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सरकार जीत गई। भले ही खरीद फरोख्त से। आडवाणी जी, आपलोगों की ये गलतफहमी तो दूर ही हो गई होगी कि बेहतर मैनेजर भाजपा ही है। साथ में मनमोहन सिंह ने शायद यह बात भी आप लोगों के लिए ही कही कि वामपंथी, सरकार को बंधुआ मजदूर समझते थे। आप भी सरकार में थे, जनता के बीच गए तो रोते-बिलखते। वही रोना कि गठबंधन सरकार थी, इसलिए समान नागरिक संहिता, धारा ३७० और राम मंदिर छोड़ना पड़ा। मान लेते हैं कि राम मंदिर मुसलमानों से संबंधित मुद्दा था, लेकिन समान नागरिक संहिता और धारा ३७० पर तो सहयोगियों को समझाया बुझाया ही जा सकता था न।
अब क्या होगा? केंद्र की संप्रग ने तो दिखा दिया कि हम बंधुआ नहीं हैं। लेकिन आप तो पिलपिले ही निकले थे, रोने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं तलाश पाए और ५ साल तक सत्ता सुख भोगने में ही लगे रहे। मनमोहन अगर महंगाई नहीं रोक पाए तो जनता के बीच नंगे होंगे, लेकिन ये रोना तो नहीं रोएंगे कि कम्युनिस्टों के चलते नव-उदारवाद का एजेंडा नहीं लागू कर पाए, जिसके चलते दुर्दिन देखने पड़े।
3 comments:
बिल्कुल सही लिखा है आपने।
अच्छा लगा आपको पढ़ना..
हुज़ूर आप बहुत दुखी लग रहे हैं. क्यों सरकार? बीजेपी से दिल लगा बैठे थे क्या, जो अब कोस रहे हैं. इस पूरे राजनीतिक प्रहसन में कई दिलचस्प बातें हैं. मसलन यह सवाल कि बिकने को हरदम तैयार रहने वालों में संघ दीक्षित चड्ढी-बनियान गिरोह के लोगों कि तादाद क्यों ज्यादा रहती है...अंग्रेजों से माफी मांगने वालों की ज़मात की इस हरकत पर मुझे कोई हैरत नहीं है ... एक और बात ध्यान देने लायक है कि कोई वामपंथी सांसद या नेता अब तक क्यों नहीं बिका ?
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