा गाँव पुलिस छावनी में बदल दिया है. गाँववालों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने घरों में लूटपाट की है और खेतों में आ लगा दी है.

पुलिस की कई टीम सर्वदलीय किसान संघर्ष समिति के नेता मनवीर सिंह तेवतिया को पकड़ने के लिए जगह जगह छापे मार रही हैं. पुलिस ने तेवतिया को पकडवाने के लिए पचास हजार का ईनाम भी घोषित किया है.

जमीन अधिग्रहण से नाराज किसान कई महीने से मुख्यमंत्री मायावती से मिलने की मांग कर रहे हैं. लेकिन मुख्यमंत्री की ओर से अभी तक ऐसी कोई पहल नही हुई. शनिवार की घटना पर मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया का अभी भी इंतज़ार है.

courtsy: http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2011/05/110508_farmer_unrest_skj.shtml

खड़ी फसल में लगाई आग

दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा में आज दूसरे दिन भी तनाव बरकरार है। भट्टा गांव को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। भट्ट गांव में पीएसी की 12 कंपनियां तैनात हैं। नोएडा, गाजियाबाद, बुलंदशहर और मेरठ की पुलिस ग्रेटर नोएडा में मौजूद है। पुलिस को किसान नेता मनवीर तेवतिया की तलाश है। उसपर 50 हजार का इनाम घोषित किया गया है।

किसानों का आरोप है कि तेवतिया की तलाश में जुटी पुलिस ने ही खेतों में आग लगाई है। 10 बीघा जमीन में आग लगी हुई है। वैसे अभी तक साफ नहीं हो पाया है कि आग कैसे लगी। वहीं गांव के लोगों का आरोप है कि उनके घरों में लूटपाट की गई है। गांव वालो ने सीधा पुलिस पर लूटपाट के आरोप लगाए हैं। गांव में उपस्थित महिलाओँ का कहना है कि पुलिस ने बच्चों को भी मारा पीटा गया है।

वहीं सूबे के एडीजीपी, लॉ एंड ऑर्डर बृजपाल आज ग्रेटर नोएडा पहुंचे। उन्होंने पत्रकारों को पुलिस द्वारा लूटपाट की बात का खंडन किया। उनके मुताबिक गांव वालों ने ही पुलिस पर हमला किया और लोगों को काबू करने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा था।

बृज लाल ने बताया कि तेवतिया ने ही कुछ किसानों को भड़काया जिससे किसान भड़क गए। उन्होंने बताया कि मनवीर तेवतिया पर दो दर्जन केस हैं। उनपर 50 हजार रूपए का इनाम घोषित किया गया है।

courtsy:http://khabar.ibnlive.in.com/news/52689/3/21?from=hp





Saturday, May 7, 2011

अस्तित्व के लिए खूनी जंग

यमुना एक्सप्रेस-वे प्राधिकरण के लिए अधिगृहीत जमीन के बदले में अधिक मुआवजे की मांग को लेकर आंदोलनरत किसानों द्वारा बंधक बनाए गए रोडवेज कर्मचारियों को छुड़ाने गई पुलिस व किसानों में शनिवार को जमकर संघर्ष हुआ। गोलीबारी में दो पुलिसकर्मियों तथा दो किसानों की मौत हो गई। घटना में गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी, एसएसपी व सिटी मजिस्ट्रेट समेत दो दर्जन पुलिसकर्मी व किसान घायल हो गए। भट्ठा गांव में खूनी संघर्ष शुक्रवार से बंधक बनाए गए रोडवेज के तीन कर्मचारियों की रिहाई को लेकर हुआ।

