भट्टा पारसौल किसान आंदोलन की चिंगारी एक दिन में नहीं सुलगी। किसान यहां 111 दिन से धरने पर बैठे थे। उन्होंने एक बार नहीं बल्कि चार बार प्रशासनिक व प्राधिकरण अधिकारियों को अगवा कर बंधक बनाया। अधिकारियों को छुड़ाने के लिए पुलिस व प्रशासन को हर बार किसानों के आगे घुटने टेकने पड़े। हर बार अधिकारियों की रिहाई के बाद प्रशासन चुप बैठ गया। मूल समस्या के समाधान का ठोस प्रयास नहीं किया जा सका। प्राधिकरण व प्रशासनिक अधिकारी यह कहकर असमर्थता जताते रहे कि किसानों की मांग अव्यवहारिक है, उन्हें पूरा करना संभव नहीं है। प्रशासनिक तंत्र न तो किसानों की मांगों को पूरा कर सका और न ही उनका आंदोलन खत्म करा पाया। जमीन अधिग्रहण के विरोध में किसान 17 जनवरी से धरने पर बैठे हुए थे। प्रशासन व यमुना एक्सप्रेस-वे प्राधिकरण समस्या के समाधान से अधिक अपनी ऊर्जा किसान नेता मनवीर तेवतिया की गिरफ्तारी पर खर्च करता रहा।
किसानों को दनकौर में वार्ता के लिए बुलाकर उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास किया। इससे समस्या और उलझ गई। इस घटना के बाद प्रशासन व किसानों का एक-दूसरे पर विश्र्वास समाप्त हो गया। इसके बाद प्रशासन ने कई बार वार्ता का प्रस्ताव रखा, लेकिन किसान नहीं माने। उनका कहना था कि अब वे सिर्फ शासन स्तर पर वार्ता करेंगे। शासन स्तर पर कोई भी कोई ठोस पहल नहीं हुई। नतीजतन, किसान और अधिकारियों के बीच संवादहीनता की खाई बढ़ गई। मनवीर तेवतिया की टेलीफोन पर कई बार अधिकारियों से गाली-गलौज भी हुई। इससे मामला उलझता चला गया और पूरे जिले में किसानों का आंदोलन शुरू हो गया। पुलिस की आंखों के सामने मनवीर तेवतिया गांव-गांव घूमकर किसानों को आंदोलन करने के लिए एकजुट करते रहे। किसानों ने शुक्रवार से तीन रोडवेज के कर्मचारियों को बंधक बना रखा था। इन्हें छुड़ाने के क्रम में ही शनिवार को पुलिस व किसान संघर्ष हुआ जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई।
courtsy: dainik jagran http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=2&edition=2011-05-08&pageno=1
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