Thursday, May 5, 2011

...तो इसीलिए किलर बसें हटाई गईं थीं!

सत्येन्द्र प्रताप सिंह

"सैकड़ों की संख्या में निजी क्षेत्र के बस संचालकों की रोजी-रोटी छीनकर कुछ हाथों में सौंपी गई"


राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पेरिस की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की तर्ज पर क्लस्टर बस सेवा आज 231 लो फ्लोर बसों के साथ शुरू हो गई। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस सेवा के शुभारंभ के अवसर पर कहा, 'कलस्टर सेवा से दिल्ली मेंं सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं काफी सुधरेंगी। लोगों के पास अब बेहतर परिवहन विकल्प होगा।Ó पहली कलस्टर सेवा स्टार बस प्राइवेट लिमिटेड दक्षिणी दिल्ली के 32 रूटों पर संचालित की जाएगी। तीन कॉरपोरेट निकायों के साथ पहले ही 5 कलस्टरों में यह सेवा संचालित करने के लिए अनुबंध किया गया है। इन बसों में दिल्ली मेट्रो की भांति सूचना तंत्र होगा जिसपर यात्रियों को आने वाले स्टैंड, आगमन का संभावित समय आदि की जानकारी मिलेगी।
इसके पहले दिल्ली में ब्लूलाइन बसें चलती थीं, जिन्हें प्राइवेट ऑपरेटर चलाते थे। इसमें ज्यादातर बसें उन किसानों की थीं, जो दिल्ली के आसपास के थे और जिनकी जमीनें शहरीकरण ने छीन ली थीं। कारोबार से अपरिचित ग्रामीण बसें चलवाकर अपनी रोजी-रोटी आराम से चला लेते थे।
अब बसों के संचालन का जिम्मा कॉरपोरेट सेक्टर या कहें कि बड़े-बड़े कारोबारियों को दे दिया गया है। बसों में जीपीएस है, सूचना तंत्र है, कब और किस रूट पर चलेगी, इसकी जानकारी है। कमाई भी अब कुछ सेठों को होने जा रही है, जिन्हें इस सेवा के परिचालन का जिम्मा सौंपा जा रहा है या सौंपा जाने वाला है।
अब सरकार का अगला कदम क्या हो सकता है, यह स्पष्ट है। पहले से ही घाटे में चल रही दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की बसें अब और घाटे में दिखाई जाएंगी। फिर एक-एक बस स्टेशनों की सोने का भाव हो चुकी जमीनें उद्योगपतियों को पीपीपी आधार पर सौंपी जाएंगी, जिनसे वहां आम लोगों के लिए व्यवस्था चाक चौबंद हो सके। स्वाभाविक है कि इस कवायद में सार्वजनिक संपत्ति कुछ चंद लोगों के हाथ गिरवी रखी जाएगी, वह भी आम लोगों को सुविधा दिए जाने के नाम पर।
इंतजार करिए। जब ये कंपनियां सार्वजनिक परिवहन सेवाओं पर एकाधिकार कर लेंगी तो किराए भी ये ही तय करने वाली हैं और उस समय उसी तरह लोगों का किराया ज्यादा बढ़ाए जाने पर बोलने का अधिकार खत्म हो जाएगा, जैसे निजी स्कूल अपनी दुकानदारी चला रहे हैं और उनकी मनमानी फीस पर न्यायालय से लेकर सरकार तक, किसी का नियंत्रण न हुआ है, न हो सकता है।

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

क्या जाने क्या भविष्य हो पर संभावना तो यही है।

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

सत्येन्द्र भाई!
बसें इसलिए नहीं बन्द की गईं कि वे किसानों की थीं, बल्कि इसलिए बंद की गई हैं कि अराजक ढंग से चलाई जा रही थीं. इतने दिनों से दिल्ली में रह रहे हैं, ब्लू लाइन का कहर आपने झेला ही होगा. एक बात और आपको बता दें क़ि अराजक ढंग से ये सिर्फ़ इसलिए चल रहे थे कि इन बस संचालकों में से अधिकतर के रिश्तेदार दिल्ली पुलिस में हैं.

Satyendra PS said...

निश्चित रूप से अराजक ढंग से चल रही थीं. अब बड़ी कंपनियां चलाएगी तो सुराजक ढंग से चलने लगेंगी. गोरखपुर का फर्टिलाइजर कारखाना सरकार ने अराजक ढंग से चलाया, अब अगर सेठ जी उसे चलायेगे तो बेहतर चलेगी. वो अंडरसन और अपने देशी सेठ लोगों ने मिलकर भोपाल में भी एक फैक्ट्री सुरजाक ढंग से चलायी थी...
अब तो सेठ लोग ही सुराज लायेंगे.. सरकार के पास और कोई रास्ता ही नहीं है कि अराजकता पर कैसे काबू पाया जाए. पुलिस व्यवस्था भी किसी सेक्योरिटी एजेंसी और सेना की व्यवस्था किसी अमेरिकी हथियार कारोबारी को देना होगा. तभी कानून व्यवस्था ठीक होगी.

Satyendra PS said...

एक बात और. दिल्ली मेट्रो में बहुत अराजकता है, इसीलिए नई दिल्ली से एयरपोर्ट लाइन अम्बानी चलाने लगे हैं, जिसका किराया ८० रूपये है.
भारतीय रेल बहुत अराजक है. उसका हाल देख लीजिए. मजदूरों को १०० रूपये में पटना पंहुचा देती है. टिकट नहीं मिलता. दुर्घटनाएं भी बहुत होती हैं. उसे तो तत्काल पीपीपी मोडल पर कर देना चाहिए, तभी उसमे सुधार आएगा. सरकारी बैंक, दूरसंचार, पोस्टल सेवाएं, स्कूल, अस्पताल... सब अराजकता के चलते बंद होने की कगार पर हैं.
सबके इलाज और विकल्प सेठ जी ही हैं.