१११ दिन से चल रहा है धरना
यमुना एक्सप्रेस-वे में जमीन अधिग्रहण से प्रभावित किसान 17 जनवरी 2011 से भट्ठा पारसौल गांव में धरना दे रहे हैं। शुक्रवार प्रात: किसानों ने जहांगीरपुर तक बस चलाने के लिए रूट का सर्वे करने जा रहे रोडवेज के तीन कर्मचारियों को भट्ठा में बंधक बना लिया था। कर्मचारियों की रिहाई को लेकर जिला प्रशासन की शनिवार सुबह से किसानों से सीधी वार्ता चल रही थी। किसान अधिग्रहण संबंधित चार सूत्रीय मांगों के लिए सीधे मुख्यमंत्री से वार्ता करने पर अड़े हुए थे। शनिवार को जिला प्रशासन ने किसानों से तीनों कर्मचारियों की रिहाई की अपील की। किसान कर्मचारियों को रिहा करने के लिए तैयार नहीं हुए। किसानों के अडि़यल रुख को देख कर प्रशासन ने कार्रवाई का निर्णय लिया।
और शुरू हो गई लाठी के दम पर मनाने की कोशिस
अपराह्न करीब डेढ़ बजे जिलाधिकारी दीपक अग्रवाल व एसएसपी एसएन सिंह के नेतृत्व में पुलिस और
पीएसी धरनास्थल पर पहुंच गई। पुलिस ने पहुंचते ही लाठीचार्ज शुरू कर दिया। इससे एकबारगी किसानों में भगदड़ मच गई। लेकिन जल्द ही किसानों ने पुलिस के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने पहले पथराव फिर गोलीबारी शुरू कर दी। जिलाधिकारी दीपक अग्रवाल पैर में गोली लगने से घायल हो गए। डीएम के घायल होते ही अधिकारी, पुलिस व पीएसी के जवान भाग खड़े हुए। किसानों ने भागते पुलिसकर्मियों पर गोली व पथराव करना शुरू कर दिया। इसी दौरान किसानों ने तीन पुलिसकर्मियों को भी बंधक बना लिया तथा कुछ अन्य को बुरी तरह से लाठियों से पीटा। किसानों के हमले में स्याना- बुलंदशहर के सीओ के गनर मनोहर सिंह व आईजी रजनी कांत के गनर मनवीर सिंह की मौत हो गई।
इस दौरान एसएसपी सूर्यनाथ सिंह, सिटी मजिस्ट्रेट संजय चौहान, सीओ राहुल कुमार समेत आधा दर्जन पुलिसकर्मी घायल हो गए। संघर्ष में आधा दर्जन किसान भी घायल हो गए। कुछ घायलों को तुरंत ग्रेटर नोएडा के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया।

भाग निकले बंधक बने अधिकारी!
भगदड़ का फायदा उठाकर शुक्रवार से बंधक बनाए गए तीनों रोडवेज कर्मचारी भी भाग खड़े हुए, लेकिन वे बाहर नहीं निकल पाए और फिर से गांव वालों के हत्थे चढ़ गए। बंधकों को रिहा कराने के लिए अपराह्न चार बजे मंडलायुक्त भुवनेश कुमार व अपर पुलिस महानिदेशक गुरबचन लाल ने मौके पर पहुंच कर किसानों पर बलप्रयोग का निर्देश दिया। पुलिस व पीएसी बमुश्किल किसानों के खिलाफ कार्रवाई करने को तैयार हुई। पुलिस ने भट्ठा व परसौल गांव को चारों तरफ से घेर लिया। दोबारा पुलिस व पीएसी गांवों में घुस कर किसानों पर लाठियां भांजनी शुरू कर दी। किसानों ने भी पथराव शुरू कर दिया व गोलियां चलाई। तब पुलिस ने भी जवाब में जोरदार फायरिंग की। इस दौरान गोली लगने से भट्ठा गांव के राजवीर (50) व एक अन्य किसान की मौत हो गई। किसानों ने टेलीफोन एक्सचेंज में आग लगा दी। गांव में भारी संख्या में पुलिस को देख किसान घर छोड़कर भाग खड़े हुए।

हिंसक भिड़ंत के दौरान देर शाम गांव के कच्चे मकानों में आग लग गई। आग ने धीरे-धीरे आधे गांव को अपनी गिरफ्त में ले लिया। पुलिस कार्रवाई के दौरान एक मंदिर में बंधक तीनों पुलिस कर्मियों को रिहा करा लिया गया साथ ही गांव के एक अन्य मकान से तीनों रोडवेज कर्मी भी छुड़ा लिए गए। पुलिस ने मौके से 16 किसानों को हिरासत में लिया है।

