Monday, July 21, 2008

कम वाजिब नहीं हैं अमर सिंह की कुछ मांगें

सुनील जैन


कई लोगों को ऐसा लगता है कि मंगलवार को संसद में विश्वास मत हासिल करने के बाद सरकार पर अमर सिंह की मांगों को पूरा करने का बोझ नहीं रहेगा। लेकिन यह सच नहीं है।

ऐसा इसलिए है कि अगर समाजवादी पार्टी अपना समर्थन वापस ले लेती है, तो सरकार एक बार फिर मुसीबतों से घिर जाएगी। वह अगले छह महीने तक बनी तो रह सकती है, लेकिन परमाणु करार के मुद्दे पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाएगी, जो वर्तमान संकट की प्रमुख वजह है। दूसरी बात यह है कि अगर अमर सिंह की मांगें अनिल अंबानी के पक्ष में लग रही हैं, तब भी ये कम वाजिब नहीं है।

मुरली देवड़ा और अन्य

इसमें कम ही संदेह है कि पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी मुकेश अंबानी के कृष्णा गोदावरी (केजी) बेसिन से गैस निकालने के मामले में अनिल अंबानी के बनिस्बत मुकेश का सहयोग कर रहे हैं। दोनों भाइयों के बीच हुए समझौते के मुताबिक कृष्णा गोदावरी से अनिल के 5,600 मेगावाट के दादरी पॉवर प्रोजेक्ट को 2.34 डॉलर प्रति ब्रिटिश थर्मल यूनिट (बीटीयू) के हिसाब से गैस की आपूर्ति की जानी है।

मुकेश ने 2004 में अंतरराष्ट्रीय बोली में शामिल होकर सरकारी कंपनी एनटीपीसी को गैस की आपूर्ति करने का ठेका हासिल किया था, जबकि इसी कीमतों पर मुकेश-अनिल के बीच डील हुई थी। बहरहाल जबसे सरकार केजी बेसिन से राजस्व का हिस्सा पाने लगी, इस डील को देवड़ा के मंत्रालय में मंजूरी के लिए भेज दिया गया। मंत्रालय ने इस समझौते को यह कहकर खारिज कर दिया कि डील में सही ढंग से कीमतें नहीं तय हुई हैं।

मंत्रालय का यह कहना सही नहीं है क्योंकि पहली बात यह कि उसी कीमत पर एनटीपीसी से भी समझौता हुआ था, दूसरे- मंत्रालय का कहना कि मुकेश अगर बढ़ी हुई कीमतों पर सरकार को राजस्व का हिस्सा देते रहते हैं तो वे अनिल को मुफ्त में गैस दे सकते हैं। दुखद पहलू यह है कि पिछले महीने सरकार गैस उपभोग नीति इस उद्देश्य से लाई कि अनिल को कभी गैस न मिले। इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया कि इससे मुकेश से एनटीपीसी के साथ हुआ समझौता भी प्रभावित होगा।

25 जून को अधिकार प्राप्त मंत्रिमंडल समूह ने यह सिफारिश की कि नई जगहों पर होने वाले अनुसंधानों से मिलने वाली गैस का आवंटन किस हिसाब से किया जाए। जहां अन्य परियोजनाओं के लिए एक जैसे नियम बनाए गए, केजी बेसिन के लिए अलग से दिशानिर्देश जारी किए गए। आवंटन की प्राथमिकताएं क्या हैं? पहला- गैस पर आधारित यूरिया संयंत्रों के मामले में मात्रा निर्धारित नहीं की गई।

इसके बाद वर्तमान एलपीजी संयंत्रों के लिए 3 एमएमएससीएमडी आरक्षित किया गया, इसके बाद 18 एमएमएससीएमडी गैस पर आधारित विद्युत संयंत्रों के लिए रखा गया, जो 2008-09 में प्रस्तावित विद्युत संयंत्रों में गैस की कमी को देखते हुए आदर्श स्थिति है (न तो एनटीपीसी न ही दादरी 2008-09 में आएंगे) इसके बाद 5 एमएमएससीएमडी सिटी गैस परियोजनाओं के लिए और शेष को वर्तमान में गैस आधारित विद्युत संयंत्रों को बेचने के लिए आरक्षित किया गया।