तेवतिया भी घोषित हो चुके हैं अपराधी!
भगदड़ के दौरान किसान नेता मानवीर सिंह तेवतिया फरार हो गए। पुलिस देर रात तक आंदोलनकारियों की तलाश में घर-घर तलाशी ले रही थी। शासन ने तेवतिया की गिरफ्तारी पर 50 हजार का इनाम घोषित किया है। प्रशासन की तरफ से दो पुलिसकर्मियों व दो किसानों की मौत की पुष्टि की गई है। देर रात तक पुलिस व पीएसी आसपास गांवों में डेरा डाले हुई थी। मौके पर एडीजी गुरुबचन सिंह, आईजी रजनी कांत मिश्रा व मंडलायुक्त भुवनेश कुमार पहुंच कर मोर्चा संभाले हुए हैं। गांव को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। इस घटनाक्रम पर मंडलायुक्त भुवनेश कुमार का कहना है कि बंधकों को छुड़ाने के लिए किसानों से अपील की गई थी, लेकिन उन्होंने अडि़यल रवैया अपनाए रखा। शनिवार को भी प्रशासन वार्ता के लिए गांव में पहुंचा था पर गांव वालों की ओर से पथराव और गोलीबारी शुरू हुई। मजबूरी में प्रशासन को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी।

ये है गांधीवादी विरोध के बाद का विस्फोट!

धर्मेद्र चंदेल, ग्रेटर नोएडा

भट्टा पारसौल किसान आंदोलन की चिंगारी एक दिन में नहीं सुलगी। किसान यहां 111 दिन से धरने पर बैठे थे। उन्होंने एक बार नहीं बल्कि चार बार प्रशासनिक व प्राधिकरण अधिकारियों को अगवा कर बंधक बनाया। अधिकारियों को छुड़ाने के लिए पुलिस व प्रशासन को हर बार किसानों के आगे घुटने टेकने पड़े। हर बार अधिकारियों की रिहाई के बाद प्रशासन चुप बैठ गया। मूल समस्या के समाधान का ठोस प्रयास नहीं किया जा सका। प्राधिकरण व प्रशासनिक अधिकारी यह कहकर असमर्थता जताते रहे कि किसानों की मांग अव्यवहारिक है, उन्हें पूरा करना संभव नहीं है। प्रशासनिक तंत्र न तो किसानों की मांगों को पूरा कर सका और न ही उनका आंदोलन खत्म करा पाया। जमीन अधिग्रहण के विरोध में किसान 17 जनवरी से धरने पर बैठे हुए थे। प्रशासन व यमुना एक्सप्रेस-वे प्राधिकरण समस्या के समाधान से अधिक अपनी ऊर्जा किसान नेता मनवीर तेवतिया की गिरफ्तारी पर खर्च करता रहा।
किसानों को दनकौर में वार्ता के लिए बुलाकर उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास किया। इससे समस्या और उलझ गई। इस घटना के बाद प्रशासन व किसानों का एक-दूसरे पर विश्र्वास समाप्त हो गया। इसके बाद प्रशासन ने कई बार वार्ता का प्रस्ताव रखा, लेकिन किसान नहीं माने। उनका कहना था कि अब वे सिर्फ शासन स्तर पर वार्ता करेंगे। शासन स्तर पर कोई भी कोई ठोस पहल नहीं हुई। नतीजतन, किसान और अधिकारियों के बीच संवादहीनता की खाई बढ़ गई। मनवीर तेवतिया की टेलीफोन पर कई बार अधिकारियों से गाली-गलौज भी हुई। इससे मामला उलझता चला गया और पूरे जिले में किसानों का आंदोलन शुरू हो गया। पुलिस की आंखों के सामने मनवीर तेवतिया गांव-गांव घूमकर किसानों को आंदोलन करने के लिए एकजुट करते रहे। किसानों ने शुक्रवार से तीन रोडवेज के कर्मचारियों को बंधक बना रखा था। इन्हें छुड़ाने के क्रम में ही शनिवार को पुलिस व किसान संघर्ष हुआ जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई।

किसानों और पुलिस में हिंसक झड़प, तीन की मौत

देश की राजधानी दिल्ली के पास ग्रेटर

नोएडा में अपनी ज़मीन के लिए बेहतर मुआवज़ा

मांग रहे किसानों और सुरक्षा बलों के बीच हुई हिंसक झड़पों में तीन लोगों की मौत हो गई है जिनमें दो पुलिस के जवान हैं.

इन झड़पों में ज़िलाधीश और पुलिस अधीक्षक घायल हो गए हैं.उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक करमवीर सिं

ह के अनुसार कई अन्य जवान

घायल हुए हैं. लखनऊ में एक पत्रवार्ता में उन्होंने बताया कि इस मामले में 15 से 20

लोगों को गिरफ़्तार

किया गया है.

पुलिस का कहना है कि

पुलिस जवान और ज़िलाधीश दो

नों को किसानों की गोली लगी.

जवाब में सुरक्षा बलों ने आंसू गैस के गोले छोड़े और लाठीचार्ज किया. इसमें कई किसान भी

घायल हुए हैं.

उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर ज़ि

ले के भट्टा परसौल गाँव में ये हादसा हुआ जहाँ हाँ नई सड़क बननी है जिससे लिए ज़मीन का

अधिग्रहण किया जा रहा है.

किसान गत 17 जनवरी से उत्तर प्रदेश सरकार के इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं.

घटनास्थल पर पहुँचे

बीबीसी संवाददाता राजेश जोशी के अनुसार वहाँ तनाव का माहौल है और पुलिस छावनी

जैसा

दृश्य दिख रहा है.

उनका कहना है कि अपने साथियों की मौत से नाराज़ पीएसी के जवान गाँव में जगह-

जगह आग लगा रहे हैं.

उनका कहना है कि उन्होंने गाँव के बाहर जानवरों के बाड़ों में, खलिहानों में, भूसों के ढेरों में और जगह-जगह खड़ी मोटर साइकिलों को आग लगा दी है.

उनका कहना है कि जिस शामियाने के नीचे किसान धरना दे रहे थे उसमें पहले से ही आग लगी हुई थी और कई

मोटरसाइकिलें जली हुई दिख रही

थीं.

उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से कहा है कि किसानों की ओर से भी लंबे समय तक गोलीबारी होती रही.

इस बीच कांग्रेस ने राज्यपाल से राज्य सरकार को बर्खास्त करने की मांग की है.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस घटना पर गहरा अफसोस जताया है और इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कराए जाने की मांग की है.

'किसानों ने गोली चलाई'

अधिकारियों का कहना है कि वहाँ सड़क परिवहन विभाग के तीन अधिकारी शुक्रवार को ज़मीन मापने के लिए पहुँचे थे जिन्हें ग्रामीणों ने बंधक बना लिया था.

किसानों ने पहले कहा था कि कर्मचारियों के परिजनों के आने पर वे उन्हें रिहा कर देंगे लेकिन शनिवार की सुबह उन्होंने बंधकों को रिहा करने से इनकार कर दिया

इसके बाद पुलिस, प्रॉविन्शियल आर्म्ड कॉन्टैबुलैरी (पीएसी) और दंगा रोधी दस्ते के जवान प्रशासन के अधिकारियों के साथ वहाँ पहुँचे थे.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार अधिकारियों ने कहा है कि वहाँ किसानों की भीड़ ने सुरक्षा बलों पर हमला कर दिया.

उनका आरोप है कि किसान लाठियाँ लिए हुए थे और यहाँ तक कि उन्होंने गोलियाँ भी चलाईं और पथराव करते रहे. टेलीविज़न पर कई किसानों को पुलिस जवानों को घेरकर लाठियों से पिटाई करते हुए देखा गया.

पुलिस का कहना है कि किसानों की गोली से एक पीएसी जवान मारा गया और उन्हें समझाने बुझाने गए ज़िलाधीश दीपक अग्रवाल को भी गोली लगी. ज़िलाधीश को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया है.

ज़िलाधीश की स्थिति स्थिर बताई गई है.

पुलिस का आरोप

बीबीसी संवाददाता रामदत्त त्रिपाठी के अनुसार लखनऊ में पुलिस महानिदेशक करमवीर सिंह ने पत्रवार्ता में आरोप लगाया है कि ज़मीन के लिए सरकार की ओर से दिए जा रहे मुआवज़े से 99 प्रतिशत किसान संतुष्ट हैं लेकिन उनके नेता मनवीर सिंह तेवतिया किसानों और सरकार के बीच मसले को उलझा रहे हैं.