अगर यह नियम, दादरी परियोजना को बंद करने के लिए नहीं हैं तो आखिर इस परियोजना के लिए गैस की आपूर्ति किस तरह से होगी? इसके साथ यह भी प्रावधान जोड़ा गया है कि वे प्रयोगकर्ता जो गैस ग्रिड से जुड़े हुए हैं, उन्हीं को गैस की आपूर्ति की जाएगी। दादरी गैस ग्रिड का आवेदन तो पिछले दो साल से देवड़ा के मंत्रालय में धूल फांक रहा है। यह भी आश्चर्य की बात है कि गैस उपभोग नीति के विरोध के बावजूद इसे लागू करने की कोशिश की गई। वहीं गैस आपूर्ति पर समझौते पर हस्ताक्षर तो चार साल पहले ही हो चुके हैं।

रिलायंस रिफाइनरी

अमर सिंह ने रिलायंस इंडस्ट्रीज पर कर लगाए जाने की बात की है। उनका कहना है कि पिछले एक साल में तेल की कीमतें बढ़ी हैं, जिसकी वजह से बेतहाशा फायदा हुआ है। हालांकि यह कमजोर मुद्दा है। पहला- रिलायंस अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर तेल की खरीदारी करती है। इसलिए 'अप्रत्याशित' लाभ की बात गले नहीं उतरती। अगर आप 2007-08 की चौथी तिमाही की तुलना 2006-07 की चौथी तिमाही से करें, जिस दौरान ब्रेंट की कीमतें 58 डॉलर से बढ़कर 97 डॉलर प्रति बैरल हो गईं तो कंपनी के पीबीआईटी में केवल 1,015 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई जबकि टर्नओवर बढ़कर 9,424 करोड़ रुपये हुआ।

क्षेत्रवार राजस्व पर गौर करें तो रिफाइनिंग से प्री-टैक्स लाभ केवल 600 करोड़ रुपये रहा। यह भी है कि रिलायंस रिफाइनरी का लाभ वैश्विक रूप से दो से तीन गुना बढ़ा है। अब ऐसे में यह निर्धारित करना कठिन है कि वास्तविक मुनाफा कितना है और कितनी बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। रिफाइनरी पर ईओयू को हटाए जाने का मुद्दा भी बहुत जटिल है। इस नियम के लागू रहने पर रिफाइनरीज कुछ और साल तक कर नहीं लगेगा और इससे घरेलू बाजार में गैस की कमी होने की हालात में गैस का आयात करने की भी इजाजत मिलती है।

पिछले साल ईओयू का दर्जा दिए जाने के फैसले का अमर सिंह विरोध कर रहे हैं। बहरहाल सरकार की नीतियों से सरकारी क्षेत्र की रिफाइनरीज को संकट का सामना करना पड़ रहा है और वे बाजार भाव से कम पर बिक्री करने को मजबूर हो रही हैं।

मुफ्त स्पेक्ट्रम

सिंह का यह कहना शायद सही है कि सेल्युलर लाइसेंस धारकों को अतिरिक्त स्पेक्ट्रम मुफ्त में दिया गया, जबकि लाइसेंस के मुताबिक उन्हें 6.2 मेगाहर्ट्ज से ज्यादा स्पेक्ट्रम नहीं मिलना चाहिए। यह विभागीय नोटिसों पर निर्भर करता है, खासकर बेहतर कानूनी मामलों में सही होता, लेकिन सामान्यत: सरकारी नियम, एक दूसरे का विरोध करते हैं और काफी अस्पष्ट हैं।

इस मामले में भी अनिल अंबानी के साथ भेदभाव किया गया और उन्हें स्पेक्ट्रम के लिए लाइसेंस पाने के लिए 1,651 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा, जबकि वे इस क्षेत्र में 2001 से हैं जब केवल 40 लाख उपभोक्ता थे। इस उद्योग ने इतने उपभोक्ता तो दो सप्ताह के दौरान हासिल किए हैं। अब भले ही सिंह द्वारा उठाए गए सभी मसले उतने प्रभावी न हों, लेकिन उन्होंने केंद्र सरकार की तानाशाही और दोमुंहेपन के रवैये को उजागर किया है, जिसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी एक पक्ष हैं।

courtesy: bshindi.com

1 comment:

vipinkizindagi said...

अच्छा जानकारी है