उनका कहना है कि मनवीर सिंह तेवतिया बुलंदशहर के रहने वाले हैं लेकिन वे मथुरा, अलीगढ़ और गौतम बुद्ध नगर के किसानों को ऐसी बातों में उलझाते रहे हैं जिसका ज़मीन के मुआवज़े से कोई लेना देना नहीं है.

किसानों के साथ हुई हिंसक झड़प के बारे में उन्होंने कहा कि किसानों ने पहले कहा था कि जब बंधक बनाए गए परिवहन विभाग के कर्मचारियों के परिजन आ जाएँगे तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया.

उनका कहना है कि जब तक लखनऊ में ये फ़ैसला लिया जा चुका था कि बंधक कर्मचारियों को किसी भी तरह से रिहा करवाना है.

पुलिस महानिदेशक के अनुसार इसके बाद प्रशासनिक अधिकारी पुलिस बल के साथ गाँव पहुँचे और उन्होंने धरना स्थल पर कार्रवाई शुरु की.

उनका कहना है कि जब किसानों ने गोलीबारी शुरु करते हुए और पथराव करते हुए गाँव की ओर भागना शुरु किया तब पुलिस ने गाँव की ओर रुख़ किया.

उन्होंने कहा है कि पुलिस को खेत में एक अज्ञात व्यक्ति की लाश मिली है जिसके पास कट्टा और कारतूस मिला है. उनका कहना था कि हालांकि उसकी मौत कैसे हुई स्पष्ट नहीं है लेकिन लगता है कि पुलिस कार्रवाई में ही उसकी मौत हुई.

पुलिस महानिदेशक का कहना है कि बंधक बनाए गए राज्य परिवहन के तीनों कर्मचारियों को मुक्त करवा लिया गया है.

    Thursday, May 5, 2011

    ...तो इसीलिए किलर बसें हटाई गईं थीं!

    सत्येन्द्र प्रताप सिंह

    "सैकड़ों की संख्या में निजी क्षेत्र के बस संचालकों की रोजी-रोटी छीनकर कुछ हाथों में सौंपी गई"


    राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पेरिस की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की तर्ज पर क्लस्टर बस सेवा आज 231 लो फ्लोर बसों के साथ शुरू हो गई। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस सेवा के शुभारंभ के अवसर पर कहा, 'कलस्टर सेवा से दिल्ली मेंं सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं काफी सुधरेंगी। लोगों के पास अब बेहतर परिवहन विकल्प होगा।Ó पहली कलस्टर सेवा स्टार बस प्राइवेट लिमिटेड दक्षिणी दिल्ली के 32 रूटों पर संचालित की जाएगी। तीन कॉरपोरेट निकायों के साथ पहले ही 5 कलस्टरों में यह सेवा संचालित करने के लिए अनुबंध किया गया है। इन बसों में दिल्ली मेट्रो की भांति सूचना तंत्र होगा जिसपर यात्रियों को आने वाले स्टैंड, आगमन का संभावित समय आदि की जानकारी मिलेगी।
    इसके पहले दिल्ली में ब्लूलाइन बसें चलती थीं, जिन्हें प्राइवेट ऑपरेटर चलाते थे। इसमें ज्यादातर बसें उन किसानों की थीं, जो दिल्ली के आसपास के थे और जिनकी जमीनें शहरीकरण ने छीन ली थीं। कारोबार से अपरिचित ग्रामीण बसें चलवाकर अपनी रोजी-रोटी आराम से चला लेते थे।
    अब बसों के संचालन का जिम्मा कॉरपोरेट सेक्टर या कहें कि बड़े-बड़े कारोबारियों को दे दिया गया है। बसों में जीपीएस है, सूचना तंत्र है, कब और किस रूट पर चलेगी, इसकी जानकारी है। कमाई भी अब कुछ सेठों को होने जा रही है, जिन्हें इस सेवा के परिचालन का जिम्मा सौंपा जा रहा है या सौंपा जाने वाला है।
    अब सरकार का अगला कदम क्या हो सकता है, यह स्पष्ट है। पहले से ही घाटे में चल रही दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की बसें अब और घाटे में दिखाई जाएंगी। फिर एक-एक बस स्टेशनों की सोने का भाव हो चुकी जमीनें उद्योगपतियों को पीपीपी आधार पर सौंपी जाएंगी, जिनसे वहां आम लोगों के लिए व्यवस्था चाक चौबंद हो सके। स्वाभाविक है कि इस कवायद में सार्वजनिक संपत्ति कुछ चंद लोगों के हाथ गिरवी रखी जाएगी, वह भी आम लोगों को सुविधा दिए जाने के नाम पर।
    इंतजार करिए। जब ये कंपनियां सार्वजनिक परिवहन सेवाओं पर एकाधिकार कर लेंगी तो किराए भी ये ही तय करने वाली हैं और उस समय उसी तरह लोगों का किराया ज्यादा बढ़ाए जाने पर बोलने का अधिकार खत्म हो जाएगा, जैसे निजी स्कूल अपनी दुकानदारी चला रहे हैं और उनकी मनमानी फीस पर न्यायालय से लेकर सरकार तक, किसी का नियंत्रण न हुआ है, न हो सकता है।

    Tuesday, May 3, 2011

    अब गोलियाँ खाने लगे हैं गोरखपुर के मजदूर...

    सत्येन्द्र प्रताप सिंह

    खबर के मुताबिक गोरखपुर की अंकुर फैक्ट्री गोलीकांड में १६ मजदूर घायल हो गए हैं. फैक्ट्री मालिक अशोक जालान कहा कि सारा हंगामा मजदूरों ने किया। फैक्ट्री पर मजदूरों ने ही पहले पथराव किया और बाद में फैक्ट्री के अंदर घुस कर फायरिंग भी की, जिससे उनके ही साथी घायल हो गये। मजदूरों का कहना है कि फैक्ट्री मालिक द्वारा बुलाये गये गुण्डों ने फैक्ट्री के अंदर से गोली चलायी. खोराबार थाना क्षेत्र के खोड़ा बनियवटा गांव निवासी पप्पू जायसवाल (27 वर्ष) की हालत गंभीर है।
    जबरदस्त हालात हैं. गोरखपुर में आंदोलन पिछले ३ साल से सामने आ रहा है. स्थानीय भाजपा नेताओं ने प्रचार किया कि माओवादी गोरखपुर में घुस गए हैं और वे अशांति फैलाये हुए हैं. हालाँकि कुछ लोगों ने माना भी होगा, कुछ लोगों ने नहीं माना होगा. लेकिन परेशान मजदूरों की संख्या बढ़ी ही होगी, जिसके चलते वे और लामबंद हुए हैं!
    फिर वही राग. माओवादी और नक्सल वादी मजदूरों को भड़का रहे हैं! मजदूरों की ओर से घटना के बाद मजदूर संगठन गोरखपुर के कमिश्नर के रवींद्र नायक से मिलने गए तो मजदूरों के नेता प्रशांत और तपिश से कमिश्नर ने उन पर बाहरी और मजदूरों को भडकाने का आरोप लगाया.
    मजे की बात ये है कि गोली चलाने के मामले में जिस प्रदीप सिंह का नाम आ रहा है, उसे पुलिस ने नहीं पकड़ा. मजदूर गोली चलाने वालों को घेरे रहे, लेकिन न तो किसी हथियार की वरामदगी दिखाई गई और न ही कोई आधिकारिक तौर पर गिरफ्तार हुआ है.
    प्रशासन को फैक्ट्री मालिक का ये तर्क खूब समझ में आ रहा है कि मजदूरों ने अपने ही साथियों से खुद अपने ऊपर गोलियाँ चलवाईं, लेकिन गोली चलाने वाले फैक्ट्री में जमे रहे.. मजदूर उन्हें घेरे रहे और फिर चले गए... उन्हें छूने की हिम्मत प्रशासन नहीं दिखा पाया. या कहें कि व्यवस्था की मजबूरी के चलते कुछ नहीं कर सका. एक फैक्ट्री गार्ड को गिरफ्तार किया गया है (वो भी बेचारा २००० रूपये महीने की नौकरी करता होगा!).